By अभिनय आकाश | Jan 20, 2022
भारत दक्षिणी चीन सागर को एक तटस्थ जगह मानता रहा है और इसे बरकरार रखने का समर्थन करता है। लेकिन इससे इतर दक्षिण चीन सागर (एससीएस) क्षेत्र में “नाइन-डैश लाइन” के नाम से मशहूर एक बड़े इलाके पर अपना दावा करता रहा है। चीन ने अपने दावों को पुख्ता शक्ल देने के लिए यहां टापू बना लिए हैं। चीन का देखा गया बदलाव इस क्षेत्र में भारत के हितों के लिए नई चुनौतियां पैदा कर सकता है। मलेशियाई विदेश मंत्री सैफुद्दीन अब्दुल्ला के अनुसार, इस बदलाव को एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) के सदस्य देशों ने देखा है और पुराने दावे की तुलना में "और भी गंभीर" है। उन्होंने ये टिप्पणी पिछले हफ्ते स्थानीय पत्रकारों से की थी।
"फोर शा" (चार रेत द्वीपसमूह) एससीएस क्षेत्र के चार द्वीप समूह हैं जिन पर बीजिंग का दावा है कि उसके पास "ऐतिहासिक अधिकार" हैं। चीनी उन्हें डोंग्शा कुंदाओ, ज़िशा कुंडाओ, झोंगशा कुंदाओ और नन्शा कुंदाओ कहते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें प्रतास द्वीप समूह, पैरासेल द्वीप समूह, मैकल्सफील्ड बैंक क्षेत्र और स्प्रैटली द्वीप समूह के रूप में जाना जाता है। इस क्षेत्र में चीन के बदलते मानदंड भारत के व्यापार पर, जो इससे होकर गुजरता है और वियतनाम में भारत के ऊर्जा हितों पर प्रभाव डाल सकता है। भारत ने बार-बार एससीएस के माध्यम से नेविगेशन और ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता को बनाए रखने का आह्वान किया है।
साल 2016 में एक अंतरराष्ट्रीय ट्राइब्यूनल ने चीन के ख़िलाफ़ फ़ैसला दिया था। इस ट्राइब्यूनल ने कहा था कि इस बात के कोई प्रमाण नहीं हैं कि चीन का इस इलाक़े पर ऐतिहासिक रूप से कोई अधिकार रहा है। लेकिन, चीन ने इस फ़ैसले को मानने से इनकार कर दिया था। इंडोनेशिया और वियतनाम के बीच पड़ने वाला समंदर का ये हिस्सा, क़रीब 35 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इस पर चीन, फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ताईवान और ब्रुनेई अपना दावा करते रहे हैं। क़ुदरती ख़ज़ाने से भरपूर इस समुद्री इलाक़े में जीवों की सैकड़ों प्रजातियाँ पाई जाती हैं।