By रेनू तिवारी | Aug 16, 2022
सेटेलाइट और मिसाइलों को ट्रैक करने की सुविधा से लेस चीन के उच्च प्रौद्योगिकी वाले अनुसंधान जहाज 16 अगस्त की सुबह श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर उतार दिए गये हैं। जब से श्रीलंका और चीन के बीत बंदरगाह हंबनटोटा पर चीन के जहाजों को रूकने की अनुमति दी गयी है, यह मुद्दा भारत के लिए सिरदर्द बना हुआ हैं। चीन हंबनटोटा बंदरगाह से बहुत ही आसानी से भारत की जाजूसी कर सकता हैं। चीन ने 'अक्साई चीन' को लेकर भारतीय रणनीति की खबर लेने की मंशा से श्रीलंका से उनसे यह डील की है।
भारत की जाजूसी के लिए चीन ने तैनात किए हंबनटोटा में जहाज
चालाक चीन वैश्विक दबाव के कारण भारत से भिड़ने की कोशिश कर रहा हैं और लगातार कभी सीमा पर अरूणाचल प्रदेश और गलवान पर अपना दावा ठोक रहा हैं। चीन दुनिया की महाशक्ति बनना चाहता है जासूसी जहाज समुद्र के तल का नक्शा बना सकता है जो चीनी नौसेना के पनडुब्बी रोधी अभियानों के लिए महत्वपूर्ण है। इस चीनी जहाज युआन वांग 5 को को एक अनुसंधान और सर्वेक्षण के रूप में, 2007 में बनाया गया था और इसकी क्षमता 11,000 टन है।
चीन ने जासूसी जहाज की तैनाती पर क्या कहा?
चीन ने कहा कि श्रीलंका ने उसके उपग्रह और मिसाइल निगरानी पोत को अपने हम्बनटोटा बंदरगाह पर आने की अनुमति दे दी है, लेकिन उसने श्रीलंका के साथ हुई उस बातचीत का ब्योरा नहीं दिया जिसके बाद द्वीपीय देश की सरकार द्वारा बीजिंग के जहाज के प्रवेश को टालने के पहले के रुख को बदल दिया गया। श्रीलंका ने पहले खबरों के अनुसार भारत और अमेरिका की चिंताओं के बीच चीन से अपने पोत को भेजने के कार्यक्रम को टालने को कहा था, लेकिन कुछ दिन बाद उसने चीन को जहाज हम्बनटोटा बंदरगाह भेजने की अनुमति दे दी। इस बारे में जब यहां एक प्रेस वार्ता में चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन से पूछा गया तो उन्होंनेकहा, ‘‘जैसा कि आपने कहा कि श्रीलंका ने युआन वांग-5 को उसके बंदरगाह पर लंगर डालने की अनुमति दे दी है।’’ हालांकि वांग ने जहाज आने की अनुमति देने के संबंध में कोलंबो से हुई बातचीत का ब्योरा देने से इनकार कर दिया।
क्या हुई है चीन और श्रीलंका के बीच डील?
जब वांग से पूछा गया कि क्या सलाह-मशविरा हुआ तो उन्होंने कहा, ‘‘आपने जो विशिष्ट प्रश्न पूछा है, उसके जवाब में कहना चाहूंगा कि हमने कई बार चीन का रुख स्पष्ट किया है।’’ जब श्रीलंका ने चीन से जहाज के प्रवेश को स्थगित करने को कहा था तो चीन ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि कुछ देशों द्वारा कोलंबो पर दबाव बनाने के लिए तथाकथित ‘‘सुरक्षा चिंताओं’’ का हवाला देना और उसके आंतरिक मामलों में ‘‘पूरी तरह हस्तक्षेप करना’’ बिल्कुल अनुचित है। श्रीलंका के विदेश मंत्रालय के 13 अगस्त के आदेश में कहा गया कि कोलंबो ने कुछ चिंताओं को लेकर गहन परामर्श किया है। मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि उसने पांच अगस्त को चीनी दूतावास से अनुरोध किया था कि चीन के जहाज की हम्बनटोटा बंदरगाह के लिए 11 से 17 अगस्त के बीच प्रस्तावित यात्रा को मंत्रालय के साथ उठाई गयी कुछ चिंताओं के मद्देनजर मामले में आगे बातचीत होने तक टाला जाए।
श्रीलंका सरकार पहले ठुकरा दिया था चीन का ऑफर
श्रीलंका सरकार ने कहा कि उसने चीन के उच्च प्रौद्योगिकी वाले अनुसंधान जहाज को ‘‘पुन: पूर्ति’’ के लिए 16 अगस्त से 22 अगस्त तक दक्षिण बंदरगाह हंबनटोटा पर रूकने की अनुमति दे दी थी। पहले श्रीलंका ने भारत की चिंता के बीच चीन से इस जहाज का आगमन टालने को कहा था। बैलेस्टिक मिसाइल एवं उपग्रह का पता लगाने में सक्षम ‘युआन वांग 5’ नामक यह जहाज पहले बृहस्पतिवार को पहुंचने वाला था और 17 अगस्त तक बंदरगाह पर रूकने वाला था। लेकिन, भारत द्वारा सुरक्षा चिंता व्यक्त किये जाने के बाद श्रीलंका के विदेश मंत्रालय ने पिछले सप्ताह चीनी दूतावास से इस जहाज का आगमन टाल देने का अनुरोध किया था। फिर, यह जहाज निर्धारित कार्यक्रम के तहत बृहस्पतिवार को नहीं पहुंचा। एक बयान में श्रीलंका के विदेश मंत्रालय ने कहा कि उसने यहां चीनी दूतावास को जहाज को (यहां हंबनटोटा बंदरगाह पर) 16 अगस्त से 22 अगस्त तक ठहरने की सरकार की मंजूरी से अवगत कराया है।
भारत की करोड़ो की मदद का श्रीलंका ने ऐसे दिया जवाब
बयान में कहा गया है, ‘‘ अंतरराष्ट्रीय बाध्यताओं को पूरा करते हुए सभी देशों के वैध हितों की सुरक्षा करना श्रीलंका की मंशा है।’’ मंत्रालय ने कहा कि 28 जून को चीन ने श्रीलंका सरकार को बताया कि ‘युआन वांग 5’ पुन:पूर्ति के लिए हंबनटोटा पर 11 अगस्त से 17 अगस्त के लिए आएगा। उसने कहा कि रक्षा मंत्रालय की कुछ आपत्तियों के आलोक में सरकार ने पांच अगस्त को चीनी दूतावास से ‘इस विषय पर और विचार-विमर्श कर लिये जाने तक ’ हंबनटोटा पर जहाज का आगमन टालने का अनुरोध किया।
हंबनटोटा बंदरगाह क्यों है महत्वपूर्ण
बयान के अनुसार राजनयिक चैनलों के माध्यम से उच्च स्तर पर संबंधित पक्षों के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया गया तथा समाधान हेतु मित्रता, परस्पर विश्वास, सभी पक्षों के हितों एवं राज्यों की संप्रभुता को भी ध्यान दिया गया। उसके अनुसार 12 अगस्त को चीनी दूतावास ने जहाज के लिए नयी तारीख 16 अगस्त से 22 अगस्त के लिए आवेदन दिया। बयान के मुताबिक ‘सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद’ चीनी दूतावास को 16-22 अगस्त के दौरान जहाज के ठहरने के लिए मंजूरी की सूचना दी गयी। यह जहाज फिलहाल हंबनटोटा के पूरब में 600 समुद्री मील की दूरी पर आगे की यात्रा के लिए मंजूरी का बाट जोहरहा है।
इस बीच, इस मामले से श्रीलंका में बड़ा विवाद उत्पन्न हो गया। विपक्ष ने सरकार पर इस मुद्दे को ढंग से नहीं संभाल पाने का आरोप लगाया है। दक्षिण में गहरे सागर में स्थित हंबनटोटा बंदरगाह को उसकी अवस्थिति को लेकर रणनीतिक दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
भारत का रूख!
इस बंदरगाह को काफी हद तक चीनी ऋण से विकसित किया गया था। भारत ने कहा है कि उसके सुरक्षा एवं आर्थिक हितों पर असर डालने वाले किसी भी घटनाक्रम पर उसकी नजर है। भारत श्रीलंका के बंदरगाह पर जाने के दौरान इस जहाज की ट्रैकिंग प्रणाली द्वारा भारतीय प्रतिष्ठानों की जासूसी की कोशिश करने की आशंका से चिंतिंत है। भारत ने हिंद महासागर में चीनी सैन्य जहाजों के प्रति पारंपरिक रूप से कड़ा दृष्टिकोण अपनाया था और श्रीलंका में उनकी किसी भी यात्रा का विरोध किया था। वर्ष 2014 में जब श्रीलंका ने परमाणु क्षमता वाली एक चीनी पनडुब्बी को अपने एक बंदरगाह पर आने की अनुमति दी थी तब उसके और भारत के बीच रिश्ते में तनाव पैदा हो गया था।
इस सोमवार को चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि तथाकथित ‘सुरक्षा चिंताओं’ का हवाला देकर कुछ देशों द्वारा श्रीलंका पर दबाव बनाना ‘‘पूरी तरह अनुचित’’ है। भारत ने शुक्रवार को चीन के ‘आक्षेप’ को खारिज किया कि उसने चीनी जासूसी जहाज की निर्धारित यात्रा के विरूद्ध श्रीलंका पर दबाव डाला लेकिन यह जरूर कहा कि वह अपनी सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखकर निर्णय लेगा। नयी दिल्ली में पिछले महीने विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने चीनी जहाज की प्रस्तावित यात्रा के बारे में पूछे जाने पर कहा था, ‘‘ अगस्त में हंबनटोटा बंदरगाह पर इस जहाज की प्रस्तावित यात्रा की खबरों की हमें जानकारी है। सरकार ऐसे किसी भी घटनाक्रम पर बहुत सावधानीपूर्वक नजर रखती है जिसका भारत के सुरक्षा एवं आर्थिक हितों पर असर हो सकता है। सरकार उन हितों की सुरक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाती है।