संविधान सभा ने इस तरह बनाया था भारत का संविधान

By बाल मुकुन्द ओझा | Jan 24, 2019

15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और 26 जनवरी 1950 को भारत एक सम्प्रभु लोकतान्त्रिक गणराज्य घोषित हुआ। गणतंत्र दिवस भारत का राष्ट्रीय पर्व है। यह दिवस भारत के गणतंत्र बनने की खुशी में मनाया जाता है। गणतंत्र का अर्थ है हमारा संविधान, हमारी सरकार, हमारे कर्त्तव्य, हमारा अधिकार। इस व्यवस्था को हम सभी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। भारत में सभी पर्व और त्यौहार मनाते हैं, परन्तु गणतंत्र दिवस को हम राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाते हैं। इस पर्व का महत्व इसलिये भी बढ़ जाता है क्योंकि इसे सभी जाति एवं वर्ग के लोग एक साथ मिलकर मनाते हैं। 26 जनवरी, 1950 के दिन भारत को गणतांत्रिक राष्ट्र घोषित किया गया था। इसी दिन स्वतंत्र भारत का नया संविधान लागू हुआ था।

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भारत का संविधान विश्व में सबसे बड़ा संविधान है। इस संविधान के जरिये नागरिकों को प्रजातान्त्रिक अधिकार सौंपे गए। संविधान देश में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की व्यवस्था तथा उनके अधिकारों और दायित्वों को सुनिश्चित करता है। संविधान के जरिये हमने अपने लोकतान्त्रिक अधिकार हासिल किये, अर्थात् समस्त अधिकार जनता में निहित हुए, इसी दिन हमें अपने मौलिक अधिकार प्राप्त हुए और एक नए लोकतान्त्रिक देश का निर्माण हुआ। 

 

भारतीय संविधान का निर्माण एक संविधान सभा द्वारा किया गया। संविधान सभा में 296 सदस्य थे। जिन्होंने 2 वर्ष, 11 महीने, 18 दिन काम कर संविधान को तैयार किया। हालाँकि इस अवधि में काम केवल 166 घंटे ही हुआ और हमारा संविधान बनकर तैयार हो गया। 26 जनवरी 1950 को हमारे संविधान को लागू किये जाने के कारण हर वर्ष 26 जनवरी को हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। यह दिन हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले अनगिनत स्वतन्त्रता सेनानियों का सपना साकार हुआ। यह महत्वपूर्ण दिन हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। इस दिन देश की राजधानी से लेकर गांव−ढाणी तक हम गणतंत्र का पर्व सोल्लास मनाते हैं। यह दिन पूरे देश में उत्साह और देशभक्ति की भावना के साथ मनाया जाता है। इस पावन पवित्र दिन देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले योद्धाओं को नमन कर उनके बताये मार्ग पर चलने का सकल्प लेते हैं। मातृभुमि के सम्मान एवं आजादी के लिये हजारों देशभक्तों ने अपने जीवन की आहूति दी थी। देशभक्तों की गाथाओं से हमारा कण कण गूँज रहा है।

 

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देशप्रेम की भावना से ओत−प्रोत हजारों सपूतों ने भारत को आजादी दिलाने में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। ऐसे महान देशभक्तों के त्याग और बलिदान के कारण आज हमारा देश लोकतान्त्रिक गणराज्य हो सका है। गणतंत्र दिवस हमारी राष्ट्रीय एकता एवं भावना को और अधिक प्रगाढ़ बनाने के लिए देशवाशियों को प्रेरित करता है। यह पर्व हमारे शहीदों की अमर गाथाओं से हमें गौरवान्वित करता है और प्रेरणा देता है कि अपने देश के गौरव को बनाए रखने के लिए हम संकल्पित हैं तथा हर पल तेजी से प्रगति और विकास की ओर बढ़ रहे हैं। गणतंत्र दिवस का राष्ट्रीय पर्व देशभर में अपार उत्साह तथा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। प्रति वर्ष इस दिन झंडारोहण किया जाता है तथा प्रभात फेरियां निकाली जाती हैं। देश की राजधानी दिल्ली सहित सभी प्रान्तों तथा विदेशों के भारतीय राजदूतावासों में भी यह पर्व उल्लास व गर्व से मनाया जाता है। हमारे सुरक्षा प्रहरी परेड निकाल कर, अपनी आधुनिक सैन्य क्षमता का प्रदर्शन करते हैं। सेना की परेड के बाद रंगारंग सांस्कृतिक परेड होती है। विभिन्न राज्यों से आई झांकियों के रूप में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाया जाता है। प्रत्येक राज्य अपने अनोखे त्यौहारों, ऐतिहासिक स्थलों और कला का प्रदर्शन करते हैं। यह प्रदर्शनी भारत की संस्कृति की विविधता और समृद्धि को एक त्यौहार का रंग देती है।

 

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आज हमारा देश अपने देशवासियों की अंतरआत्मा को झकझोर रहा है। जिस देश में दूध−दही की नदियां बहती थीं, जिसे सोने की खान कहा जाता था। सत्यमेव जयते जिसका आदर्श था। महापुरूषों और ग्रंथों ने सत्य की राह दिखाई थी। भाईचारा, प्रेम और सद्भाव हमारे वेद वाक्य थे। कमजोर की मदद को हम सदैव आगे रहते थे। भारत के आदर्श समाज और राम राज्य की विश्व में अनूठी पहचान थी। राजाओं के राज को आज भी लोग याद रखते हैं और यह कहते नहीं थकते कि उस समय की न्याय व्यवस्था काफी सुदृढ़ थी, राजा के कर्मचारी आम आदमी को प्रताड़ित नहीं करते थे। सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में नैतिकता थी। बुराई के विरूद्ध अच्छाई का बोलबाला था। महात्मा गांधी ने आजादी के बाद राम राज्य की कल्पना संजोई थी। प्रगति और विकास की ओर हमने तेजी से बढ़ने का संकल्प लिया था। पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से चहुंमुखी विकास की ओर कदम बढ़ाये थे। सामाजिक क्रांति का बीड़ा उठाया था। ईमानदारी के मार्ग पर चलने की कसमें खाई थीं।

 

आजादी की आधी से अधिक सदी बीतने के बाद हमारे कदम लड़खड़ा रहे हैं। सत्यमेव जयते से हमने किनारा कर लिया है। अच्छाई का स्थान बुराई ने ले लिया है और नैतिकता पर अनैतिकता प्रतिस्थापित हो गई है। ईमानदारी केवल कागजों में सिमट गई है और भ्रष्टाचरण से पूरा समाज आच्छादित हो गया है। देश और समाज अंधे कुएं की ओर बढ़ रहा है, जिसमें गिरने के बाद मौत के सिवाय कुछ हासिल होने वाला नहीं है। आजादी के बाद निश्चय ही देश ने प्रगति और विकास के नये सोपान तय किये हैं। पोस्टकार्ड का स्थान ई−मेल ने ले लिया है। इन्टरनेट से दुनिया नजदीक आ गई है। मगर आपसी सद्भाव, भाईचारा, प्रेम, सच्चाई से हम कोसों दूर चले गये हैं। समाज में बुराई ने जैसे मजबूती से अपने पैर जमा लिये हैं। लोक कल्याण की बातें गौण हो गई हैं।

 

देश में भ्रष्टाचार, अराजकता, महंगाई, असहिष्णुता, बेरोजगारी और असमानता से देशवासी बुरी तरह त्रस्त हैं। जन साधारण इसके लिए हमारी राजनीतिक व्यवस्था को पूरी तरह से उत्तरदायी मानता है। जिसने जनतांत्रिक मूल्यों को प्रदूषित किया है। शासन व्यवस्था में भ्रष्टाचार के विरूद्ध आवाज उठाने वाले प्रताड़ित किये जा रहे हैं। रक्षक ही भक्षक बन गये हैं। ऐसे में देशवासियों के जागने का समय आ गया है। भ्रष्टाचार और समाज को गलत राह पर ले जाने वाले लोगों को उनके गलत कार्यों की सजा देने के लिए आमजन को जागरूक होने की महत्ती जरूरत है। देश को बचाने के लिए कमर कसनी होगी।

 

भावी पीढ़ी का भविष्य संवारने के लिए पहले खुद को सुधारना होगा। भ्रष्टाचार के विरूद्ध शंखनाद करना होगा। आदर्श समाज की स्थापना तभी होगी जब हम इसकी शुरूआत अपने घर से करेंगे। समाज की एकजुटता और अच्छे कार्य के लिए एकता का संदेश जन−जन तक पहुँचा कर हम आदर्श राज्य और समाज की स्थापना में भागीदार हो सकते हैं। गणतंत्र की सार्थकता तभी होगी जब हरेक व्यक्ति को काम व भरपेट भोजन मिले। गणतंत्र की सफलता हमारी एकजुटता और स्वतंत्रता सेनानियों की भावना के अनुरूप देश के नव निर्माण में निहित है।

 

-बाल मुकुन्द ओझा

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