By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Sep 07, 2023
चीन तीन दशकों से अधिक समय से अपने मानवाधिकार रिकॉर्ड की आलोचना को रोकने के लिए संघर्ष कर रहा है। इसे 1989 में तियानमेन स्क्वायर नरसंहार पर आक्रोश के तूफान का सामना करना पड़ा और हाल के वर्षों में मुस्लिम उइगरों को बड़े पैमाने पर कैद करने की निंदा की गई। हर बार, चीनी सरकार को अपने ही दमन के कूटनीतिक नतीजों से निपटना पड़ा है। इस आलोचना से ध्यान हटाने के लिए, चीनी राजनयिक और प्रचारक विभिन्न दावे कर रहे हैं। एक ओर, उन्होंने विकासशील देशों को इस विचार के पीछे एकजुट करने की कोशिश की है कि ‘‘जीवन निर्वाह का अधिकार’’ अन्य मानवाधिकारों की चिंताओं से ऊपर है। बाकी समय सरकार ने पारंपरिक चीनी ‘‘कन्फ्यूशियस मूल्यों’’ की अभिव्यक्ति के रूप में अपनी तानाशाही को उचित ठहराया है।
ये व्यक्तिगत अधिकारों से अधिक कर्तव्य और सामाजिक सद्भाव के महत्व पर जोर देते हैं। हालांकि, अब सरकार ने इस आलोचना के जवाब में एक सुसंगत वैचारिक रणनीति बनाई है। चीन न केवल प्रतिरोध करना चाहता है, बल्कि शीत युद्ध के बाद की अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के मूलभूत विचार-मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता को भी नष्ट करना चाहता है। ‘लोकतांत्रिक’ मूल्यों में छिपा एक नया दृष्टिकोण सरकार की नयी रणनीति को ‘वैश्विक सभ्यता पहल’ कहा जाता है। यह चीनी पार्टी-सत्ता के विदेशी प्रचार शस्त्रागार में एक प्रमुख हथियार बन गया है। इस पहल की घोषणा सबसे पहले मार्च में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने की थी। यह पहले से घोषित दो (और इसी तरह नामित) राजनयिक उपकरणों: वैश्विक विकास पहल और वैश्विक सुरक्षा पहल का पूरक है।
साथ में, ये जानबूझकर अस्पष्ट अवधारणाएं अंतरराष्ट्रीय संस्थानों और मानदंडों पर चीन के प्रभाव का विस्तार करने के लिए तैयार की गई हैं। वे ‘‘चीनी राष्ट्र के महान नवीनीकरण’’ के लिए शी की योजना को भी आगे बढ़ाते हैं। ‘वैश्विक सभ्यता पहल’ की घोषणा करते हुए शी ने ‘‘न्याय, लोकतंत्र और स्वतंत्रता’’ जैसे ‘‘मानवता के सामान्य मूल्यों’’ पर आधारित ‘‘अंतर-सभ्यतागत संवाद और सहयोग के लिए वैश्विक नेटवर्क’’ बनाने के बारे में ऊंचे आदर्श सामने रखे। तब से, इन विषयों को चीन के मीडिया संस्थानों और उसके विदेशी प्रचारकों द्वारा व्यापक रूप से दोहराया गया है। हालांकि, सच्चाई यह है कि यह पहल एक तरह से ऐसी प्रणाली का प्रतिनिधित्व करती है जिसमें सर्व-शक्तिशाली चीन ‘ग्लोबल साउथ’ के समान विचारधारा वाले देशों के पदानुक्रम में सबसे ऊपर बैठता है।
मानवाधिकारों के प्रति चयनात्मक दृष्टिकोण चीन की नयी पहल का मानवाधिकारों पर महत्वपूर्ण असर हो सकता है। सबसे पहले, उदार अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में सार्वभौमिक मानवाधिकारों के सम्मान के विपरीत, चीन की रणनीति प्रत्येक देश की ‘‘राष्ट्रीय स्थितियों और अद्वितीय विशेषताओं’’ के आधार पर एक सांस्कृतिक सापेक्षवादी दृष्टिकोण की मांग करती है। दूसरे शब्दों में कहें तो मानवाधिकारों का कोई सार्वभौमिक मानक होना ही नहीं चाहिए। इसके बजाय, प्रत्येक देश को अपनी संस्कृति और परंपराओं के अनुसार मानवाधिकार रक्षा विकसित करनी चाहिए। जैसा कि चीन के पूर्व विदेश मंत्री किन गैंग ने इस वर्ष की शुरुआत में कहा था: मानवाधिकारों की रक्षा में कोई एक समान मॉडल नहीं है।
यह दृष्टिकोण समस्याग्रस्त है क्योंकि यह सरकारों को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों को चुनिंदा रूप से लागू करने की अनुमति देता है। यह चीन के अपने मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए एक पर्दा भी पेश करता है। समान विचारों वाले तानाशाहों का एक नेटवर्क वैश्विक सभ्यता पहल द्वारा मानवाधिकारों को खतरे में डालने का दूसरा तरीका असहिष्णु और अधिनायकवादी शासनों के बीच अधिक सहयोग को बढ़ावा देना है। पहल की घोषणा करते हुए, शी ने चीन और पश्चिमी लोकतंत्रों के बीच अंतर की बात स्पष्ट कर दी: चीनी कम्युनिस्ट पार्टी अंतरराष्ट्रीय निष्पक्षता और न्याय की रक्षा करना और विश्व शांति और स्थिरता को बढ़ावा देना जारी रखेगी। आधुनिकीकरण को आगे बढ़ाने में, चीन न तो उपनिवेशीकरण और लूट के पुराने रास्ते पर चलेगा, न ही कुछ देशों द्वारा मजबूत होने के बाद आधिपत्य पाने के लिए अपनाए गए टेढ़े रास्ते पर चलेगा।
इस नयी रणनीति को बढ़ावा देने के लिए चीनी अधिकारी संवाद, सहयोग और साझा समृद्धि जैसी सौम्य लगने वाली का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। चीनी सरकारी मीडिया ने सबूत के तौर पर प्राचीन सिल्क रोड का भी जिक्र किया कि चीन ने लंबे समय से ‘‘सहयोग, आपसी सीख और पारस्परिक लाभ की भावना को अपनाया है।’’ इसका उद्देश्य पश्चिमी नेतृत्व वाली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का विकल्प तलाशने वाले देशों का एक व्यापक गठबंधन बनाना है। चीन के नेतृत्व वाले इस नए मॉडल में, देश एक-दूसरे पर अपने मूल्य थोपने से बचते हैं।
आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप भी सख्त वर्जित है। एक बार फिर, यह रणनीति चीन के लिए एक पर्दा प्रदान कर सकती है। यह समान विचारधारा वाले शासनों का एक वैश्विक नेटवर्क बनाता है जिसके राजनयिक बीजिंग के मानवाधिकारों के हनन को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जांच और आलोचना से बचा सकते हैं।वे संयुक्त राष्ट्र में बीजिंग के प्रस्तावों के समर्थन में भी मतदान कर सकते हैं। बदले में, वैश्विक सभ्यता पहल का पालन करने से असहिष्णु सरकारों को अपने स्वयं के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने और निंदा के डर के बिना राजनीतिक विरोधियों को दंडित करने के लिए अधिक जगह मिल सकती है।