कम्पाउंडर बनने लायक नहीं था लेकिन स्वास्थ्य मंत्री बना: शत्रुघ्न

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By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jan 30, 2017

कम्पाउंडर बनने लायक नहीं था लेकिन स्वास्थ्य मंत्री बना: शत्रुघ्न

गुवाहाटी। अभिनेता से नेता बने शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा है कि मैं तो कम्पाउंडर बनने की भी काबिलियत नहीं रखता था लेकिन मैंने स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर काम किया। यहां चल रहे ब्रह्मपुत्र साहित्य महोत्सव में रविवार को दीपा चौधरी के साथ बातचीत के दौरान सिन्हा ने कहा, ‘‘मैं तो कम्पाउंडर बनने की भी काबिलियत नहीं रखता था लेकिन मैंने देश के स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर काम किया।’’ बहरहाल, सिन्हा ने इस बात का उल्लेख किया कि उनके बड़े भाई एक डॉक्टर थे। उन्होंने भारत के लोगों को उन्हें प्यार और सम्मान देने के लिए उनका शुक्रिया अदा किया और बताया कि तब वह बम्बई कोई स्टार बनने के लिए नहीं बल्कि संघर्ष करने और एक अभिनेता बनने के लिए गये थे।

 

अपनी जीवनी ‘एनिथिंग बट खामोश’ के बारे में बात करते हुए सिन्हा ने कहा कि यह किसी के जीवन पर लिखी सबसे ईमानदार और पारदर्शी किताब है। दिग्गज अभिनेता ने कहा, ‘‘यह किताब सबसे अधिक बिकने वाली किताब बन गई है। इसमें कोई सनसनी नहीं है। किताब में किसी महिला का अनादर नहीं किया गया है। लेकिन इसमें सब कुछ है।’’ सिन्हा उस दौर को याद करते हैं जब कुछ लोगों ने उन्हें खूबसूरत दिखने के लिए अपने चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी कराने की सलाह दी थी लेकिन जब दिग्गज अभिनेता देव आनंद ने उन्हें ऐसा करने से रोका तो उन्होंने इसके खिलाफ फैसला किया। उन्होंने कहा, ‘‘देव साहब ने मुझसे कहा था, ऐसा मत करो, जैसे हो वैसे बने रहो। तब मैंने दुनिया को बताया कि मैं जैसा हूं वैसा ही मुझे स्वीकार किया जाए। मैंने अपने चेहरे, प्रतिभा और व्यक्तित्व को निखारने का काम किया।’’

 

सिन्हा ने कहा, ‘‘आज के युवाओं को मैं सुझाव देना चाहता हूं कि सर्वश्रेष्ठ से बेहतर बनें या सर्वश्रेष्ठ से कुछ अलग खुद को साबित करें.. ‘खामोश’ शब्द में रूखापन का भाव है लेकिन आज यह एक प्यारा शब्द बन गया है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे कहते हैं। दूसरों की नकल नहीं करें और अपनी भूमिका निभाएं।’’

 

राजनीति में आने के सवाल पर सिन्हा ने कहा कि ऐसा उन्होंने समाज के प्रति अपने दायित्व के कारण किया क्योंकि वह समाज के लिए कुछ करना चाहते थे। उन्होंने कहा, ‘‘रील लाइफ में स्टारडम के शिखर से वास्तविक जीवन में सबसे निचले स्तर की ओर जाना आसान नहीं होता। तब आपको उपहास, उपेक्षा, तिरस्कार और दमन का सामना करना पड़ता है। अगर आप इन्हें पार कर जाते हैं तब आपका जुनून सम्मान के लिए आपका मार्गदर्शन करेगा।’’

 

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