ताजमहल के बाद पर्यटकों की खास पसंद खूबसूरत छत्रपति शिवाजी टर्मिनस

By डॉ. प्रभात कुमार सिंघल | Oct 07, 2020

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस रेलवे स्टेशन विश्व की धरोहरों में शामिल विलक्षण धरोहर है। यह भारतीय रेलवे के इतिहास के साथ-साथ देश की विरासत को पहचान देने वाला मध्य रेलवे का मुख्यालय एवं एक महत्वपूर्ण स्थल भी है जो चहुओर रेलवे के तीव्र विकास के लहराते परचम का केंद्रीय स्टेशन है। तीन देशों भारतीय हिन्दू-मुगल कला, ब्रिटेन की ब्रितानी कला और इटली की इतावली कला की से निमित एवं सुसज्जित भवन अपने निर्माण से 141 वर्ष बीतने पर भी बेजोड़ तकनीकी विशेषताओं के साथ आज भी शान से खड़ा है।

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भारतीय रेलवे ने न केवल इसकी कला और खूबसूरती को सहेज कर रखा हुआ है वरन साफ-सफाई, यात्री सुविधाओं, अत्यधिक आधुनिक सुविधाओं के साथ ग्रीन एनर्जी से भी लेस कर दिया हैं। भारतीय रेलवे की नींव रखने वाला छत्रपति शिवाजी टर्मिनस आज भारतीय रेलवे की शक्ति और प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया है। 


मुम्बई घूमने आने वालों का इसे देखना पचली वरीयता होती है, खूबसूरती में यह ताजमहल के बाद दूसरे नम्बर पर आता है। तत्कालीन समय में यह एशिया की सबसे बड़ी इमारत थी। इसकी बहुविध विशेषताओं की वजह से यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति ने इसे 2 जुलाई 2004 को अद्भुत स्टेशन को विश्व धरोहर में शामिल कर इसका महत्व प्रतिपादित दुगुनित कर दिया।


इस टर्मिनस का निर्माण 20 जून 1878 को आरंभ किया गया जिसका निर्माण कार्य 10 वर्षों में पूर्ण किया गया। ब्रिटिश वास्तुकार एफडब्ल्यू स्टीवेंस ने इसका डिजाइन किया था। इस से पूर्व वह यूरोप गया और 10 माह तक उसने कई स्टेशनों का अध्यन किया। इसमें लंदन के सेंट पेंक्रास स्टेशन की झलक दिखाई देती है।

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इस की रचना मध्यकालीन इटालियन मॉडल पर आधारित विक्टोरियन गोथिक डिजाइन के अनुसार है। इसके उल्लेखनीय पत्थर के अष्टकोणीय गुम्बद, कंगूरे, नोकदार आर्च और संकेन्द्रित भूमि योजना पारम्परिक भारतीय महलों की वास्तुकला के समरूप हैं। यह पूर्व से पश्चिम की ओर अंग्रेजी के अक्षर सी के आकार में संतुलित एवं योजनाबद्ध रूप से बनाया गया है। इमारत का मुख्य आकर्षण इसका केंद्रीय गुंबद हैं, जिसके ऊपर एक हाथ ऊपर किये प्रगति को दर्शाने वाली 16 फीट 6 इंच ऊंची मूर्ति लगी है। यहाँ बने बंदर, मोर, सिंह की मूर्तियाँ, विविध आकर के गुम्बद, मीनारें, रंगीन शीशे वाली खिड़कियां इमारत की भव्यता और सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। 


इसकी इमारत का निर्माण पत्थरों से किया गया है। दरवाजें और खिड़कियां बर्मी सागौन लकड़ी से बनाई हैं। कुछ खिड़कियां लोहे से भी बनाई गई है। अंदरूनी भागों में नक्काशीदार टाइलें, लोहे एवं पीतल की आकृतियां मुँडेर-जालियां, टिकट कार्यालय की ग्रिल व जाली एवं वृहत सीडीदार जाली लगाई है हैं। इसमें मुम्बई कला विद्यालय के स्टूडेंट्स द्वारा किये गये कलात्मक कार्य भी इसका आकर्षण बढ़ते हैं। इटेलियन मार्बल तथा पॉलिश भारतीय ब्लू स्टोन से बनाये गये यहां के हर गेट पर एक शेर (ब्रिटेन का प्रतीक) तथा चीता (भारत का प्रतीक) दिखाई देता है। साथ ही यहां रानी विक्टोरिया की प्रतिमा भी स्थापित की गई थी जिसे आजादी के बाद हटा दिया गया।

 

इस टर्मिनल की खासियत यहां का खास लुक तथा यहां का भारी-भरकम इन्फ्रास्ट्रक्चर है। इस भव्य इमारत को बनाने पर उस समय 16.30 लाख रुपया व्यय किया गया। यह टर्मिनस पारम्परिक पश्चिमी और भारतीय वास्तुकला का एक उत्कृष्ट सम्मिलन दर्शाने वाला एक अद्भुत नमूना और भारतीय विरासत की समृद्धि में एक अनोखी विशेषता जोड़ने वाला भवन है।

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वर्तमान में यहां पर 18 रेलवे प्लेटफॉर्म हैं जिनमें 11 लंबी दूरियों की ट्रेनों के लिए तथा 7 लोकल ट्रेनों के लिए काम में लिए जाते हैं। उप नगरीय समस्त रेलें यही से शुरू होती हैं और यहीं समाप्त होती हैं। यह कलात्मक इमारत मुम्बई के लोगों का एक अविभाज्य अंग है, क्योंकि यह स्टेशन उप शहरी और लंबी दूरी रेलों का स्टेशन है। यह भव्य टर्मिनस भारत के व्यस्ततम स्टेशनों में से एक है। इस स्टेशन से ग्रेट इंडियन पेनिनस्यूला रेलवे द्वारा मई 1878 में शुरू किया गया। 


बोरीबंदर इलाके में बना होने के कारण इसे पहले बोरीबंदर रेलवे स्टेशन भी कहा जाता था। बोरीबंदर कभी व्यापार का बड़ा केंद्र था और सुविधा उपलब्ध कराने के लिए इसका निर्माण यहाँ कराया गया। महारानी विक्टोरिया के 1887 में गोल्डन जुबली वर्ष के अवसर पर इस स्टेशन का नामकरण उनके सम्मान में उनके नाम पर विक्टोरिया टर्मिनस किया गया। आगे चल कर क्षेत्रीय मांग के मध्ये नजर 1996 में इसका नाम बदल कर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस कर दिया गया परन्तु आज भी वीटी यानी विक्टोरिया टर्मिनस नाम ही लोगों की जुबान पर है।


डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

लेखक एवं पत्रकार

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