By अभिनय आकाश | May 27, 2023
साल 2013 में चीन ने बेल्ट एंड रोड एनिसिएटिव (बीआरआई) के तहत जब सीपीईसी ( चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे) का प्रस्ताव पेश किया था तो उसी वक्त भारत की तरफ से इस पर आपत्ति जताई गई थी। भारत ने तब कहा था कि ये भारत की सर्वभौमिकता के खिलाफ है और चीन को इसके कार्यान्वयन से गुरेज करना चाहिए। सीपैक का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा चीन पाकिस्तान रेल सर्विस है जो बलूचिस्तान के ग्वादर तट से चीन के शिनजियांग प्रांत के काश्गर तक जाएगी। 3 हजार किलोमीटर की लंबी ये रेल लाइन चीन के पश्चिमी प्रांत को अरब सागर से जोड़ेगी और सामरिक दृष्टि से बहुत महत्व रखती है।
फेल होती नजर आ रही चीन की योजना
चीन की ये योजना फेल होती नजर आ रही है। चीन इस प्रोजेक्ट को लेकर काफी गंभीर था। अब उसे ही मजबूर होकर इस प्रोजेक्ट के तहत बन रही सड़क की बजाए ग्वादर पोर्ट से अपना माल भेजने पर मजबूर होना पड़ रहा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 24 मई को इस बंदरगाह से पहली बार पांच कंटेनरों का शिपमेंट चीन रवाना किया गया। इस शिपमेंट के चीन पहुंचने में 30 दिनों का वक्त लगेगा। पाकिस्तान की कंगाली और राजनीतिक अस्थिरता व सैन्य संस्थानों में फैले भ्रष्टाचार, सिंध प्रांत में स्थानीय लोगों का प्रोजेक्ट को लेकर विरोध के बड़ी वजह है जिससे चीन के सपनों के पूरा होने पर अनिश्चितता बरकरार है।
भारत इसका क्यों करता है विरोध?
यह इलाका पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से लगा हुआ है। इसकी भौगोलिक स्थिति की वजह से यह इलाका भारत के लिए सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत का ऐतराज इस बात से है कि इस रेल लाइन और उसके साथ बनने वाले हाइवे का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है। चूंकि ये भारत की जमीन है तो इस पर किसी भी तरह का निर्माण भारत की सहमति के बिना होना गलत होगा। लेकिन चीन ने न भारत की बात मानी और उसकी शह पर उसकी आपत्तियों को दरकिनार कर दिया।