By अभिनय आकाश | Jul 28, 2021
पिछले काफी समय से अफगानिस्तान लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। चाहे वो अमेरिकी सेना के काबुल छोड़ने की वजह से हो या फिर तालिबान के दोबारा उस पर कब्जे की साजिश। लेकिन हर देश में कभी व्यापार तो कभी निवेश के नाम पर घुसपैठ करने वाले चीन की नजर अब अफगानिस्तान पर है। अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद रिक्त स्थानों को भरने की कोशिश में तालिबान हथियारों के बल पर कब्जे की कोशिश में तो लगा ही है। इसके अलावा चीन भी अफगानिस्तान के अंदर मौके तलाश रहा है।
अमेरिका वाली गलती दोहरा रहा चीन?
2016 में अफगानिस्तान के वखान में चीनी सैन्य वाहन को पैट्रोलिंग करते देखा गया था। ये अफगानिस्तान में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की दस्तक की पहली घटना थी। चीन को अफगानिस्तान में पैट्रोलिंग की जरूरत क्यों पड़ गई? इस सावल का जवाब आपके आगे पता चलेगा। लेकिन एक बात तो एकदम साफ है कि चीन अफगानिस्तान में दाखिल होने की पूरी तैयारी में है। चीन और पाकिस्तान ने अफगानिस्तान को “आतंकवाद का गढ़” बनने से रोकने और आतंकवादी ताकतों को वहां से निकालने के लिए युद्धग्रस्त देश में “संयुक्त कार्रवाई” शुरू करने का निर्णय लिया है। सबसे बड़ी विडंबना ये है कि पाकिस्तान द्वारा तालिबान का समर्थन जगजाहिर है। अमेरिका ने तालिबान से मुकाबले के लिए पाकिस्तान पर भरोसा किया। नतीजतन दो दशक के बाद निराशा के साथ उसे वापसी करनी पड़ी। चीन वही गलती दोहरा रहा है। चीन पाकिस्तान जैसे देश के साथ संयुक्त ऑपरेशन को अंजाम देना चाहता है जिसके दहशतगर्दी को समर्थन जगजाहिर है। चीन ने पहले अफगानिस्तान में डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के जरिये वहां अपनी पैठ बनाने की शुरुआत की और अब पाकिस्तान के साथ मिल सैन्य कार्रवाई का प्लान बना रहा है।
पाक के साथ संयुक्त ऑपरेशन
कहानी की शुरुआत तब होती है जब पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी 24 जुलाई को चीन की यात्रा पर जाते हैं और अपने समकक्ष से बीजिंग में मुलाकात करते हैं। चेंगदू में वांग के साथ हुई वार्ता का मुख्य एजेंडा अफगानिस्तान रहा। अफगानिस्तान के हालिया घटनाक्रम चीन की चिंता बढ़ा रहे हैं क्योंकि उसकी सीमा भी अफगानिस्तान के साथ लगती है। अफगानिस्तान में अव्यवस्था से चीन भी अछूता नहीं रह सकता। चीनी विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर पोस्ट की गई प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि वांग ने कुरैशी के साथ हुई बातचीत में कहा कि एक पड़ोसी होने के नाते अफगान स्थिति का चीन और पाकिस्तान पर सीधा प्रभाव पड़ेगा इसलिए दोनों देशों के लिए यह आवश्यक है कि आपसी सहयोग को मजबूत करें और परिवर्तन पर प्रतिक्रिया दें। हालिया पाकिस्तान में अपने नागरिकों पर हुए हमले को लेकर पहले ही बहुत चिंतित है। चीन इस तरह की घटना को दोबारा नहीं होने देना चाहता है।
जवानों के जरिये प्रवेश के रास्ते को सुरक्षित करने में लगा चीन
चीन इसके लिए पूरी तरह से तैयार है। पीएलए के सैनिक अफगान बॉर्डर नजदीक तैनात हैं। मीडिया रिपोर्ट की माने तो एक हजार के करीब चीनी सैनिक पीओके में मौजूद हैं। पहले तो पीओके में चीनी निवेश और अब चीनी सैनिकों की मौजूदगी, जैसे मानों भारतीय संप्रभुता का उल्लंघन चीन की आदत में सुमार है। इसके साथ ही चीन ने तजिक-अफगान बॉर्डर पर अपने सैनिकों की तैनाती कर दी है। जिसकी वजह है चीन अफगानिस्तान में प्रवेश के रास्ते को सुरक्षित कर रहा है। 2016 से ही चीन अफगानिस्तान में एंट्री के लिए निगरानी में लगा था। चीन पहले से ही यहां प्रवेश की फिराक में था बस उसे तलाश थी एक अवसर की।
अफगानिस्तान को सीपीईसी का हिस्सा बनाएगा चीन
अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान से तेजी से हो रही वापसी के बीच अपने हितों के लिए चीन ये खाली जगह भरने की तैयारी में है। चीन अब अफगानिस्तान को भी चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर सीपीईसी का हिस्सा बनाने की प्लानिंग कर रहा है। अफगानिस्तान में करीब 20 साल तक तालिबान और अलकायदा से जंग लड़ने के बाद अमेरिका अब वापस लौट रहा है। चीन अगर अपने मकसद में कामयाब होता है तो ये भारत की चिंता की बात हो सकती है। चीन कके मंसूबे यहां के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करने की है। इसी वजह से चीन करीब 62 अरब डॉलर के बेल्ट एंड रोड कॉरिडोर का हिस्सा कहे जाने वाले सीपीईसी का विस्तार अफगानिस्तान तक करना चाह रहा है। सूत्रों की माने तो अफगानी अधिकारी भी अब चीन की इस परियोजना के अपने देश में विस्तार पर विचार करने लगे हैं। चीन का मकसद बेल्ट एंड रोड परियोजना के जरिये पूरी दुनिया को चीन से जोड़ने का है। इसके लिए वो कई देशों में भारी मात्रा में निवेश कर रहा है। सीपीईसी प्रोजेक्ट के तहत चीन सड़क, रेलवे और ऊर्जा पाइपलाइन बिछाने के लिए पाकिस्तान को बड़े पैमाने पर लोन दे रहा है। इस परियोजना को साल 2049 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। चीन पाकिस्तान के पेशावर शहर से अफगानिस्तान की राजधानी काबुल तक एक रोड बनाना चाह रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो इस बारे में चीन और अफगान अधिकारियों के बीच बातचीत चल रही है। काबुल और पेशावर के बीच रोड बनते ही अफगानिस्तान सीपीईसी का औपचारिक रूप से हिस्सा बन जाएगा।