By अभिनय आकाश | Feb 15, 2020
उद्धव ठाकरे ने जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली उस वक्त शरद पवार इस पूरे आयोजन के सूत्रधार, संयोजक और सलाहकार थे। उन्होंने सारे विधायकों को एकता की कसम खिलाई थी क्योंकि शिवसेना के साथ कांग्रेस और एनसीपी की तिकड़ी को एक असंभव प्रयोग कहा जा रहा था। सब ठीक चल रहा था लेकिन ढाई महीने में ढाई कोस चलते-चलते शह और मात का खेल शुरू हो चुका है। पहले तो भीमा-कोरेगांव मामले में एनाआईए जांच को लेकर एनसीपी और शिवसेना में तनातनी की खबरें आईं और अब महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने राज्य में एनपीआर लागू करने को अपनी मंजूरी दे दी है। खबर के अनुसार, महाराष्ट्र में 1 मई से एनपीआर की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।
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उद्धव के इस फैसले से सहयोगी दलों के बीच तनातनी देखने को मिल रही है। कांग्रेस साफ कर चुकी है कि वह केंद्र सरकार के इस कानून का समर्थन नहीं करेगी। राज्य कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत ने कहा कि एनपीआर के प्रावधानों को लेकर कांग्रेस को शुरू से ही विरोध है। दूसरी तरफ शिवसेना के सांसद अनिल देसाई भी साफ कह चुके हैं कि उद्धव ठाकरे ने कहा था कि एनपीआर जनगणना जैसी है। वैसे उद्धव ठाकरे ने इससे पहले एनसीपी को झटका देते हुए भीमा कोरेगांव मामले की जांच एनआईए को सौंपने की मंजूरी दे दी थी। जिस पर एसीपी सुप्रीमो शरद पवार बिफर गए थे। पवार को लगता है कि मुख्यमंत्री उद्धव ने उनके इच्छाओं की अनदेखी की है और वे चाहते तो इसे रोक सकते थे। पवार ने कहा कानून व्यवस्था देखने का अधिकार राज्य सरकार का है। फिर भी केंद्र सरकार ने राज्य सरकार के अधिकार छीन लिए। यह बात ठीक नहीं और राज्य सरकार का केंद्र सरकार के इस फैसले को समर्थन करना उचित नहीं।
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शरद पवार ने महाराष्ट्र सरकार को चिट्ठी लिखकर आपत्ति जताई थी और जांच अधिकारियों की जांच पर बी आशंका जताई थी। लेकिन केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र सरकार के डीजी पुलिस और मुख्य सचिव को चिट्ठी लिखकर कहा कि मामले को अब एनआईए को सौंपा जाएगा। उद्धव ने बस इतना भर कहा कि केंद्र को राज्य सरकार से पूछना चाहिए था। लेकिन जो बात पवार को चुभ गई वो ये कि उद्धव ने दो टूक कह दिया कि जरूरी नहीं कि वो भी उन्हीं की तरह सोचे। उद्धव ने कहा कि मैं एकदम निष्पक्ष की तरह इसकी ओर देखता हूं। इन सभी में किसी को भी मत प्रकट करने का अधिकार है। मेरा एक मत हो सकता है। पवार का अलग मत हो सकता है। कांग्रेस का अलग।
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