Child marriage: असम के नागरिक समाज ने गिरफ्तारियों को कोई समाधान नहीं बताया

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Feb 12, 2023

गुवाहाटी। असम में बाल विवाह में शामिल होने के आरोप में हाल में 3,000 से अधिक व्यक्तियों की गिरफ्तारी ने नागरिक समाज को दो धड़ों में बांट दिया है। एक वर्ग का कहना है कि महज कानून के बल पर इस समस्या को हल नहीं किया जा सकता है जबकि कुछ का तर्क है कि कम से कम अब कानून पर चर्चा की जा रही है और इससे इस कुरीति पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी। असम में बाल विवाह में कथित संलिप्तता के लिए अभी तक 3,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है और वे अस्थायी जेलों में बंद हैं जिसके कारण महिलाएं प्रदर्शन कर रही हैं और अपने परिवार के कमाने वाले इकलौते सदस्यों की गिरफ्तारी का विरोध कर रही हैं।

मानवाधिकार वकील देबस्मिता घोष ने कहा कि एक बार शादी हो जाने के बाद कानून इसे वैध मानता है और ऐसी शादी से हुए बच्चों को सभी कानूनी अधिकार मिलते हैं। उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘कानून कहता है कि बाल विवाह तभी अमान्य है जब वह व्यक्ति जिला अदालत में याचिका दायर करता है जो शादी के वक्त नाबालिग था और अगर याचिकाकर्ता नाबालिग है तो याचिका उसके अभिभावक के जरिए दायर की जा सकती है।’’ घोष ने कहा कि अगर ऐसा व्यक्ति याचिका दायर करता है जो शादी के वक्त नाबालिग था तो यह उस व्यक्ति के बालिग होने के दो साल के भीतर दायर की जानी चाहिए। घोष ने कहा, ‘‘ज्यादातर गिरफ्तारियों में दंपति अब वयस्क होंगे और अगर उन्होंने अपनी शादी निरस्त करने क लिए कोई याचिका दायर नहीं की तो सरकार को उनकी निजी जिंदगी में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है।’’

प्रख्यात विद्वान मनोरमा शर्मा ने कहा कि बाल विवाह बंद होने चाहिए लेकिन यह एक सामाजिक बुरायी है, कानून एवं व्यवस्था की कोई समस्या नहीं है। सेवानिवृत्त प्रोफेसर शर्मा ने कहा, ‘‘महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं और आजीविका के साधनों पर ध्यान देकर इसे खत्म किया जा सकता है, न कि अतीत में हो चुकी किसी घटना में कानून लागू करके। इसे भविष्य में सख्ती से लागू किया जा सकता है।’’ बाल अधिकार कार्यकर्ता एम. दास क्वेह ने कहा, ‘‘राज्य सरकार निश्चित तौर पर एक मजबूत संदेश देना चाहती है कि बाल विवाह बंद होने चाहिए लेकिन उसे ऐसी कार्रवाई के बाद होने वाले प्रदर्शनों पर ध्यान देना चाहिए।’’ यूनिवर्सल टीम फॉर सोशल एक्शन एंड हेल्प (उत्साह)के संस्थापक क्वेह ने कहा, ‘‘पुलिस जब किसी बाल विवाह को रोकने की कोशिश करती है तो उसे कड़े विरोध का सामना करना पड़ता है। इस मामले में इतने लोगों को गिरफ्तार किया गया तो विरोध तो होना ही था।

अभियान की बेहतर तरीके से योजना बनायी जा सकती थी।’’ उन्होंने कहा कि बाल विवाह की समस्या को पूरी तरह खत्म करने के लिए एक दीर्घकालीन सतत अभियान की आवश्यकता है। सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम (पीसीएमए), 2006 के तहत कुछ सीमाएं हैं जिसके तहत एक अदालत किसी अपराधी को दो साल की कैद की सजा सुना सकती है और उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगा सकती है। क्वेह ने कहा, ‘‘कानून के अनुसार अगर लड़की और लड़का दोनों शादी के वक्त नाबालिग थे लेकिन अब बालिग हैं तो उन्हें सजा नहीं दी जाएगी बल्कि उनकी शादी कराने वाले वयस्कों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।’’

बाल यौन अपराध संरक्षण (पोक्सो)कानून के तहत 14 साल से कम उम्र के बच्चों से शादी करने वालों के खिलाफ राज्य मंत्रिमंडल के निर्णय के तहत मामला दर्ज किया जाएगा। साथ ही यह 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों और वयस्कों के बीच यौन कृत्य को अपराध की श्रेणी में डालता है। उन्होंने कहा, ‘‘पोक्सो कानून के तहत किसी वयस्क और एक नाबालिग के बीच कोई भी यौन कृत्य दुष्कर्म है। तस्करी तथा धोखे से शादी के मामलों में ही आपराधिक पहलू पर गौर किया जाएगा।’’

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असम राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एएससीपीसीआर) की अध्यक्ष सुनीता चांगकाकोटी ने दावा किया कि राज्य सरकार द्वारा सख्त संदेश दिए जाने के बाद अब लोग कानून पर चर्चा कर रहे हैं जिसकी उनमें से कई लोगों को पहले जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा, ‘‘लोगों को अब मालूम है कि एक कानून के तहत बाल विवाह दंडनीय है। हमने उन जिलों में जागरूकता अभियान शुरू किए हैं, जहां बाल विवाह के अधिक मामले आते हैं और प्राधिकारियों से समाज में संदेश देने के लिए कुछ मामले दर्ज करने का कहा है।

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