मुसलमानों को लुभाने के बाद अब कांग्रेस का पूरा फोकस किसानों पर

By अजय कुमार | Jan 28, 2020

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भले अभी करीब ढाई साल बाकी हों, लेकिन राजनीति के ‘रणबांकुरे’ अभी से सियासी बिसात बिछाने लगे हैं। इस सियासी जंग में एक तरफ भारतीय जनता पार्टी तो दूसरी ओर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी खड़ी हैं। सबकी अपनी-अपनी चाहत, अपना-अपना वोट बैंक है, जिसको किसी भी तरह यह दल सहेजे रखना चाहते हैं। मायावती को दलितों पर, समाजवादी पार्टी को यादव-मुस्लिम, भाजपा को ब्राह्मण, बनिया, ठाकुर और अन्य हिन्दू वोटरों पर भरोसा है तो आजादी के बाद सबसे लम्बे समय तक प्रदेश में राज करने वाली कांग्रेस का दिसंबर 1989 से प्रदेश में जो पतन शुरू हुआ, उससे वह आज तक उबर नहीं पाई है। लगातार कांग्रेस का जनाधार घटता जा रहा है। जिस गांधी परिवार का उत्तर प्रदेश में डंका बजा करता था, जिसने अपने गृह राज्य यूपी से देश को एक या दो नहीं तीन-तीन प्रधानमंत्री सिर्फ गांधी परिवार से ही दिए हों, वह कांग्रेस अपने गृह राज्य यूपी में गर्दिश में समाई हो तो दुख और आश्चर्य दोनों होता है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी सब के सब यूपी में पिटे मोहरे नजर आ रहे हैं। राहुल गांधी तो अमेठी छोड़ कर वायनाड ही भाग गए। अब तो यह हाल हो गए हैं कि कांग्रेस में छोटी से छोटी आहट पर भी लोग कानाफूसी करने लगते हैं। इसीलिए तो गत दिवस जब कांग्रेस को उसकी पुरानी पहचान वापस दिलाने के लिए सोनिया गांधी की अगुवाई में उनके संसदीय क्षेत्र रायबरेली में कांग्रेसी कुनबा जुटा तो प्रदेश के कांग्रेसियों में नया जोश हुंकार मारने लगा। कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने संसदीय क्षेत्र में आत्मविश्वास और उम्मीदों से भरी दिखीं।

 

इस मौके पर प्रदेश भर से जुटे जिला और शहर अध्यक्षों से सोनिया ने कहा कि आप सब हमारी ताकत हैं। आप सभी को मेरा आशीर्वाद है। मेहनत और ईमानदारी से संगठन को मजबूत करें, क्योंकि 2022 का विधानसभा चुनाव हमारे सामने है। बता दें कि आजकल जिला-शहर अध्यक्षों का प्रशिक्षण कार्यक्रम रायबरेली में चल रहा है। जहां मिशन 2022 के लिए रणनीति तो बन रही है, लेकिन इसका खुलासा नहीं किया जा रहा है। हां, यह जरूर पता चला है कि सीएए, एनपीआर और एनआरसी की लड़ाई को अब कांग्रेस ज्यादा तेजी से आगे नहीं बढ़ायेगी क्योंकि इस मामले में उसे सुप्रीम कोर्ट से भी कोई खास उम्मीद नहीं है। मुसलमानों को जितना लुभाया जा सकता था, उतना लुभाया जा चुका है। इसी वजह से कांग्रेस ने अपना पूरा फोकस किसानों पर लगा दिया है। इतना ही नहीं किसानों को पार्टी से जोड़ने के लिए कांग्रेस द्वारा बनाई गई रणनीति पर शीर्ष नेतृत्व पर मुहर लग चुकी है। रायबरेली में चल रहे प्रशिक्षण कार्यक्रम में जिला और शहर अध्यक्षों को रूपरेखा समझा दी गई है कि किसानों के मुद्दे पर प्रदेशव्यापी आंदोलन के साथ ही कार्यकर्ता अब उनके घर-घर दस्तक भी देंगे।

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बहरहाल, लगता है कि सपा-बसपा से दुत्कारे जाने के बाद कांग्रेस अब सीधे बीजेपी का विकल्प बनाना चाहती है। इसकी कमान प्रियंका गांधी ने संभाल रखी है। सोशल मीडिया से लेकर अन्य तमाम मंचों से प्रियंका ने योगी सरकार की नाक में दम कर रखा है। कोई भी हादसा या दुर्घटना होती है तो प्रियंका उसमें राजनीति निकाल ही लेती हैं। हर मुद्दे के खिलाफ सबसे पहले कांग्रेस खड़ी हो जा रही है। चाहे उन्नाव की दोनों घटनाएँ हों, सोनभद्र में दस लोगों के नरसंहार का मामला रहा हो, बिजली मूल्य बढ़ोत्तरी हो अथवा अब सीएए, एनआरसी और एनपीआर का मुद्दा, प्रियंका गांधी मौका मिलते ही योगी सरकार के खिलाफ अलख जगाने निकल पड़ती हैं। सियासी जंग के लिए बहुत लम्बे अरसे के बाद यूपी में कांग्रेस इस तरह लड़ती नजर आ रही है, जिससे मोदी-योगी सरकारें तिलमिला जाती हैं। अब तो प्रियंका ने योगी को भगवा रंग के मायने भी बताने शुरू कर दिए हैं। वह योगी को ललकार रही हैं कि हिन्दू धर्म में बदला शब्द कही नहीं हैं, जिसके बाद पूरी भगवा ब्रिगेड आपा खो देती है।

 

प्रियंका गांधी की सक्रियता ने योगी ही नहीं सपा-बसपा नेताओं की भी नींद उड़ा रखी है। शायद इसीलिए पिछले तीन दशकों से समाजवादी पार्टी का वोट बैंक समझे जाने वाले मुसलमानों को अब कांग्रेस में ज्यादा उम्मीदें नजर आ रही हैं। मुसलमान ने अगर अंगड़ाई ली और वह कांग्रेस की ओर रूख कर गया तो सबसे ज्यादा नुकसान सपा का ही होगा क्योंकि सपा के पास वोटबैंक के नाम पर मुसलमानों के अलावा कुछ है ही नहीं। थोड़ा-बहुत यादव ही सपा के साथ रह जाएगा, उस पर भी ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता है। लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में यादवों में फूट देखने को मिली थी जिसके चलते काफी संख्या में यादवों ने भाजपा की ओर रूख कर लिया था।

 

बात बसपा की कि जाए तो उसके लिए मोदी सरकार द्वारा लाया गया नागरिकता संशोधन कानून गले की फांस बन गया है। नागरिकता कानून से सबसे अधिक फायदा उन दलितों को हो रहा है जो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भाग कर भारत आए हैं। अगर मायावती नागरिकता बिल का विरोध करेंगी तो मुलसमान उसके साथ आया या नहीं यह तो बाद की बात है, लेकिन बसपा का कोर दलित वोटर मायावती से जरूर नाराज हो जाएगा। इसीलिए मायावती सीएए, एनपीआर और एनआरसी पर काफी सोच समझ कर कदम आगे बढ़ा रही हैं। मायावती जानती हैं कि हर चुनाव में यूपी में दलित की पहली पसंद बसपा ही रही है, लेकिन सिर्फ दलितों से काम नहीं चलता चुनाव जीतने के लिए माया अब मुसलमानों से अलग भी कुछ प्रयोग कर सकती हैं। जैसा कि उन्होंने 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के तहत किया था, जिसमें उन्होंने ब्राह्मणों, ठाकुरों आदि को अपने साथ जोड़ने में सफलता पाई थी। बात बसपा से मुसलमानों से नाराजगी की कि जाए तो मुसलमान बसपा को पसंद नहीं करता उसकी कई वजह है। बसपा ने कभी मुसलमानों के लिए कोई खास आवाज नहीं उठाई। 

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बहरहाल, कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी को सपा और बसपा अगर हल्के में ले रही हैं तो यह उनकी बहुत बड़ी सियासी भूल होगी। रही बात मोदी-योगी और भाजपा की तो वह भी कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी को गंभीरता से ले रहे हैं क्योंकि प्रियंका जमीनी मुददे उठा रही हैं। प्रियंका को इस बात का अहसास है कि भाजपा की सियासी ‘हाँडी’ धार्मिक भावनाओं के सहारे आगे बढ़ ही है जिसका समय ज्यादा नहीं होता, जब लोगों को ये बात महसूस होने लगेगी कि देश लगातार हर तरीके से पिछड़ता जा रहा है, तब जनता एकदम साथ छोड़ देगी। सियासी पंडित भी मान रहे हैं कि धार्मिक भावनाओं के सहारे कोई भी सियासी दल बहुत दूर तक आगे नहीं जा सकता है। इसलिए माना जा रहा है कि कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी, सपा-बसपा और भाजपा के लिए मुसीबत का सबब बन सकती हैं। अगर इसी तरह प्रियंका गांधी यूपी में सक्रिय रहीं तो कांग्रेस के लिए यूपी में अच्छे दिन आने वाले हैं, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है।

 

-अजय कुमार

 

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