कुछ वर्ष पूर्व डोकलाम और अब गलवान घाटी में चीन से जारी तनाव और 20 सैनिकों की शहादत के बीच तीनों ‘गांधी’ क्यों देश और सेना की बजाए चीन के साथ खड़े नजर आ रहे हैं, इस रहस्य से पर्दा उठ गया है। दरअसल, गांधी परिवार के चीनी प्रेम के पीछे ‘पैसा बोल रहा था’। गांधी परिवार ने मनमोहन सरकार के समय कायदे-कानून को ताक पर रखकर चुपके से ‘राजीव गांधी फांउडेशन’ के नाम पर 90 लाख रूपए की बड़ी धनराशि चीन से ली थी। संभवतः चीन का पक्ष लेकर गांधी परिवार ‘चीन से लिए गए पैसे की ‘कीमत’ चुका रहा होगा। अगर ऐसा नहीं है तो सोनिया-राहुल को सामने आकर ‘दूध का दूध, पानी का पानी’ करना चाहिए। वर्ना हिन्दुस्तानी अदालतें तो इंसाफ का तराजू लिए बैठी ही हैं। गांधी परिवार का गुपचुप तरीके से चीन से चंदा लिए जाने का कृत्य देशद्रोह से कम नहीं है। वैसे यह पहला मामला नहीं है। समय-समय पर गांधी परिवार के इस तरह के तमाम ‘कारनामे’ आते रहते हैं। ‘आज’ चीन से गांधी परिवार की कथित ‘दोस्ती’ के कारण सवाल उठ रहा है तो ‘कल’ पाकिस्तान से गांधी परिवार के करीबियों की चोरी छिपे की जाने वाली मुलाकातें चर्चा में रहती थी। इन्हीं वजहों से कभी-कभी तो यह लगता है कि न तो कभी गांधी परिवार देश को अपना पाया है, न देश की जनता गांधी परिवार को अपना समझ पाई।
बात चीन की ही नहीं है। चंदा लेने के मामले में राजीव गांधी फांउडेशन का रिकार्ड कभी भी साफ-सुथरा नजर नहीं रहा है। चीन से चंदा लेने के साथ-साथ गांधी परिवार ने राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट से सम्बद्ध राजीव गांधी फाउंडेशन के नाम पर विवादास्पद इस्लामी उपदेशक जाकिर नाइक के एक एनजीओ से भी 50 लाख रुपये का चंदा लिया था, हालांकि जाकिर के संगठन का ढाका में हुई एक आतंकवादी वारदात में नाम सामने आने के बाद जुलाई 2016 में गांधी परिवार द्वारा यह पैसा लौटा दिया गया था।
खैर, गांधी परिवार के चीनी कनेक्शन का खुलासा होते ही चीन को लेकर लगातार मोदी सरकार को घेरने में लगा कांग्रेस का कथित गांधी परिवार और पार्टी बैकफुट पर और बीजेपी फ्रंटफुट पर आ गई है। गांधी परिवार जो ऐसे मौकों पर खुद खामोशी की चादर ओढ़कर अपने प्रवक्ताओं को जवाब देने के लिए सियासी मैदान में उतार देता है, उनके लिए भी गांधी परिवार का बचाव करना असंभव नजर आ रहा है। चीन को भारत से बीस बताकर मोदी सरकार को घेर रहे गांधी परिवार को भाजपा के इस आरोप का जवाब देना कठिन हो गया है कि आखिर राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन से आर्थिक सहायता लेने की क्या जरूरत थी ? यह महज राजीव गांधी के नाम पर बना फाउंडेशन नहीं है बल्कि इसे गांधी परिवार के मालिकाना हक वाला फाउंडेशन कहा जाए तो कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी। यह वह फाउंडेशन है जिसकी मुखिया कांग्रेस की कार्यवाहक अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं, इसमें राहुल गांधी हैं और इसके बोर्ड में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा अन्य तमाम कांग्रेसी नेता शामिल हैं। इस तरह की किसी संस्था की ओर से किसी भी विदेशी दूतावास से धन लेना कई सवालों को जन्म देता है और तब तो और भी जब वह विदेशी दूतावास चीन का हो।
पता नहीं राजीव गांधी फाउंडेशन ने चीनी दूतावास से धन लेना जरूरी क्यों समझा ? यदि यह आवश्यक ही था तो फिर इस बारे में तभी पूरी सूचना सार्वजनिक की जानी चाहिए थी। अब तो आम धारणा तो यही बनेगी कि एक तरह से कांग्रेस पार्टी ने गुपचुप रूप से चीन से धन लिया। ध्यान रहे कि यह धन तब लिया गया जब यूपीए की केन्द्र में सरकार थी जिसकी चेयरपर्सन मैडम सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हुआ करते थे, जो आजकल भले मोदी सरकार के खिलाफ मुखर हों, लेकिन जब तक स्वयं पीएम की कुर्सी पर बैठे रहे तब तक मौनी बाबा बनकर गांधी परिवार के इशारे पर ‘नाचते’ रहते थे। यह सच है कि चीन से चंदा लेने के मामले में गांधी परिवार अपनी सफाई में बहुत कुछ कह सकता है, लेकिन उससे संतुष्ट होना किसी के लिए आसान नहीं होगा। हाँ, यह जरूर हो सकता है ‘खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे’ के मुहावरे की तर्ज पर गांधी परिवार मोदी सरकार के खिलाफ और आक्रमक हो जाए, लेकिन ऐसी आक्रमकता से कांग्रेस को कोई फायदा होगा, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। कई बार गांधी परिवार जनता को भड़काने की कोशिश कर चुका है लेकिन हर बार उसे मुंह की खानी पड़ती है। जनता को गांधी परिवार की विश्वसनीयता पर ही भरोसा नहीं रहता है।
कांग्रेस और खासकर उसके नेता राहुल गांधी लगातार यह साबित करने में लगे हुए हैं कि प्रधानमंत्री मोदी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। देश उनके हाथों में सुरक्षित नहीं है। पहले चौकीदार चोर है, उसके बाद फौरी तीन तलाक, एनआरसी, फिर कोरोना को लेकर भी राहुल ने मोदी के खिलाफ ऐसा ही हमला बोला था जैसा चीन से विवाद के समय बोल रहे हैं। राहुल लगतार भड़काऊ बयानबाजी करके कह रहे हैं कि मोदी ने चीन के आगे हथियार डाल दिए हैं। वह यह भी सिद्ध करने में तुले हैं कि चीन ने भारत की जमीन हथिया ली है। इस बारे में वह न तो प्रधानमंत्री के बयान को महत्व देने के लिए तैयार हैं और न ही उनके स्पष्टीकरण को। पता नहीं वह सरकार पर अनावश्यक राजनीतिक हमले कर के क्या हासिल करना चाहते हैं, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि कांग्रेस का आचरण जाने-अनजाने चीन का दुस्साहस बढ़ाने वाला है। एक ऐसे समय जब देश चीन की खतरनाक आक्रामकता से दो-चार है तब जरूरत इस बात की है कि राजनीतिक एकजुटता का प्रदर्शन किया जाए ताकि दुनिया को यह संदेश जाए कि भारत चीनी सत्ता की गुंडागर्दी के समक्ष एकजुट है।
जब देश पर संकट हो तब किसी भी दल के नेता को सियासी रोटियां नहीं सेंकनी चाहिए। सोनिया, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा यह बात पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, सपा नेता अखिलेश यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती और अन्य मोदी विरोधी नेताओं से सीख सकते हैं, जो चीन के मसले पर पूरी एकजुटता के साथ मोदी सरकार के साथ खड़े हैं।
-अजय कुमार
(लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं।)