By अभिनय आकाश | May 31, 2023
इस महीने हिरोशिमा में क्वाड शिखर सम्मेलन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा से पहले ड्रैगन ने अपने रंग बदलने शुरू कर दिए हैं। लगातार सीमा पर अपनी हरकतों से बाज नहीं आने वाले चीन ने भारत के नए संसद भवन की शान में कसीदे पढ़े हैं। चीन ने नए संसद भवन के उद्घाटन का स्वागत किया है। सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने नए संसद भवन को महान प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित किया है। ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि भारत सरकार द्वारा निर्मित नए संसद भवन का उद्देश्य भारतीय राजधानी को औपनिवेशिक युग के निशान से मुक्त करना है।
उपनिवेशवाद के प्रतीकों को हटाने के लिए कई कदम उठाए
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि भारत ने उपनिवेशवाद के प्रतीकों को हटाने के लिए कई बड़े कदम भी उठाए हैं, जिनमें औपनिवेशिक इतिहास से जुड़ी बजट प्रथाओं को बदलने और अंग्रेजी के आधिकारिक उपयोग को कम करने और हिंदी भाषा के उपयोग को बढ़ाने जैसे कई उपाय शामिल है। सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा उपनिवेशवाद के अवशेषों को लोगों के दिलों से हटाना, जो निस्संदेह नाम बदलने या लेबल हटाने से अधिक कठिन है।
भारत अपने विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में सफल हो
भारत लगभग 200 वर्षों तक ब्रिटेन द्वारा उपनिवेश रहा था, और भारत में औपनिवेशिक प्रभाव के निशान व्यापक और गहन दोनों हैं। यह कल्पना की जा सकती है कि औपनिवेशीकरण का कार्य कितना विशाल है। 1968 में भारत सरकार ने नई दिल्ली में एक प्रमुख स्थल, इंडिया गेट के सामने स्थित किंग जॉर्ज पंचम की मूर्ति को हटा दिया। फिर, 8 सितंबर, 2022 को मोदी सरकार ने महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की मृत्यु के दिन इंडिया गेट के सामने राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ कर दिया। औपनिवेशीकरण की प्रक्रिया आधी सदी से चली आ रही है, एक लंबी प्रक्रिया धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है। चीन कामना करता है कि भारत अपने विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में सफल हो।
चीन और भारत के बीच विवाद पैदा करने में लगा अमेरिका
उस समय ब्रिटेन भारत पर फूट डालो और राज करो की रणनीति के माध्यम से लगभग 200 वर्षों के औपनिवेशिक शासन को लागू करने में सक्षम था। अब, पश्चिम, विशेष रूप से अमेरिका, बड़े पैमाने पर फूट डालो और राज करो का छिपु रूप में प्रयास कर रहा है। अखबार ने लिखा कि अमेरिका हाथी ड्रैगन दुश्मनी की मनगढ़ंत अवधारणा को आगे बढ़ाकर चीन और भारत के बीच विवाद पैदा करने में व्यस्त है। उसके पास अब इतनी शक्ति तो नहीं है कि वो भारत और चीन को अपने अधीन कर ले। इसलिए वो अपने फायदे के लिए दोनों देशों के बीच दरार पैदा कर रहा है। ये औपनिवेशिक मानसिकता का ही एक रूप है।