By अभिनय आकाश | Sep 26, 2024
दिल्ली हाई कोर्ट ने शाही ईदगाह प्रबंध समिति पर कड़ी फटकार लगाते हुए शाही ईदगाह पार्क के अंदर रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा स्थापित करने पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया। अपनी टिप्पणियों में कोर्ट ने कहा कि इतिहास को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित नहीं किया जाना चाहिए। न्यायालय ने आगे टिप्पणी की कि 'झांसी की महारानी' (रानी लक्ष्मीबाई) सभी धार्मिक सीमाओं को पार करते हुए एक राष्ट्रीय नायक हैं। अदालत ने इसे निंदनीय बताते हुए याचिका खारिज कर दी। अदालत के माध्यम से सांप्रदायिक राजनीति खेली जा रही है।
दिल्ली शाही ईदगाह प्रबंध समिति की याचिका को पहले भी दिल्ली हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने खारिज कर दिया था। समिति ने न्यायालय की दूसरी पीठ के समक्ष याचिका दायर की थी। अदालत ने ईदगाह समिति की याचिका को विभाजनकारी बताया और कहा कि यह सांप्रदायिक राजनीति कर रही है और इस प्रक्रिया में न्यायालय का इस्तेमाल कर रही है। अदालत ने समिति के खिलाफ फैसला देने वाले एकल न्यायाधीश के खिलाफ अपील में इस्तेमाल किए गए शब्दों पर भी आपत्ति जताई और कहा कि यह निंदनीय दलीलें न्यायाधीश के प्रति अनुचित हैं।
समिति के वकील ने कहा कि वे याचिका वापस ले रहे हैं, तो अदालत ने उनसे कहा कि वे सबसे पहले अपनी याचिका से वे पैराग्राफ हटा दें, जिनमें अपमानजनक बातें कही गई हैं और साथ ही आज तक अदालत के समक्ष माफी भी मांगें। अदालत को मामले पर विचार करना है और अगली तारीख 27 सितंबर को वापसी पर आदेश पारित करने की संभावना है। समिति ने 1970 में प्रकाशित एक गजट अधिसूचना का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि शाही ईदगाह पार्क मुगलकाल के दौरान निर्मित एक प्राचीन संपत्ति है, जिसका उपयोग नमाज अदा करने के लिए किया जा रहा है। यह कहा गया कि इतने बड़े परिसर में एक समय में 50,000 से अधिक लोग नमाज अदा कर सकते हैं। अदालत ने उच्च न्यायालय की एक पीठ द्वारा पारित आदेश का हवाला दिया और कहा कि निर्णय में यह भी स्पष्ट किया गया कि शाही ईदगाह के आसपास के पार्क या खुले मैदान डीडीए की संपत्ति हैं और इनका रखरखाव डीडीए के बागवानी प्रभाग-दो द्वारा किया जाता है।