Vishwakhabram: Xi Jinping की सनक के चलते विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का तमगा खो सकता है China

By नीरज कुमार दुबे | Mar 07, 2024

राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सनक ने दुनिया की दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था वाले देश चीन का बुरा हाल कर दिया है। एक समय अपनी आर्थिक तरक्की की रफ्तार के लिए पूरी दुनिया में मशहूर चीन इस समय बमुश्किल गुजारा कर पा रहा है और जिस धीमी गति से उसकी अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है वह कछुआ चाल यदि जारी रही तो जल्द ही चीन दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था का तमगा खो सकता है। चीन में इस समय कितनी निराशा है इसका अंदाजा इस बात से लग जाता है कि वहां के हुक्मरान अब तरक्की के बहुत बड़े लक्ष्य तय करने की बजाय इस बात पर जोर दे रहे हैं कि गुजारा चलाने लायक स्थितियां बनी रहें।


हम आपको बता दें कि आर्थिक मंदी और कमजोर पड़ती कारोबारी धारणा से जूझ रहे चीन ने इस साल पांच प्रतिशत की मामूली आर्थिक वृद्धि का लक्ष्य तय किया है। पिछले साल चीन ने 5.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की थी। इसके साथ ही चीन ने बढ़ती बेरोजगारी पर चिंताओं के बीच 1.2 करोड़ नौकरियां पैदा करने का वादा भी किया है। चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग ने देश की रबर-स्टैम्प संसद नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) के उद्घाटन सत्र में पेश अपनी रिपोर्ट में उम्मीद जताई कि इस साल शहरी क्षेत्रों में 1.2 करोड़ से अधिक नौकरियां पैदा होंगी। बताया जा रहा है कि चीन में इस साल शहरी बेरोजगारी दर लगभग 5.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। हम आपको बता दें कि करीब सप्ताह भर चलने वाले एनपीसी के वार्षिक सत्र में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के अलावा देश भर से 2,000 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस दौरान दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की वृद्धि को मजबूत करने के लिए जरूरी पहलों पर विचार-विमर्श किया गया। बताया जा रहा है कि चीन ने 2024 के लिए एक सक्रिय राजकोषीय नीति और एक विवेकपूर्ण मौद्रिक नीति जारी रखने की बात कही है जिसमें सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मुकाबले घाटे को तीन प्रतिशत पर रखा जाएगा। चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग ने अपनी 39 पेज की कार्य रिपोर्ट में कहा है कि इस बार सरकारी घाटा 2023 के बजट आंकड़े से 180 अरब युआन (26 अरब अमेरिकी डॉलर) बढ़ जाएगा।

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देखा जाये तो चीन इस समय सबसे गहरी आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है इसलिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सभी मंत्रालयों को निर्देश दिया है कि वह ऐसी नीतियां बनाएं जिससे अर्थव्यवस्था को संकट से उबारा जा सके। लेकिन यहां सवाल यह है कि चीन आखिर उबरेगा कैसे? वैश्विक बाजारों में उसके माल की गुणवत्ता पर लगातार सवाल उठ रहे हैं और उन्हें लौटाया जा रहा है या पुराने ऑर्डर रद्द किये जा रहे हैं। चीनी कंपनियों को नये ऑर्डर नहीं मिलने से उत्पादन ठप है और बेरोजगारी लगातार बढ़ती जा रही है। चीन में विदेशी निवेशक आने से कतरा रहे हैं या अपना कारोबार समेट रहे हैं क्योंकि तानाशाह जैसे शासन में काम करना मुश्किल होता जा रहा है। यही नहीं चीनी युवा भी अपने भविष्य को लेकर इतने आशंकित पहले कभी नहीं दिखे जितने अब दिख रहे हैं। दरअसल चीन में मजदूरी और उत्पादन लागत बढ़ने से वैश्विक बाजारों में चीन प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहा है। इसके अलावा, चीन का रियल एस्टेट उद्योग जिस तरह भरभरा कर गिर रहा है और स्थानीय सरकारों को सामान्य खर्च चलाने के लिए भी ऋण लेना पड़ रहा है उससे शी जिनपिंग की नीतियों और उनकी उन महत्वाकांक्षी परियोजनाओं पर भी सवाल उठ रहे हैं जिन पर अरबों डॉलर खर्च हो रहा है मगर हासिल कुछ नहीं हो रहा है।


बहरहाल, देखा जाये तो जिस तरह पाकिस्तान ने आतंकवाद को ही सारी फंडिंग करके अपनी अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुँचा दिया है उसी तरह चीन ने भी अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते ऐसी परियोजनाएं बनाईं जिन पर अरबों डॉलर बेमतलब में खर्च हो रहा है। इसके अलावा चीन दूसरे देशों में जासूसी के लिए अरबों डॉलर खर्च कर रहा हे, नये जमाने के युद्ध के लिए कोरोना जैसे वायरस बनाने में अरबों डॉलर खर्च कर रहा है, भारत को घेरने के लिए उसके पड़ोसी देशों को अपने कर्ज के जाल में फंसाने के लिए हजारों-लाखों डॉलर पे डॉलर उधार दे रहा है। इस सबसे चीनी अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान हो रहा है लेकिन शी जिनपिंग सुधरने को तैयार नहीं हैं। चीन को धन जुटाने के लिए एक ट्रिलियन युआन मूल्य के विशेष प्रयोजन बांड जारी करने पड़ रहे हैं जो दर्शाता है कि चीनी अर्थव्यवस्था कितने दबाव से गुजर रही है।

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