By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Dec 29, 2020
काठमांडू। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के एक उपमंत्री गुओ येझु ने मंगलवार को मुख्य विपक्षी नेपाली कांग्रेस के प्रमुख शेर बहादुर देउबा से मुलाकात की और प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली द्वारा संसद को भंग करने के बाद देश में ताजा राजनीतिक घटनाक्रम पर चर्चा की। ‘काठमांडू पोस्ट’ ने विदेश मंत्री नारायण खडका के हवाले से बताया है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के अंतरराष्ट्रीय विभाग के उपमंत्री गुओ के नेतृत्व में चार सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल और पूर्व प्रधानमंत्री देउबा के बीच बातचीत में नेपाल और चीन के संबंधों पर चर्चा हुई। अखबार के मुताबिक, उन्होंने नेपाल में राजनीतिक घटनाक्रम पर चर्चा की। गुओ ने चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की ओर से अगले साल सीपीसी की 100 वीं वर्षगांठ पर उन्हें चीन के दौरे का न्यौता दिया। देउबा के प्रधानमंत्री रहने के दौरान विदेश नीति के सलाहकार रहे दिनेश भट्टराई ने इस बारे में बताया। भट्टराई ने कहा कि देउबा ने राष्ट्रपति चिनफिंग, सीपीसी और चीन के लोगों को शुभकामनाएं दीं।
सीपीसी अगले साल बीजिंग में बड़ा समारोह आयोजित करेगी। भट्टराई ने कहा कि उन्होंने दोनों देशों के द्विपक्षीय विषयों से जुड़े मामलों पर चर्चा की। चीनी प्रतिनिधिमंडल और देउबा के बीच बैठक के दौरान खडका और भट्टराई मौजूद थे। गुओ ने भी दोनों देशों के संबंधों को बेहतर बनाने में नेपाली कांग्रेस के संस्थापक अध्यक्ष और पहले निर्वाचित प्रधानमंत्री बी पी कोईराला के योगदान की सराहना की। भट्टराई ने कहा कि वर्ष 1960 में जब कोईराला प्रधानमंत्री थे, उस समय नेपाल और चीन ने शांति और मित्रता को लेकर समझौते, सीमा प्रोटोकॉल पर दस्तखत किए थे। माउंट एवरेस्ट के क्षेत्र संबंधी विवाद को सुलझाया गया और नेपाल-चीन के संबंधों को नयी दिशा दी गयी। इससे पहले, गुओ ने राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी, प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’, माधव नेपाल, पूर्व प्रधानमंत्री झालानाथ खनल और जनता समाजवादी पार्टी के नेता बाबूराम भट्टराई से मुलाकात की थी।
मौजूदा हालात का आकलन करने के अलावा चीनी प्रतिनिधिमंडल ने संसद भंग करने के राजनीतिक असर, नेपाल की स्थिरता और विकास पर संभावित असर, नेपाल-चीन के रिश्तों, चीन की मदद वाली योजनाओं की स्थिति जैसे विषयों पर भी चर्चा की। सीपीसी प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात करने वाले कुछ नेताओं ने इस बारे में बताया। नेपाल में 20 दिसंबर को उस वक्त राजनीतिक संकट शुरू हो गया था, जब चीन के प्रति झुकाव रखने वाले ओली ने 275 सदस्यीय सदन को भंग करने की सिफारिश कर दी। प्रचंड के साथ सत्ता को लेकर चल रही रस्साकशी के बीच यह घटनाक्रम हुआ। प्रधानमंत्री ओली की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति भंडारी ने उसी दिन प्रतिनिधि सभा भंग कर दी और अगले साल 30 अप्रैल एवं 10 मई में नये चुनाव कराए जाने की घोषणा कर दी। इस पर एनसीपी के प्रचंड नीत गुट ने विरोध किया। इस घटनाक्रम से चिंतित चीन ने अपने उप मंत्री गुओ को काठमांडू भेजा। इससे पहले, नेपाल में चीन की राजदूत होउ यांकी ने ओली और प्रचंड के बीच गतिरोध दूर करने की कोशिश की थी।
जीत के बाद एक एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टी का गठन होने वाला था। मई 2018 में दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों का विलय हो गया और उन्होंने एनसीपी नाम से एक नया राजनीतिक दल बनाया था। यह पहला मौका नहीं है, जब चीन ने नेपाल के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप किया है। मई और जुलाई में चीनी प्रतिनिधि ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और प्रचंड सहित एनसीपी के अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ अलग-अलग बैठकें की थी। उस वक्त ओली पर इस्तीफे के लिए दबाव बढ़ रहा था। नेपाल के विभिन्न राजनीतिक दलों के कई नेताओं ने चीनी राजदूत की सत्तारूढ़ दल के नेताओं के साथ सिलसिलेवार बैठकों को नेपाल के अंदरूनी राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप बताया था। ‘ट्रांस- हिमालयन मल्टी डाइमेंशनल कनेक्टिविटी नेटवर्क’ सहित ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के तहत अरबों डॉलर का निवेश किए जाने के साथ हाल के वर्षों में नेपाल में चीन का राजनीतिक दखल बढ़ा है। चीनी राजदूत ने निवेश के अलावा ओली के लिए खुले तौर पर समर्थन जुटाने की भी कोशिशें की।