By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jun 18, 2020
बीजिंग।भारतीय सैनिकों पर 15 जून को लोहे की छड़ों और कंटीली तार लगे डंडों से बर्बर हमला करने संबंधी सवालों को टालने के साथ ही चीन ने बृहस्पतिवार को उन खबरों पर सवालों का जवाब देने से भी इनकार कर दिया कि वह चीन-भारत सीमा पर गलवान नदी के प्रवाह को बाधित करने के लिए एक बांध बना रहा है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान सोमवार रात को गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों के साथ झड़प में चीनी सैनिकों के हताहत होने के बारे में पूछे गए सवाल को लगातार दूसरे दिन टाल गए। झाओ से उन आरोपों के बारे में पूछा गया कि चीनी सैनिकों ने कर्नल संतोष बाबू और अन्य भारतीय सैनिकों पर लोहे की छड़ों तथा कंटीली तार लगे डंडों से बर्बर हमला किया और क्या यह विवाद तब शुरू हुआ जब भारतीय सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन द्वारा बनाए जा रहे ढांचों को ध्वस्त करने पहुंचे थे। झाओ ने इस घटना के लिए भारतीय सेना को जिम्मेदार ठहराने वाले चीन के आरोपों को दोहराया। उन्होंने कहा, ‘‘इस मामले में सही और गलत बहुत स्पष्ट है और इसकी जिम्मेदारी चीनी सेना पर नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि चीन ने मामले की जानकारी मुहैया कराई है। भारत ने गलवान घाटी पर संप्रभुता के चीन के दावे को खारिज करते हुए कहा कि इस तरह के बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए गए दावे छह जून को उच्चस्तरीय सैन्य वार्ता में बनी सहमति के विपरीत हैं। चीन के विदेश मंत्रालय और सेना ने इस सप्ताह दावा किया था कि गलवान घाटी हमेशा से उसका हिस्सा रही है। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के दावे पर जोरदार प्रतिक्रिया देते हुए विदेश मंत्रालय में प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने चीन और भारत की सेनाओं के बीच छह जून को लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की वार्ता में ‘‘गतिरोध स्थल से हटने’’ पर हुए समझौते का जिक्र किया। उन्होंने बृहस्पतिवार को नयी दिल्ली में एक बयान में कहा, ‘‘बढ़ा-चढ़ाकर किए गए और तर्कहीन दावे करना इस सहमति के विरोधाभासी है।’’ गलवान घाटी क्षेत्र में सोमवार रात दोनों सेनाओं के बीच हिंसक झड़प में एक कर्नल और 19 अन्य भारतीय सैन्यकर्मी शहीद हो गए।
चीन के सरकारी मीडिया ने चीनी पक्ष में भी जवानों के हताहत होने की बात स्वीकार की है लेकिन संख्या नहीं बताई। झाओ से 16 जून को उपग्रह से ली गई उन तस्वीरों के बारे में भी पूछा गया जिसमें चीन गलवान नदी पर बांध बनाकर उसके पानी के प्रवाह को रोकते हुए दिख रहा है और साथ ही यह पूछा गया कि क्या उसने भारत के साथ किसी समझौते का उल्लंघन किया है? इस पर झाओ ने कहा, ‘‘आपने जिन बातों का जिक्र किया है मुझे उनकी जानकारी नहीं है।’’ झाओ ने विदेश मंत्री एस जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच बुधवार को टेलीफोन पर हुई बातचीत का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि बातचीत के दौरान ‘‘दोनों पक्ष संघर्ष से पैदा हुई गंभीर स्थिति से न्यायपूर्ण तरीके से निपटने पर राजी हुए और कमांडर स्तर की बैठक में बनी सहमति पर संयुक्त रूप से रजामंद हुए कि जल्द से जल्द तनाव कम किया जाए।’’ उन्होंने बताया कि दोनों मंत्री सीमावर्ती इलाकों में शांति बनाए रखने पर भी सहमत हुए। उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘मैं यह बात कहना चाहूंगा कि भारतीय सेना ने सीमा के पश्चिमी क्षेत्र और कुछ अन्य इलाकों में एलएसी पार की और यथास्थिति को एकतरफा तरीके से बदलने की कोशिश की।’’
प्रवक्ता ने कहा, ‘‘चीनी सेना सीमावर्ती इलाकों में शांति बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। वे संयम बरत रहे हैं। वे हमारी राष्ट्रीय संप्रभुता और सुरक्षा की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम भारत से अनुरोध करते हैं कि वह अपने सैनिकों को सीमा पार करने से रोके और दोनों देशों के नेताओं के बीच बनी सहमति और मौजूदा समझौतों का पालन करे और सीमा इलाके में शांति बनाए रखने के लिए हमारे साथ मिलकर काम करे।’’ उन्होंने बताया कि इस घटना के बाद दोनों पक्ष मामले पर कूटनीतिक और सैन्य तरीकों से बातचीत कर रहे हैं। झाओ ने कहा, ‘‘वर्तमान में स्थिति स्थिर और नियंत्रण में है। हमारा मानना है कि दोनों देशों के नेताओं के बीच बनी महत्वपूर्ण सहमति के तहत दोनों पक्ष सीमा इलाकों में शांति एवं स्थिरता की संयुक्त रूप से रक्षा करने के प्रासंगिक मामले से निपट सकते हैं और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए काम कर सकते हैं।’’ प्रवक्ता ने ब्रीफिंग में बुधवार को वांग और जयशंकर की टेलीफोन बातचीत पर चीन के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी पूरा प्रेस वक्तव्य पढ़ा। भारत और चीन के सैनिकों के बीच पिछले पांच हफ्तों में पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग त्सो, गलवान घाटी, देमचोक और दौलत बेग ओल्डी समेत पूर्वी लद्दाख के कुछ अन्य इलाकों में टकराव की स्थिति रही है। सोमवार को हुई झड़प, नाथू ला में 1967 में हुई झड़पों के बाद दोनों सेनाओं के बीच अब तक का सबसे बड़ा टकराव था। नाथू ला में हुई झड़पों में भारतीय सेना के 80 सैनिक शहीद हुए थे जबकि चीन के 300 से अधिक सैनिक मारे गए थे। भारतीय सेना अतिक्रमणों पर कड़ा विरोध जाहिर कर रही है और उसने चीन से मांग की है कि इलाके में अमन-चैन बनाकर रखने के लिए तत्काल सैनिकों की वापसी हो।
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