जब वाजपेयी ने अपने दोस्त के कहने पर हिमाचल में रोहतांग सुरंग बनाने की पहल की

By विजयेन्दर शर्मा | Aug 16, 2021

शिमला,  आज देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तीसरी पुण्यतिथि है  । वाजपेयी हिमाचल प्रदेश को अपना दूसरा घर मानते थे। प्रदेश के जिला कुल्लू के मनाली के पास प्रीणी में  उनका घर है।  वाजपेयी सत्ता में रहे या फिर सत्ता से बाहर  अक्सर प्रीणी में आकर आराम फरमाते थे। वाजपेयी का हिमाचल के प्रति गहरे लगाव का ही परिणाम  मनाली को लाहौल घाटी से जोडऩे वाली रोहतांग सुरंग है।    इसका निर्माण वाजपेयी के एक दोस्त के कहने पर हुआ है। 

 

                    जिससे अब सारा साल लहौल घाटी में लोग  आराम से आ जा सकते हैं।   इससे पहले हिमाचल प्रदेश के जिला लहौल स्पिती के लोग भारी बर्फबारी के चलते करीब छह महीने तक बाहरी दुनिया से कटे रहते ।  लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी की बदौलत यहां के लोग अब बर्फबारी की कैद से मुक्ति पा ली है  ।   हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू के मनाली व लाहौल के बीच रोहतांग दर्रा के बीच  लगभग 9 किलोमीटर सुरंग  तैयार है। सुरक्षा की दृष्टि से इसका सीधा लाभ भारतीय सेना को होगा।

                       दरअसल, सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण  हिमाचल प्रदेश की रोहतांग सुरंग लाहौल के रहने वाले टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल तथा देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की दोस्ती के प्रतीक  के तौर पर हमेशा ही याद की जायेगी।  बताया जाता है कि टशी दावा और वाजपेयी की दोस्ती देश की स्वतंत्रता से पूर्व की रही है।  टशी दावा देश के सबसे पुराने गैर-राजनीतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर.एस.एस.) के सक्रिय कार्यकर्ता थे। इसी बीच वर्ष, 1942 को आर.एस.एस. के एक प्रशिक्षण शिविर के दौरान उनकी पहली मुलाकात गुजरात के बड़ोदरा में अटल बिहारी वाजपेयी के साथ हुई थी। इस दौरान टशी दावा और वाजपेयी के बीच एक घनिष्ठ दोस्ती कायम हुई, लेकिन एक लंबे अर्से तक इन दोनों की मुलाकात जीवन की आपाधापी एवं व्यस्तता के कारण नहीं हो पाई

 

लेकिन इस दौरान टशी दावा के मन में न केवल लाहौल वासियों की समस्या हर वक्त उन्हें परेशान करती रहती थी बल्कि इस क्षेत्र को बर्फ की कैद से छुटकारा दिलाने के लिए वह हमेशा चिंतित रहते थे। इसी बीच उनके मन में लाहौल व मनाली के बीच एक सुरंग निर्मित करने का विचार आया ताकि यह क्षेत्र देश व दुनिया के साथ लगातार जुड़ा रह सके। इसी विचार को लेकर टशी दावा लगभग 56 वर्ष के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिलने दिल्ली पहुंचे।

 

एक लंबे वक्त के बावजूद जब टशी दावा अटल बिहारी वाजपेयी से नई दिल्ली स्थित उनके निवास स्थान में मिले तो एकाएक वाजपेयी टशी दावा को शक्ल से पहचान नहीं पाए लेकिन उन्होंने कहा कि उन्हें आभास हो रहा है कि यह आवाज उनके नाटे कद वाले कबायली परम मित्र टशी दावा की लग रही है, ऐसे में जब उन्हें बताया गया कि उनसे मुलाकात करने आया व्यक्ति टशी दावा ही है तो वाजपेजी ने न केवल टशी दावा को गले से लगा लिया बल्कि उस लंबे अर्से को याद कर वह भावुक भी हो गए। इस बीच वाजपेयी ने केवल उनका कुशलक्षेम पूछा बल्कि उनके यहां आने का कारण भी जाना।

 

टशी दावा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लाहौलवासियों को लगभग 6 माह तक बर्फ की कैद से छुटकारा दिलाने के लिए रोहतांग सुरंग की मांग रखी। इस पर वाजपेयी ने उन्हें इस सुरंग को सामरिक दृष्टि से भी अति महत्वपूर्ण मानते हुए इसके निर्माण की हामी भरी। इस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी जब 3 जून, 2000 को अपने हिमाचल दौरे के दौरान लाहौल के मुख्यालय केलांग में पहुंचे तो अपने परम मित्र टशी दावा की उपस्थिति में आयोजित एक जनसभा में इस सुरंग के निर्माण की घोषणा की थी। टशी दावा द्वारा बार-बार तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से सुरंग निर्माण की मांग को लेकर हुई मुलाकातों का ही नतीजा था कि केलांग जनसभा में वाजपेयी ने इसके निर्माण की घोषणा की।

 

                        सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण रोहतांग सुरंग अब बनकर तैयार  है जिसका सीधा लाभ न केवल लाहौल वासियों को  हो रहा है।  बल्कि भारतीय सेना को भी लेह तक रसद एवं अन्य सैन्य सामान पहुंचाने में मदद मिली है।  तथा सैन्य दृष्टि से यह रास्ता सुरक्षित  है।

 

                         वर्ष, 1924 को लाहौल के ठोलंग गांव में पैदा हुए टशी दावा भले ही प्रदेश व देश की राजनीति में एक अनभिज्ञ चेहरा रहे हों लेकिन वर्ष, 1942 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ आर.एस.एस. के शिविर के दौरान हुई दोस्ती से आज न केवल प्रदेश बल्कि देश के लिए लगभग 9 किलोमीटर लंबी रोहतांग सुरंग को एक तोहफे के तौर पर हिमाचल को एक सौगात मिली है। यूं कहें कि यदि रोहतांग सुरंग टशी दावा और अटल बिहारी वाजपेयी की दोस्ती की उपज है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

 

2 दिसम्बर, 2007 को टशी दावा ने लगभग 83 वर्ष की उम्र में उसी जगह पर अपने प्राण त्याग दिए जिस समस्या से लाहौलवासियों को छुटकारा दिलवाने के लिए वे लगातार संघर्ष कर रहे थे। उनके पुत्र का कहना है कि सांस की बीमारी से पीडि़त टशी दावा को जब इलाज के लिए कुल्लू लाया जा रहा था तो इसी बीच रोहतांग दर्रा पार करते समय उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए थे, ऐसे में आज भले ही टशी दावा हमारे बीच नहीं हैं लेकिन आज रोहतांग सुरंग के निर्माण का सपना उनके परम मित्र अटल बिहारी वाजपेयी के आशीर्वाद से पूरा होने जा रहा है जिससे न केवल लाहौलवासियों को 6 माह की बर्फ  की कैद से मुक्ति मिलने वाली है बल्कि इससे इस क्षेत्र की आर्थिकी को भी बल  मिला है।

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