मोदी-ट्रंप ''दोस्ती'' की तसवीरें चीन को पसंद नहीं आई होंगी

By राहुल लाल | Jun 28, 2017

दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र एवं शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वह चिरप्रतिक्षित मुलाकात संपन्न हुई तो पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई क्योंकि ट्रंप के राष्ट्रपति बनते ही भारत-अमेरिका संबंधों पर संशय के बादल आ चुके थे, जिसे इस मुलाकात ने विश्वास की नई ऊंचाई प्रदान की। प्रधानमंत्री मोदी एवं ट्रंप की पहली मुलाकात पूर्णतः गर्मजोशी से परिपूर्ण थी। इस प्रथम द्विपक्षीय मुलाकात में विभिन्न द्विपक्षीय एवं वैश्विक मुद्दों पर विस्तृत चर्चा हुई। अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारतीय प्रधानमंत्री को महान प्रधानमंत्री बताया। सोशल मीडिया पर ट्रंप ने मोदी और स्वयं को ग्लोबल लीडर बताया। प्रधानमंत्री का अमेरिका में जोरदार स्वागत हुआ। ट्रंप और उनकी पत्नी मेलानिया ट्रंप ने विशेष भाव प्रकट करते हुए गर्मजोशी से प्रधानमंत्री का स्वागत किया। प्रधानमंत्री के अमेरिका आगमन के साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत को सच्चा दोस्त कहा। ये बातें इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि जून के प्रारंभ में अमेरिका ने पेरिस समझौते से हटने के बाद भारत के ऊपर कई आधारहीन आरोप लगाए थे। लेकिन दोनों राष्ट्राध्यक्षों की मुलाकात के बाद रिश्तों में अप्रत्याशित सुधार हुआ है।

प्रधानमंत्री की इस अमेरिकी यात्रा में आतंकवाद का मुद्दा छाया रहा। इस मुलाकात से पूर्व ही अमेरिका ने भारत के आतंकवाद विरोधी अभियान को समर्थन देते हुए आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन के सरगना सैयद सलाहुद्दीन को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कर दिया। इस तरह मुलाकात पूर्व ही वैश्विक आतंकवाद विरोधी मोर्चे का गठन हो चुका था और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर अमेरिका से हमला हो चुका था। संयुक्त वक्तव्य में ट्रंप ने इस्लामिक आतंकवाद को जड़ से खत्म करने की बात करते हुए भारत के आतंकवाद विरोधी अभियान को समर्थन दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि आतंकवाद और आतंकवादियों को पनाह देने वाले देशों पर भी कार्रवाई हो। इसे एक तरह से पाकिस्तान के लिए अति कठोर संदेश के रूप में देखा जा रहा है। पाकिस्तान को कड़ा संदेश देते हुए भारत और अमेरिका ने उससे सुनिश्चित करने को कहा है कि उसकी धरती का प्रयोग सीमा पार आतंकवाद के लिए न हो। साथ ही अमेरिका एवं भारत दोनों देशों ने पाकिस्तान से कहा कि वह मुंबई हमलों और पठानकोट में हुए आतंकी हमलों के साजिशकर्ताओं को जल्द न्याय के कठघरे में लाए। इस तरह भारत-अमेरिका संयुक्त वक्तव्य में पाकिस्तान पर वाशिंगटन से सीधा-सीधा हमला हुआ है।

 

मोदी ने व्हाइट हाउस में ट्रंप के साथ अपने संयुक्त संबोधन में संवाददाताओं से कहा, "आतंकवाद का समाप्ति हमारी शीर्ष प्राथमिकताओं में शामिल है। ट्रंप ने कहा कि "अमेरिका और भारत के बीच सुरक्षा साझेदारी बेहद अहम है। दोनों देश आतंकवाद का शिकार हैं और हम दोनों ही देश आतंकी संगठनों को एवं उन्हें संचालित करने वाली विचारधारा को नष्ट करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम चरमपंथी इस्लामी आतंकवाद को नष्ट कर देंगे।" इस तरह स्पष्ट है कि पाकिस्तान के सीमा पार आतंकवाद पर अब तक का सबसे बड़ा कूटनीतिक प्रहार है।

 

चीन को पसंद नहीं ये दोस्ती

 

मोदी-ट्रंप मुलाकात पर जहां संपूर्ण विश्व की नजरें थीं, वहीं चीन भी टकटकी लगाए हुए था। इस मुलाकात से चीन की परेशानी में वृद्धि हो गई है। चीन ने कहा है कि अमेरिका, भारत को केवल एक टूल के रूप में प्रयोग कर रहा है। अमेरिका ने कभी भी सुरक्षा परिषद में भारत के लिए कोई ठोस दावेदारी नहीं की है। चीनी सरकारी समाचार पत्र ने स्पष्ट किया है कि चीन के उदय के कारण भारत और अमेरिका करीब आ रहे हैं, लेकिन उतना नहीं  जितने कि आस्ट्रेलिया और जापान हैं। चीन की इस प्रतिक्रिया से स्पष्ट है कि भारत-अमेरिका की गहरी मित्रता से चीन परेशान है। भारत-अमेरिकी मित्रता की तैयारी से असंतुष्ट चीन ने सिक्किम में घुसपैठ कर भारतीय सेना के दो बंकरों को नष्ट कर दिया था, हालांकि बाद में भारतीय सेना ने चीनियों को पीछे धकेला। इसके अतिरिक्त चीन ने नाथूला दर्रे से कैलाश मानसरोवर के एक 27 सदस्यीय जत्थे को भी खराब मौसम का बहाना लगाकर प्रवेश की अनुमति नहीं दी।

 

इस तरह दक्षिण एशिया में चीन का प्रति संतुलक भारत ही हो सकेगा, यह अमेरिका समझ चुका है। यह चीनी प्रतिक्रिया से भी स्पष्ट है। हिंद महासागर में भी जल क्षेत्र में चीनी वर्चस्व को चुनौती देने पर दोनों देशों में सहमति बनी है। भारतीय सेना के आधुनिकीकरण में अमेरिका महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करेगा। इसके अतिरिक्त भारत अमेरिका से 100 विमान खरीदेगा जिससे स्वयं ट्रंप के अनुसार अमेरिका में हजारों रोजगार का सृजन होगा। वहीं भारत अमेरिका से नेचुरल गैस खरीदेगा, जिससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी जबकि अमेरिका को भी व्यापारिक लाभ मिलेगा। ट्रंप ने जीएसटी की भी प्रशंसा की।

 

यद्यपि एच-1बी वीजा और अमेरिका में भारत के नागरिकों के रोजगार पर कोई बात नहीं हुई है लेकिन भारतीय विदेश सचिव एस. जयशंकर ने स्पष्ट किया कि दोनों देश मिलकर कार्य कर रहे हैं और तकनीक हस्तांतरण होगा तो रोजगार सृजन होगा ही।

 

मोदी एवं ट्रंप के इस मुलाकात में जहां आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान को सीधा संदेश दिया, वहीं कनेक्टिविटी के नाम पर संप्रभुता हनन के मामले में चीन को भी संदेश दिया गया। हाल ही में वन रोड, वन बेल्ट पर चीन के आक्रामक रवैये पर ट्रंप की यह चेतावनी थी। इस तरह ट्रंप मोदी की प्रथम मुलाकात में ही एक अनोखी केमिस्ट्री दिखी, ऐसा लगा मानो बचपन के कोई बिछड़े मित्र लंबी अवधि बाद मिल रहे हों। देखना होगा कि मोदी-ट्रंप का रिश्ता आगे कितनी उड़ान भरता है।

 

राहुल लाल

(लेखक कूटनीतिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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