By अनन्या मिश्रा | Apr 20, 2024
आज यानी की 20 अप्रैल को आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम एन. चंद्रबाबू नायडू अपना 74वां जन्मदिन मना रहे हैं। उनको कोई मौकापरस्त तो कोई हाईटेक सिटी हैदराबाद का शिल्पकार कहता है। नायडू के बारे में यह तक कहा गया है कि वह मुख्यमंत्री नहीं बल्कि सीईओ हैं। आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम और तेलुगुदेशम पार्टी के मुखिया सत्ता के शीर्ष पर लंबे समय तक बने रहने वाले नेता है। आइए जानते हैं उनके बर्थडे के मौके पर एन चंद्रबाबू नायडू के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में।
जन्म और शिक्षा
चित्तूर जिले के नरवरी पल्ले में एक किसान परिवार में 20 अप्रैल 1950 को चंद्रबाबू नायडु का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम एन खरजुरा नायडु और मां का नाम अमनम्मा था। उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा पूरी करने के बाद तिरुपति की श्री वेंकेटश्वर यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में मास्टर्स की डिग्री हासिल की।
राजनीतिक करियर
महज 28 साल की उम्र में वह राज्य के सबसे युवा विधायक और मंत्री रहे। फिर साल 1995 से लेकर 2004 तक आंध्र प्रदेश के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे। वहीं साल 2004 के विधानसभा चुनाव में शिकस्त मिली और साल 2009 में उनकी पार्टी तेलुगु देशम पार्टी भी चुनाव हार गई। चुनाव हारने के बाद वह राज्य के सबसे लंबे समय तक विपक्ष के नेता भी रहे। वहीं साल 2014 के चुनाव में जीत हासिल करने के बाद एक बार वह फिर आंध्र प्रदेश सीएम बनें।
बता दें कि साल 1975 में जब देश में आपातकाल लगा, तो उस दौरान चंद्रबाबू नायडू संजय गांधी के काफी करीब रहे। वहीं साल 1978 के विधानसभा चुनाव में उनको कांग्रेस पार्टी की तरफ से चंद्रागिरी सीट से उतारा गया। इस दौरान वह चुनाव जीतने में कामयाब रहे। इसके बाद उनको टी अंजाइया की सरकार में तकनीकी शिक्षा और चलचित्रकला का मंत्री बनाया गया।
विवाह
चंद्रबाबू नायडू चलचित्रकला का मंत्री रहते हुए एनटी रामा राव के संपर्क में आए। एनटी रामाराव तेलगु सिनेमा के फेमस अभिनेता थे। वहीं साल 1980 में उन्होंने एनटीआर की बेटी भुवनेश्वरी से शादी कर ली। इसके बाद साल 1982 में एनटीआर ने तेलगु देशम पार्टी का गठन किया। जिसके बाद साल 1983 में टीडीपी ने शानदार जीत हासिल की। उस दौरान तक वह चंद्रबाबू नायडू कांग्रेस में थे। हांलाकि इस दौरान उनको टीडीपी के उम्मीदवार के सामने हार का सामना करना पड़ा था। जिसके बाद नायडू कांग्रेस का साथ छोड़कर टीडीपी में शामिल हो गए।
एनटीआर से किया विश्वासघात
साल 1985 में चंद्रबाबू नायडू टीडीपी के महासचिव बनें और उन्होंने धीरे-धीरे पार्टी में अपनी पैठ बनानी शुरूकर दी। वहीं एनटीआर के दामाद होने के कारण नायडू की किस्मत का सितारा सियासत में काफी तेज चमका। तभी भास्कर राव ने एनटीआर के खिलाफ विद्रोह कर दिया। तब नायडू ने ससुर एनटीआर के साथ विधायकों को एकजुट रखते हुए सरकार बचाई। अब नायडू को एनटीआर के राजनीतिक वारिस के तौर पर देखा जाने लगा।
वहीं साल 1989 और 1994 में वह चित्तूर के कुप्पम से चुनाव जीतकर सदन पहुंचे। साल 1995 चंद्रबाबू नायडू के जीवन का टर्निंग प्वाइंट भी साबित हुआ। जिस एनटीआर के सहारे चंद्रबाबू सियासत में आगे बढ़े, उन्ही को नायडू ने दूध से मक्खी की तरह निकालकर अलग कर दिया। 1 सितंबर 1995 में चंद्रबाबू नायडू ने अपने ससुर एनटीआर को ऐसी दगा दी, जिसकी टीस एनटीआर के दिल में आखिरी समय तक रही। इसी दिन नायडू ने न सिर्फ सीएम की कुर्सी बल्कि टीडीपी पर भी कब्जा जमा लिया। इस विश्वासघात से एनटीआर इतना अधिक नाराज हुए कि उन्होंने चंद्रबाबू नायडू को पीठ में खंजर घोपने वाला औरंगजेब तक कह दिया।
चंद्रबाबू नायडू अविभाजित आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बनें। इस दौरान वह 8 साल, 8 महीने और 13 दिन सीएम रहे। नायडू का यह कार्यकाल राज्य के किसी सीएम का सबसे लंबा कार्यकाल है। हांलाकि उन पर यह आरोप भी लगा कि बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने साइबर सिटी के रूप में हैदराबाद को आईटी हब बनाया। लेकिन आसपास के इलाकों का विकास नहीं किया। साल 2004 और 2009 में उनको कांग्रेस के कद्दावर नेता वाईएस राजशेखर रेड्डी ने शिकस्त दी थी। वहीं साल 2019 के राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान चंद्रबाबू नायडू को वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के जगन मोहन रेड्डी ने हराया था।