डोकलाम में जारी तनाव के बीच चीनी सेना ने रविवार को जमकर शक्ति प्रदर्शन किया, जिसमें चीनी राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने हमलावर दुश्मन को परास्त करने का आह्वान किया है। उन्होंने भरोसा जताया कि चीन की सेना में किसी भी हमलावर दुश्मन को हराने की क्षमता है। चीनी सेना की 90वीं वर्षगांठ से दो दिन पूर्व आयोजित इस परेड के माध्यम से चीन ने बड़ी संख्या में टैंक और परमाणु हथियारों को छोड़ने में सक्षम मिसाइलों का प्रदर्शन किया। दरअसल यह विरोधियों पर मनोवैज्ञानिक बढ़त लेने की चीनी कोशिश ही है। चीन 1 अगस्त को चीनी सेना की 90वीं वर्षगांठ के मौके पर शक्ति प्रदर्शन के माध्यम से दबाव बनाने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहता है।
आक्रामक चीन अपने साम्राज्यवादी विस्तार के रवैये में इस बार भारत के सामने फंस गया है। मनोवैज्ञानिक युद्ध के महारथी चीन को थोड़ा भी अंदाजा नहीं होगा कि भारत पर दबाव डालने की उसकी रणनीति पूर्णत: बेअसर रहेगी। चीन ने निश्चित रूप से यह उम्मीद नहीं की थी कि डोकलाम में भारत भूटान के पक्ष में खड़ा होगा। पिछले 6 सप्ताह से डोकलाम मामले पर भारत-चीन आमने-सामने हैं। चीनी सरकारी समाचार पत्र 'ग्लोबल टाइम्स' लगातार युद्ध उन्माद फैलाकर भारत को डराने में लगे रहे। चीनी मीडिया में एक तरह से प्रतिस्पर्धा थी कि आखिर कौन डोकलाम मामले पर भारत को सबसे अधिक मनोवैज्ञानिक दबाव में डाल सकता है। जैसे-जैसे समय चक्र आगे बढ़ता चला गया, चीनी प्रोपेगैंडा भी उफान पर आ गया। मामला जब इससे भी नहीं संभला तो चीन ने बीजिंग में अन्य देशों के राजदूतों से वार्ता कर भारत पर दबाव डालने का प्रयास किया, परंतु वह भी बेअसर ही रहा। डोकलाम विवाद का मौजूदा संकट चीनी विदेश नीति के दुष्प्रचार को ही प्रदर्शित करता है।
जब मीडिया के दबाव के बावजूद भारत पर कोई असर नहीं पड़ा तो चीन ने अपने सैन्य प्रवक्ताओं को आगे किया। चीनी सेना ने कहा कि वो संप्रभुता की रक्षा के लिए कुछ भी करेंगे। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने भारत से कहा कि किसी भी कीमत पर संप्रभुता की रक्षा की जाएगी। चीनी सेना ने भारत को सबसे बड़ी धमकी देते हुए कहा कि पर्वत को हिलाया जा सकता है, परंतु चीनी सेना को नहीं।
चीन पर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की 90वीं वर्षगांठ का दबाव
इस संपूर्ण मामले को सूक्ष्मता से देखा जाए तो चीन का पूरा प्रयास था कि चीनी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी अर्थात् पीएलए की 90वीं वर्षगाँठ से पूर्व हर हालत में भारत को डोकलाम से पीछे हटाने के लिए प्रयत्नशील है। ज्ञात हो 1 अगस्त 2017 को चीनी सेना यानि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी काफी धूम-धाम से अपनी 90वीं वर्षगाँठ मना रही है। यह वर्षगांठ चीन में केवल सेना का शक्ति प्रदर्शन नहीं है, अपितु चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का भी शक्ति प्रदर्शन है। चीनी राष्ट्रपति भारत को मनोवैज्ञानिक युद्ध में पराजित कर चीन में अपने प्रतिद्वन्द्वियों के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयत्न कर रहे थे, जो पूर्णतः विफल रहा। उन्हें पहले इस बात का यकीन नहीं था कि भारतीय फौज भूटान के सामने आएगी या फिर कम से कम चीन की फौज के सामने इतनी देर तक खड़ी होने की हिम्मत करेगी। चीनी प्रवक्ता वू कियान ने कहा था कि "मैं भारत को याद दिलाना चाहता हूँ कि वो किसी तरह से भ्रम न रहे, चीन की सेना का 90 साल का इतिहास हमारी क्षमता को साबित करता है। देश की रक्षा करने को लेकर हमारे विश्वास को कोई डिगा नहीं सकता। पहाड़ को हिलाना मुमकिन है, लेकिन चीनी सेना को हिला पाना मुश्किल है।"
चीनी सैन्य प्रवक्ता वू कियान का बयान देखकर ही स्पष्ट हो जाता है कि भारत पर दबाव बनाने का कितना दबाव चीन के ऊपर स्वयं है। जब चीनी सेना की उपरोक्त धमकी का भी भारत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो चीन ने अंततः अपने विदेश मंत्रालय को प्रोपेगैंडा वार का हिस्सा बनाया। देखा जाए तो चीन जिस प्रकार प्राचीन सैन्य रणनीतिकार सुन-जू की शैली के आधार पर बिना सैन्य हमले के ही भारत को दबाव में लाने के लिए प्रयासरत था, वह विफल ही नहीं हुआ अपितु चीन के लिए ही संकट बन गया है।
अजीत डोभाल की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग एवं चीनी समकक्ष से मुलाकात
चीन के बीजिंग में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान शी-जिनपिंग और अजीत डोभाल के बीच औपचारिक ढांचे के तहत बातचीत हुई। 7वें ब्रिक्स सम्मेलन में सदस्य देशों के सुरक्षा अधिकारियों की बैठक के दौरान शुक्रवार को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से क्षेत्र के राजनीतिक और आर्थिक हालत पर डोभाल ने बातचीत की। डोभाल और शी जिनपिंग की यह मुलाकात भारत और चीन के काफी तनावपूर्ण माहौल में हुई। इससे एक दिन पूर्व डोभाल अपने चीनी समकक्ष यांग जायजी से भी अलग से मिले थे। चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार यांग जायजी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और राजनीति में ऊंचा स्थान रखते हैं इसलिए अजीत डोभाल और यांग जायजी की मुलाकात हर तरह से महत्वपूर्ण रही। इस वार्ता से ऐसा लगता है कि कि दोनों देश एक दूसरे की परिस्थिति समझने में कामयाब हुए हैं। पिछले 6 सप्ताह में यह पहली बार है कि दोनों देशों के बीच सुरक्षा के मुद्दे पर बात हो रही है। दूसरी बात यह है कि चीन ने बार-बार कहा था कि जब तक डोकलाम से भारतीय सैनिक पीछे नहीं हटेंगे, हम किसी भी तरह की बात नहीं करेंगे। इसके बावजूद चीनी मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के लोग डोभाल से अलग से मिले और इस मुद्दे पर 'वन टू वन' मीटिंग की और भारत के स्टैंड ऑफ को लेकर चर्चा हुई।
डोभाल के वार्ता पर सिन्हुआ का सकारात्मक रूख
अजीत डोभाल और यांग जाय जी की बैठक के बाद चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने अचानक एक कमेंट्री प्रसारित की जिसमें दोस्ती, भाईचारे की बातें कही गईं। इसमें ये संकेत दिया गया कि पश्चिमी देश भारत और चीन को लड़वा रहे हैं, वैसे हम भाई-भाई हैं। इसमें कहीं नहीं ये नहीं कहा गया कि भारत को डोकलाम से अपने सैनिक वापस बुलाने होंगे, तभी बात आगे बढ़ेगी। स्पष्ट है कि इस संपूर्ण प्रकरण में चीन को पश्चिम से भी समुचित समर्थन नहीं मिला।
इस संपूर्ण मामले में भारत एक तरफ जहां डोकलाम में चीनी सैनिकों के सामने चट्टानों की तरह खड़ा रहा, वहीं दूसरी ओर अनावश्यक बयानबाजी से दूरी रखते हुए शांतिपूर्ण ढंग से कूटनीतिक रूप से गतिरोध सुलझाने का प्रयास किया। साथ ही भारत ने घरेलू मोर्चों से भी संयमित मगर दृढ़ कूटनीतिक संकेत दिए हैं। भारत ने चीन को कूटनीतिक भाषा में यह समझाने की कोशिश की है कि मौजूदा सीमा विवाद के साथ ही हर तनाव भरे मुद्दे का वह आपसी सहमति व बातचीत से समाधान निकालने को तैयार है। भारत यह कतई नहीं चाहेगा कि अभी जो छोटे-छोटे विवाद हैं, वे आगे चलकर किसी बड़े संकट का कारण बनें।
क्या डोभाल और शी जिनपिंग की मुलाकात को डोकलाम संकट के अंत के रूप में देखा जा सकता है?
पिछले 6 सप्ताह में भारत-चीन के बीच पहली बार डोकलाम मुद्दे पर चर्चा से आशा की कुछ धुंधली किरण प्रस्फुटित हुई हैं, लेकिन क्या डोभाल और शी जिनपिंग मुलाकात को डोकलाम संकट के अंत के रूप में देखा जा सकता है? क्या यह विवाद अब समाप्ति की ओर है?
उपरोक्त प्रश्नों के आलोक में मैं पुन: चीन के उसी धर्म संकट की ओर ध्यानाकर्षण कराना चाहूँगा। चीन अभी 1 अगस्त को पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के 90वीं वर्षगांठ मनाने की तैयारी में है। चीन कहाँ तो इस वर्षगांठ को भारत को मनोवैज्ञानिक युद्ध में हराकर विजय उत्सव के रूप में मनाने के लिए प्रयत्नशील था, लेकिन भारत की डोकलाम पर अड़े रहने की चट्टानी रणनीति ने चीन को परेशान कर दिया। आक्रामक होते हुए भी विश्व समुदाय के समक्ष अपनी स्वच्छ छवि हेतु चीन स्वयं को पीड़ित के तौर पर पेश करता है तथा छोटे देश भूटान में घुसपैठ पर छद्म आवरण डालने का प्रयास करता है। ऐसी स्थिति में चीन चाहते हुए भी इस मामले का शीघ्र निपटारा नहीं कर सकता।
डोकलाम मुद्दा चीनी सरकार के गले की फांस बन गया है। चीन की हॉकिश कम्युनिस्ट पार्टी डोकलाम विवाद का जल्द से जल्द समाधान चाहती है। ज्ञात हो चीन में अगले वर्ष शीर्ष नेताओं में फेरबदल होना है और 'हॉकिश' शीर्ष नेता के इस चुनाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है। वहीं चीन दक्षिण चीन सागर और पूर्व चीन सागर में भी चुनौती का सामना कर रहा है।
युद्धोन्माद का भय दिखाकर चीन ने बिना एक गोली चलाए ही पिछले 3 वर्षों में दक्षिण चीन सागर के दो तिहाई हिस्से पर कब्जा कर लिया है, परंतु चीन की यह रणनीति भारत के समक्ष पूर्णतः विफल रही। दक्षिण चीन सागर में अपने विस्तारवादी रुख के कारण चीन की फौज का मनोबल बढ़ा हुआ था, परंतु डोकलाम मामले ने चीनी मनोविज्ञान को भी प्रभावित किया। इस संपूर्ण प्रकरण से चीन की अंतरराष्ट्रीय छवि विश्व समुदाय में जहां धूमिल हुई, वहीं भारत के चट्टानी दृढ़ता ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत, चीन के दुष्प्रचार और प्रपंच के झांसे में न तो आता है और न ही आएगा। साथ ही दक्षिण एशिया में चीन को प्रतिसंतुलित करने वाले घटक के रूप में भी भारत की छवि में निखार आया है। इस मामले में अगर भारत पीछे जाता तो न केवल देश के सुरक्षा हितों की दृष्टि से पूर्वोत्तर राज्यों के साथ हमारे थल संपर्क पर खतरा उत्पन्न होता, बल्कि दक्षिण एशिया विशेषकर भारत के पड़ोसी देशों में भारत की छवि धूमिल होती। गेंद अब चीनी पाले में है कि किस प्रकार वह डोकलाम से पीछे हटने का सम्मानित मार्ग खोज पाएगा? डोभाल की चीन यात्रा से वैसे तो डोकलाम विवाद पर कोई समाधान नहीं निकला है, लेकिन दोनों देशों को इस मुलाकात से विवाद को कूटनीतिक रूप से हल करने का थोड़ा और समय अवश्य मिल गया है।
राहुल लाल
(लेखक कूटनीतिक एवं सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं।)