संवैधानिक और स्वायत्त संस्थाओं से सरकार का सीधा टकराव देशहित में नहीं

By योगेन्द्र योगी | Nov 10, 2018

केंद्र सरकार का रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया जैसे संवैधानिक स्वायत्त संस्थान से टकराव से नया नहीं है। इससे पहले केंद्र सरकार करीब आधा दर्जन से अधिक स्वायत्त और संवैधानिक संस्थाओं से टकराव मोल ले चुकी है। केन्द्र में भाजपा गठबंधन सरकार के गठन के बाद से ही टकराव का यह सिलसिला शुरू हो गया। ऐसे संस्थान जो केंद्र सरकार के इशारे पर नहीं चल सके, उन्हें टकराव झेलना पड़ा। ताजा विवाद की इस कड़ी में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का नाम जुड़ गया है।

 

केंद्र सरकार रिजर्व बैंक को अपनी आर्थिक नीतियों के हिसाब से चलाना चाहती है, जबकि रिजर्व बैंक का नजरिया आर्थिक नीतियों को लेकर सरकार से जुदा है। केंद्र सरकार के दबाव के कारण ही रिजर्व बैंक प्रबंधन ने स्वर मुखर किया है। इससे दोनों टकराव के रास्ते पर बढ़ रहे हैं। विवाद की वजह है केंद्र सरकार रिजर्व बैंक से तीन लाख करोड़ से ज्यादा रकम उसके रिजर्व पूंजी भंडार से मांग रही है, ताकि बैंकों में पूंजी की गतिशीलता को बढ़ाया जा सके। इससे पहले भी केंद्र सरकार की नीतियों से इत्तफाक नहीं रखने के कारण ही आरबीआई के गर्वनर रघुराम राजन को जाना पड़ा था। राजन ने इसका खुलासा भी किया था कि किस तरह केंद्र सरकार दबाव डाल कर हित साधना चाहती है।

 

राजन ने मौजूदा गर्वनर उर्जित पटेल को किसी भी सूरत में सरकार के दबाव में काम नहीं करने की सलाह दी है। आरबीआई से पहले सीबीआई विवाद सामने आ चुका है। केंद्रीय जांच ब्यूरो को बताया तो स्वायत्त जांच संस्थान जाता है, किन्तु यह केंद्र सरकार के इशारे पर ही चलता है। इसमें सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और संयुक्त निदेषक राकेश अस्थाना के विवाद में केंद्र सरकार की दखलंदाजी से साबित हो गया कि सीबीआई की स्वायत्तता केवल मात्र दिखावा है। सरकार के नजरिए के विपरीत चलने की कोशिश में टकराव निश्चित है। हालांकि यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है। इसमें सरकार ने अपने हित साधने का भरसक प्रयास किया।

 

सुप्रीम कोर्ट जैसी सर्वोच्च न्यायिक संस्था और केंद्र सरकार में जजों की नियुक्तियों को लेकर विवाद जगजाहिर है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने अपनी पीड़ा का इजहार आंसू बहाकर किया था। ठाकुर का कहना था कि जानबूझ कर न्यायिक अधिकारियों के पदों की संख्या नहीं बढ़ाई जा रही है। इससे मुकदमों की संख्या बढ़ती जा रही है।

 

केंद्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड भी केंद्र सरकार की वजह से विवादों में रहा। केंद्र सरकार ने पहलाज निहलानी को इसका चेयरमैन नियुक्त किया। निहलानी जबरदस्त विवादों में घिर गए। निहलानी पर अनावश्यक रूप से फिल्मों को पास करने में अड़ंगे लगाए जाने के आरोप लगे। जेम्स बान्ड से लेकर उड़ता पंजाब जैसी फिल्मों में अनावश्यक कट लगाए गये। बोर्ड के कामकाज से खफा होकर फिल्म इंडस्ट्री में व्यापक असंतोष फैल गया। केंद्र सरकार पर बोर्ड के जरिए छिपे हुए एजेंडे के अनुरूप काम करने के आरोप लगे। सरकार की ज्यादा किरकिरी होने पर निहलानी को रूखसत होना पड़ा। गीतकार प्रसून जोशी को बोर्ड का नया चेयरमैन नियुक्त किया गया।

 

सेंसर बोर्ड की तरह ही फिल्म इंस्टीट्यूट ऑफ पुणे में गजेन्द्र सिंह चौहान की नियुक्ति को लेकर कई दिनों तक हंगामा होता रहा। इंस्टीट्यूट में प्रशिक्षण ले रहे छात्र−छात्राएं हड़ताल पर चले गए। कई महीनों तक चले धरने, प्रदर्शन और प्रशिक्षण के बहिष्कार के बाद आखिरकार केंद्र सरकार को चौहान को हटाकर अभिनेता अनुपम खेर को अध्यक्ष नियुक्त करना पड़ा। हालांकि खेर ने अपनी व्यस्तता के चलते हाल ही में इस्तीफा दे दिया है। देखना यह है कि केंद्र सरकार अब किसे इसका अध्यक्ष नियुक्त करती है।

 

सत्ता में आते ही केंद्र सरकार ने योजना आयोग को भंग करके नीति आयोग का गठन किया। ख्यातनाम अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया को अमेरिका से लाकर आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया। पनगढ़िया की पटरी केंद्र सरकार से नहीं बैठ सकी। पनगढ़िया ने उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर वापस अमेरिका का रास्ता पकड़ लिया। पनगढ़िया ने हाल ही में केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के बीच चल रहे विवाद में बीच का रास्ता निकालने की सलाह दी है।

 

केंद्रीय चुनाव आयोग का केंद्र सरकार से अपराधियों के चुनाव लड़ने के मुद्दे पर टकराव हो गया। केंद्र सरकार ने गंभीर आपराधिक आरोपियों के चुनाव पर पाबंदी लगाने के चुनाव आयोग के परामर्श को मानने से इंकार कर दिया। इस पर आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई कि अपराधियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस मामले में कानून बनाने के निर्देश दिए। भाजपा पर केंद्र में सत्तारूढ़ होते ही देश भर में एनजीओं पर छापों की कार्रवाई को लेकर खूब उंगलिया उठीं। केंद्र सरकार पर एनजीओ की स्वायत्तता को दबाने के आरोप लगे। सरकार ने बड़ी संख्या में एनजीओं का रजिस्ट्रेशन निरस्त कर दिया। यह निश्चित है कि जिस तरह केंद्र सरकार का देश की स्वायत्त और संवैधानिक संस्थाओं से टकराव बढ़ रहा है, उससे देश में लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होंगी। कहने को भले ही सरकार नियमानुसार देशहित में काम करने की दलील दे, किन्तु सच्चाई यही है कि केंद्र सरकार का अनावश्यक हस्तक्षेप लोकतांत्रिक प्रणाली में रक्त वाहिनियों का काम करने वाले स्वायत्तशाषी संवैधानिक संस्थाओं में अवरोध उत्पन्न कर रहा है।

 

-योगेन्द्र योगी

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