By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Mar 21, 2017
मथुरा। तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने कहा है कि अरुणाचल प्रदेश में उनकी उपस्थिति पर ऐतराज उठाने वाले चीनी अधिकारी खुद यहां आकर देखें कि वह तवांग के लोगों को क्या पढ़ाता हूं या क्या सिखाता हूं। दलाई लामा गोकुल के निकट उदासीन संप्रदाय के रमण रेती आश्रम में दो दिन के भ्रमण पर आए हुए हैं। वह आज आश्रम परिसर में स्थापित की गई बौद्ध प्रतिमा का अनावरण करेंगे। उन्होंने सोमवार को संवाददाताओं से तवांग की यात्राओं पर लगातार उठने वाले सवालों के जवाब में बताया, ‘‘मैं 1959 में मार्च माह के अंतिम दिनों में तवांग के रास्ते ही तिब्बत छोड़कर भारत आया था। इसीलिए तवांग के लोग मुझसे प्रेम रखते हैं। वे अधिकतर बौद्ध ही हैं। वे मुझे सात बार बुला चुके हैं। मैं वहां जाता हूं। कुछ शिक्षाएं देता हूं। इस बार भी यही करूंगा। मैं चाहता हूं चीनी अफसर भी वहां आएं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘असल में चीन के कुछ कट्टर सोच वाले अधिकारी ही मेरे बारे में उल्टा सोचते हैं, जबकि वहां की 40 करोड़ बौद्ध आबादी हममें बेहद आस्था रखती है। प्रति सप्ताह 10 या 20 चीनी बौद्ध मुझे देखने, मुझसे मिलने आते हैं और जब वे मुझसे मिलते हैं तो भाव-विह्वल हो उनके आंसू निकल पड़ते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘दुनिया की 7 अरब की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा भारत व चीन में रहता है। ये दोनों ही महान देश हैं। दोनों प्राचीन परंपराओं वाले देश हैं। चीन में 40 करोड़ बौद्ध हैं, जबकि बौद्ध धर्म का जन्म भारत में हुआ। यहीं से बौद्ध चीन और दुनिया के अन्य देशों में पहुंचा। चीन और भारत के आपसी आर्थिक हित भी जुड़े हुए हैं। इनके बीच संबंध बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसलिए दोनों देशों को नए परिप्रेक्ष्य में सोचना चाहिए।’’ उन्होंने कहा, ‘भले ही अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपना सैन्य बजट बढ़ा दिया हो, परमाणु हथियारों में वृद्धि की हो या फिर कुछ अन्य देशों ने भी उनका अनुसरण किया हो। लेकिन ज्यादातर देशों ने परमाणु हथियारों में कमी की है, जिनमें जापान जैसे देश प्रमुख हैं। जिसने परमाणु हमले को झेला है।’’
दलाई लामा ने कहा, ‘‘चीजें बदल रही हैं। लोग शांति चाहते हैं। उन्होंने प्रथम व द्वितीय विश्व युद्धों से काफी कुछ सीखा है। उन्होंने बहुत कुछ परेशानियां झेली हैं। अब वे हिंसा नहीं चाहते।’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘फासीवादी सोच वाले जर्मनी और फ्रांस में परिवर्तन हुआ। इन दोनों देशों ने ही मिलकर यूरोपीय संघ की स्थापना की पहल की। यह अलग बात है कि कुछ निजी कारणों से ब्रिटेन अलग हो गया। किंतु उसके भी सारे नागरिक ऐसा नहीं चाहते थे। सीधी सी बात है लोगों की सोच में परिवर्तन हुआ जो नेताओं की सोच से कहीं बड़ी चीज है।’’
इससे पूर्व दलाई लामा ने अपने उद्बोधन में दुनिया की वर्तमान चुनौतियों पर विचार प्रकट करते हुए कहा, ‘‘आज मानवता के समक्ष ग्लोबल वार्मिंग, आतंकवाद जैसी कई ज्वलंत समस्याएं हैं। जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। कई जगह लोग भूख से मर रह रहे हैं। लेकिन उनकी ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘पूरे विश्व में अधिकतर समस्याएं तो ऐसी हैं जो इंसान की खुद पैदा की हुई हैं। उन पर काबू पाया जा सकता है। यदि लोग उनसे निपटने की ठान ले तो। और इसके लिए उन्हें ऐसा निश्चय कर लेने भर की देर है। उनमें समस्याओं से निपटने की क्षमता है। अगर वे ऐसा करना चाहें। असंभव कुछ भी नहीं। यह सब खुद उन पर ही निर्भर करता है।’’
तिब्बती धर्मगुरु ने कहा, ‘‘असल में प्रसन्नता किसी विशेष धर्म, धन या शक्ति पा लेने में नहीं है। वह तो अंत:करण से फूटती है। विचारों में होती है। इसलिए उसे कहीं बाहर नहीं खोजा जा सकता।...हमें आपसी सद्भाव बनाने की जरूरत है। लोगों को शिक्षित करें। इससे संपूर्ण विश्व में शांति का वातावरण बनाया जा सकता है।’’ आश्रम में बालकों को श्लोक-वाचन करते देखा तो उन्होंने कहा, ‘मैं जानता हूं संस्कृत देवभाषा है। यह बहुत प्राचीन भाषा है। इसे पुर्नस्थपित करने के प्रयास किए जाने चाहिए।'