By अभिनय आकाश | Nov 04, 2024
बचपन में कहते थे कि जमीन को खोदो तो दूसरी तरफ अमेरिका में निकलोगे। दुनिया तो गोल है लेकिन मैप को जूम कर देखें तो अमेरिका एकदम पश्चिम में नजर आता है। आज बात उसी अमेरिका के लोकतांत्रिक पहलू और वहां के चुनाव की करेंगे। अमेरिका में अर्ली वोटिंग का भी प्रवाधान रहता है यानी ऐसा नहीं है कि एक ही दिन सभी 50 राज्यों के वोटर्स लाइन लगाकर वोट डाले। पहले भी वे वोट डाल सकते हैं। आप कह रहे होंगे कि विदेशी बात है हमे इससे क्या। तो भईया, जिस तरह से भारतवंशियों का प्रभाव बढ़ा है। उसी तरह से भारत के लोगों की रूचि भी अमेरिका को लेकर बढ़ी है। भारत से बहुत सारे लोग अमेरिका जाते हैं, पढ़ाई के वास्ते, काम को लेकर वहीं उनमें से कई लोग वहां बसने का विकल्प चुनते हैं। इन सब वजहों से वहां कई दशकों में भारतीय स्वर मजबूत हो गए हैं। इसके साथ ही जियोपॉलिटिक्स के हिसाब से देखें तो यदि भारत को अपनी बात को और वजनदार करना है तो ये बड़ा जरूरी है कि अमेरिका के साथ उसके रिश्ते कैसे रहे। आज हमने सोचा कि क्यों न अमेरिकी चुनाव से जुड़ा सार निकाला जाए और विस्तार से हिंदुस्तानी जुबान समझने वाले लोगों को ये बताया जाए कि ये पूरी प्रक्रिया होती कैसे है।
1. अमेरिकी चुनाव आयोग ECI जितना पावरफुल है?
अमेरिकी चुनाव की बात शुरू करने के साथ ही शुरुआत उस एजेंसी से करना लाजिमी है जिसके ऊपर पूरी प्रक्रिया को कंडक्ट कराने की जिम्मेदारी होती है। आपको बताते हैं कि अमेरिका का चुनाव आयोग कितना पावरफुल है। सबसे पहले तो आपको बता दें कि अमेरिकी चुनाव की प्रक्रिया डी सेंट्रलाइज है। अमेरिका का संविधान कुछ नियमों और दिशा निर्देश देता है बाकी एग्जिक्यूशन राज्यों के स्तर पर होता है। अमेरिका में एक फेडरल इलेक्शन कमीशन है। लेकिन इसकी जिम्मेदारी चुनाव कराने की नहीं है। ये सिर्फ फंडिंग और खर्च वगैरह पर नजर रखता है।
2. अमेरिका में एक साथ सात चुनाव
अमेरिका में नवंबर महीने के पहले सोमवार के बाद वाले मंगलवार को जनरल इलेक्शन डे होता है। इस दिन राष्ट्रपति चुनाव के साथ अलग-अलग राज्यों और स्थानीय स्तर के भी चुनाव होते हैं। 5 नवंबर 2024 को भी कई चुनाव एक साथ होंगे। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए मतदान के अलावा हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की 435 सीटों के लिए 2 वोटिंग होगी। इसके अलावा सीनेट की एक तिहाई सीटों के लिए मतदान होना है। 11 राज्यों के गवर्नर पद के लिए भी राष्ट्रपति चुनाव के साथ मतदान होंगे। कई राज्यों की विधानसभाओं के लिए भी 5 नवंबर को चुनाव होंगे। स्थानीय स्तर पर काउंटी, शहरों और नगरपालिकाओं में विभिन्न पदों जैसे मेयर, काउंटी कमिश्नर, स्कूल बोर्ड सदस्य के लिए चुनाव। कई राज्यों में जनमत संग्रह या बैलट इनिशिएटिव्स भी आयोजित किए जाएंगे।
3. अमेरिकी चुनाव में राज्यों की भूमिका
अमेरिका राज्यों की के राष्ट्रपति चुनाव भूमिका इसलिए में अहम है क्योकि राष्ट्रपति का चुनाव वोट से सीधे जनता के नहीं होता है। जनता के वोट एक 'इलेक्टोरल कॉलेज' नाम के ग्रुप के लिए होते हैं। यह इलेक्टोरल कॉलेज 'इलेक्टर्स' (चुनाव प्रतिनिधि) का एक ग्रुप है, जिनमें पार्टी के नेता, समर्थक और कार्यकर्ता शामिल होते हैं। हर राज्य को कुछ इलेक्टर्स दिए जाते है, जो उस राज्य के सेनेट और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स (प्रतिनिधि सभा) में उसकी हिस्सेदारी के हिसाब से होते हैं। यानी, ज्यादा जनसंख्या वाले बड़े राज्यों को ज्यादा इलेक्टर्स मिलते हैं, छोटे राज्यों को कम। इलेक्टर्स ही होते हैं जो राष्ट्रपति के लिए सीधे वोट डालते हैं। हर इलेक्टर का एक वोट होता है। किसी भी उम्मीदवार को राष्ट्रपति बनने के लिए कुल 538 में से कम से कम 270 इलेक्टोरल वोट जीतने की जरूरत होती है।
4. स्विंग स्टेट क्या है?
जो राज्य ज्यादातर रिपब्लिकन पार्टी को जिताते हैं उन्हें रेड स्टेट और जो डेमोक्रैटिक पार्टी को जिताते हैं उन्हें ब्लू स्टेट कहते हैं। उदाहरण के तौर पर टेक्सस रेड है और कैलिफॉर्निया ब्लू स्टेट है। वहीं, कुछ राज्य हैं जहां जहां दोनों पार्टियों के बीच काटे की टक्कर रहती है। इन्हें स्विंग स्टेट कहा जाता है, क्योकि ये किसी भी पार्टी की तरफ स्विंग कर सकते , यानी पलट सकते हैं।
5. स्विंग स्टेट पलट सकते हैं खेल?
अमेरिका के 50 राज्यों और राजधानी वॉशिंगटन डीसी में कुल 538 इलेक्टोरेल वोट्स यानी सीटें हैं। अकेले स्विंग स्टेट ही 93 सीटें हैं, जबकि चुनाव जीतने के लिए ट्रंप या कमला को 270 सीटें जीतन जरूरी है। ऐसे में स्विंग स्टेट ही अमेरिक का राष्ट्रपति तय करते हैं।
6. बैलेट पेपर के साइज को लेकर इतना चर्चा क्यों?
इस बार अमेरिकी चुनाव में वोटिंग के लिए बना लंबा बैलट पेपर भी विवाद का विषय बना है। लोगो का कहना है कि यह इतना लंबा है कि इसे भरने में 30 मिनट तक लग रहे है। इसमे गलती होने की भी आशंका बनी रहती है। अमेरिका के अधिकतर राज्यो में इस बार कई दशक बाद इतने लंबे बैलट पेपर का उपयोग हो रहा है। इस कारण यह भी आशंका जताई जा रही है कि 5 नवंबर को होने वाले चुनाव मे वोटर की लंबी लाइन और धीमी वोटिंग देखने को मिल सकती है जिससे विवाद भी हो सकता है।
7. टेक्नोलॉजी की डिबेट क्यों हुई तेज?
अमेरिकी चुनाव में तकनीक के प्रयोग को लेकर भी तेज बहस शुरू हो गई है। चुनाव आयोग के अधिकारी नेट यंग ने कहा कि यह सही है कि जब हम लगातार तकनीक को बेहतर होता देख रहे है तो यहां चुनाव प्रणाली अब भी अपेक्षाकृत पिछड़ी हुई है। दरअसल इस बार अमेरिका में चुनावी सिस्टम मे तकनीक के ज्यादा प्रयोग की बात हो रही थी, लेकिन उठे विवाद ने इस बारे में कदम रोक दिए है।
8. साल 2020 के चुनाव में क्या हुआ था
2020 के राष्ट्रपति चुनाव में तत्कालीन प्रेजिडेंट और इस बार रिपब्लिकन प्रत्याशी डॉनल्ड ट्रंप ने वोटो की गिनती में धांधली का आरोप लगाया था। उन्होंने नतीजे स्वीकार करने से इनकार कर दिया था और इसके खिलाफ वह अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट भी गए थे। ट्रंप ने आरोप लगाया था कि डेमोक्रैट बाइडन के पक्ष मे बढ़ा-चढ़ाकर गिनती की गई। हालांकि तब कोविड के कारण कई तरह के एहतियाती कदम भी उठाए गए थे। ट्रंप की ओर से परिणाम पर सवाल उठाने के बाद ही पूरे देश में चुनाव बाद हिंसा भी देखी गई थी।
9. रिजल्ट आने में कितना टाइम लगेगा?
अमेरिकी चुनाव में काउंटिंग कई स्टेप्स में होती है। हर राज्य का अपना तरीका है। कुछ राज्यों में महज चंद घंटों में गिनती पूरी हो जाती है, कहीं पर नतीजे आने में कई दिन लग जाते हैं। नवंबर में चुने गए इलेक्टर्स दिसंबर महीने के पहले बुधवार के बाद आने वाले मंगलवार को अपने-अपने राज्यों में मिलते हैं। यहां राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करते हैं और साइन किए सर्टिफिकेट राजधानी वॉशिंगटन डीसी भेजते हैं।
10. कार्यकाल के बीच राष्ट्रपति को कुछ हो जाए तो...
1841 में अमेरिकी राष्ट्रपति विलियम हेनरी के पद संभालने के 32 दिन बाद ही उनकी मृत्यु हो गई थी। ठीक उस वक्त अमेरिका में बहस छिड़ गई थी कि उपराष्ट्रपति जॉन टेलर को राष्ट्रपति की पूर्ण शक्तियां मिलेंगी या नहीं। अमेरिकी कानून में इससे संबंधित कोई निश्चित प्रावधान नहीं था। साल 1947 में प्रेसिडेंट सक्शेसन एक्ट लाया गया। एक्ट के अंतर्गत किसी अमेरिकी राष्ट्रपति के इस्तीफा देने या पद से हटाए जाने या मौत हो जाने पर फॉलो होने वाले 18 उत्तराधिकारियों का पूरा क्रम निश्चित है।