By अंकित सिंह | Aug 14, 2022
आज ही के दिन 1947 में देश का विभाजन हुआ था। देश के विभाजन के बाद ही नए मुल्क पाकिस्तान का जन्म हुआ था। 15 अगस्त 1947 को हमें आजादी तो मिली लेकिन उससे पहले हमें बंटवारे का दर्द भी झेलना पड़ा। इसी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से 14 अगस्त को 'विभाजन की भयावह स्मृति' के रूप में मनाने का फैसला लिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसको लेकर एक ट्वीट भी किया है। मोदी ने लिखा कि आज विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर, मैं विभाजन के दौरानजान गंवाने वाले सभी लोगों को श्रद्धांजलि देता हूं और हमारे इतिहास के उस दुखद काल के पीड़ितों के धैर्य और सहनशीलता की सराहना करता हूं।’
कांग्रेस का सवाल
वहीं, कांग्रेस लगातार मोदी पर इस दिवस को लेकर हमलावर है। बंटवारे को लेकर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाने के पीछे प्रधानमंत्री की वास्तविक मंशा सबसे दर्दनाक ऐतिहासिक घटनाओं को अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करना है। लाखों लाख लोग विस्थापित हुए और जानें गईं। उनके बलिदानों को भुलाया या अपमानित नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बंटवारे की त्रासदी का दुरुपयोग नफरत और पूर्वाग्रह की भावना को भड़काने के लिए नहीं होना चाहिए। सच ये है कि सावरकर ने दो राष्ट्र का सिद्धांत दिया और जिन्ना ने इसे आगे बढ़ाया। पटेल ने लिखा था, "मुझे लगता है कि अगर विभाजन स्वीकार नहीं किया गया, तो भारत कई टुकड़ों में बंट जाएगा"।
कांग्रेस नेता ने कहा कि क्या प्रधानमंत्री आज जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भी याद करेंगे, जिन्होंने शरत चंद्र बोस की इच्छा के खिलाफ बंगाल के विभाजन का समर्थन किया था, और स्वतंत्र भारत के पहले कैबिनेट में शामिल हुए, जब विभाजन के दर्दनाक परिणाम स्पष्ट रूप से सामने आ रहे थे? उन्होंने कहा कि देश को बांटने के लिए आधुनिक दौर के सावरकर और जिन्ना का प्रयास आज भी जारी है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस गांधी, नेहरू, पटेल और अन्य नेताओं की विरासत को आगे बढ़ाते हुए राष्ट्र को एकजुट करने का प्रयास जारी रखेगी। नफरत की राजनीति हारेगी।
भाजपा का पलटवार
वहीं, इसको लेकर भाजपा नेता अमित मालवीय ने पलटवार किया है। अमित मालवीय ने जयराम रमेश को जवाब देते हुए कहा कि दो राष्ट्र सिद्धांत को पहली बार अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने प्रतिपादित किया था, जिन्होंने सावरकर के जन्म (1883) से बहुत पहले 1876 में यह विचार दिया था। सावरकर और हिंदू महासभा वास्तव में अंत तक विभाजन के विचार के विरोधी थे। उन्होंने दावा किया कि अप्रैल 1942 की शुरुआत में दिल्ली में सीडब्ल्यूसी के प्रस्ताव ने भारत के विभाजन को स्वीकार कर लिया। राजगोपालाचारी ने जिन्ना की औपचारिक मांग करने से पहले ही मद्रास विधायिका को पाकिस्तान के पक्ष में एक प्रस्ताव पारित करने के लिए कहा था। कांग्रेस और उसका शीर्ष नेतृत्व पाकिस्तान की असली जनक है। इसलिए कांग्रेस अपनी दुर्भावना को छिपा नहीं सकती। विभाजन की भयावहता स्मरण दिवस एकजुटता के साथ खड़े होने का दिन है।