जब तक चीन की चाल समझ पाता नेपाल, तब तक ड्रैगन शिकंजा कस चुका था

By योगेश कुमार गोयल | Oct 21, 2020

चीन की विस्तारवादी नीतियों के कारण जहां एलएसी पर अप्रैल माह से ही तनावपूर्ण हालात हैं, वहीं चीन की गोद में खेल रहा नेपाल भी अब चीन की इन्हीं नीतियों का शिकार हो रहा है। हाल ही में यह खुलासा होने के बाद कि चीनी सैनिकों ने नेपाल के हुम्ला जिले में सीमा स्तंभ से दो किलोमीटर अंदर तक कब्जा कर लिया है, चीन में हंगामा मचा है। दरअसल ड्रैगन नेपाल के इस इलाके में अब तक नौ भवनों का निर्माण कर चुका है। यही नहीं, उसके सैनिकों ने यहां नेपाली नागरिकों के आने-जाने पर भी पाबंदी लगा दी है। जैसी कि ड्रैगन की फितरत रही है कि वह किसी भी देश की जमीन कब्जाने के बाद दादागिरी दिखाते हुए उसे अपना ही भूभाग बताता है, ऐसा ही दावा उसने नेपाली जमीन कब्जाने के बाद भी किया है। हालांकि नेपाली अधिकारियों का कहना है कि चीन ने नेपाली भूमि में अतिक्रमण करते हुए इमारतें बनाई हैं लेकिन ड्रैगन का दावा है कि उसने जहां इमारतें बनाई है, वह उसका अपना भूभाग है। गौरतलब है कि नेपाल के सीमावर्ती करनाली प्रांत के दूरस्थ हुमला जिले में दो वर्ष पूर्व तक चीन सीमा पर केवल तीन ही भवन थे लेकिन चीनी सेना पीएलए अब यहां नौ वाणिज्यिक भवन बना चुकी है।

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नेपाली जनता के प्रबल रोष का सबसे बड़ा कारण यही है कि एक तरफ नेपाल से नजदीकियां बढ़ाने की आड़ में चीन नेपाल में अपना आधार मजबूत कर वहां की जमीन हथियाने के मंसूबे पूरे करने के प्रयासों में जी-जान से जुटा है, वहीं उनके प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली सब कुछ जानते-समझते हुए भी चुप्पी साधे हैं। उनके मौन समर्थन का ही नतीजा है कि नेपाल ड्रैगन के क्रूर पंजों में फंसता जा रहा है और नेपाल को चीन से उनकी यह दोस्ती बहुत महंगी साबित हो रही है। चीन बेकाबू होकर नेपाली जमीनें हथिया रहा है और तिब्बत में सड़क निर्माण के नाम पर भी नेपाली भूमि का अतिक्रमण कर रहा है। हालांकि नेपाली जनता विरोध प्रदर्शन कर रही है क्योंकि उसका मानना है कि चीन अपनी इन्हीं विस्तारवादी नीतियों के चलते एक दिन तिब्बत की ही भांति नेपाल को भी हड़प लेगा लेकिन ओली सरकार नेपाली गांवों पर चीन के अवैध कब्जों के बावजूद खामोश है क्योंकि वह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को नाराज करने का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती। ओली और उनकी पार्टी चीनी सत्ता पर काबिज शी जिनपिंग की पार्टी की विचारधारा की ही समर्थक है। इसी कारण ओली ने चीन से प्रेम की पींगें बढ़ाते हुए भारत से दूरियां बढ़ानी शुरू की थीं। भारत के इसी विरोध के चलते ओली ने नेपाल के हिन्दू राष्ट्र का दर्जा भी खत्म किया था।


इसी साल जून माह में विपक्षी नेपाली कांग्रेस के सांसदों ने आरोप लगाया था कि चीन ने देश के दोलखा, हुमला, सिंधुपालचौक, संखुवासभा, गोरखा और रसुवा जिलों में 64 हेक्टेयर भूमि का अतिक्रमण किया है। नेपाली कांग्रेस द्वारा नेपाली संसद के निचले सदन में रेजॉल्यूशन पेश करते हुए ओली सरकार से चीन की छीनी हुई जमीन वापस लेने को भी कहा गया था। ओली सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) को बचाने की हरसंभव कोशिश कर रही है। नेपाली जमीनों पर चीनी कब्जों के बावजूद अगर नेपाली विदेश मंत्री प्रदीप ग्यवली कहते रहे हैं कि नेपाल का सीमा विवाद चीन के साथ नहीं बल्कि भारत के साथ है तो समझा जा सकता है कि नेपाल में निर्णय लेने की क्षमता पर किस कदर चीनी दबाव हावी है।


दो नेपाली एजेंसियों द्वारा नेपाली जमीन हड़पने की खबरों के अलावा हाल ही में नेपाल के कृषि मंत्रालय के सर्वेक्षण विभाग की एक रिपोर्ट में भी खुलासा हुआ है कि ड्रैगन सात सीमावर्ती जिलों में फैले कई स्थानों पर नेपाल की जमीनों पर कब्जा कर चुका है। सर्वे डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर मिनिस्ट्री की रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि चीन तेजी से आगे बढ़ रहा है और ज्यादा से ज्यादा जमीन का अतिक्रमण कर रहा है। रिपोर्ट में 33 हेक्टेयर दायरे में फैले उन 10 इलाकों का भी जिक्र है, जहां चीन ने बागडारे खोला, करनाली, सिनजेन, भुरजुक, जंबुआ खोला इत्यादि नदियों का रूख मोड़ कर नेपाली जमीनें कब्जाई हैं। इन चार नेपाली जिलों में अधिकांश क्षेत्र नदियों के जलग्रहण क्षेत्र हैं, जिनमें हुमला, कर्णली, संजेन, लेमडे, भृजुग, खारेन, सिंधुपालचौक, भोटेकोसी, जाम्बु नदीय कामाखोला, अरूण नदी प्रमुख हैं। नेपाल के सर्वे और मैपिंग विभाग का कहना है कि चीन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सीमा को नेपाल के दोलखा में 1500 मीटर अंदर धकेल दिया गया है। इस विभाग के मुताबिक चीन ने गोरखा और दारचुला जिलों में नेपाली गांवों पर कब्जा कर लिया है।

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अपने ही मंत्रालयों और सरकारी विभागों की ऐसी रिपोर्टें सामने आने के बाद भी अगर प्रधानमंत्री ओली चीन की गोद में खेल रहे हैं तो हैरानी होती है। भारत ने चीन को सदैव अपना छोटा भाई मानते हुए हर कदम पर उसकी मदद की है जबकि चीन की विस्तारवादी नीतियों और नेपाली जमीनों पर कब्जे की चीनी नीति से ओली भी अनजान नहीं हैं लेकिन अगर फिर भी वे राष्ट्रहितों को दरकिनार कर भारत से दुश्मनी बढ़ाने पर उतारू हैं तो यह तय है कि चीन से उनकी यह दोस्ती उनके देश को अंततः बहुत महंगी पड़ने वाली है। ओली कुछ महीनों से जिस प्रकार चीन की ही बोली बोलकर भारत जैसे उसके हितैषी और परम मित्र देश के साथ भी दुश्मनी मोल लेने पर उतारू दिखाई दिए हैं, उसका उन्हीं के देश में प्रबल विरोध हो रहा है। नेपाली नागरिक मानने लगे हैं कि चीन भारत के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए नेपाल को मोहरा बना रहा है और नेपाली जमीनें कब्जा कर भारत तक अपनी पहुंच आसान करना चाहता है। ड्रैगन के इशारों पर ओली के नाचने का सबसे बड़ा कारण यही है कि वे नेपाल में अपनी सत्ता बचाए रखने के लिए ड्रैगन का सहारा ले रहे हैं और ड्रैगन उनकी इसी मजबूरी का भरपूर लाभ उठा रहा है। भारत द्वारा पूरी दुनिया के समक्ष चीन के विस्तारवादी प्लान की पोल खोले जाने और चीन द्वारा लगातार नेपाली जमीनों पर कब्जे किए जाने के बाद भी अगर ओली को सद्बुद्धि नहीं मिल रही है तो यह नेपाली जनता का दुर्भाग्य ही है, जिनकी सरकार चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की कठपुतली की भांति कार्य कर रही है।


-योगेश कुमार गोयल

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा समसामयिक मामलों के विश्लेषक हैं। इनकी इसी वर्ष ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ तथा ‘जीव जंतुओं का अनोखा संसार’ पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं।)

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