By प्रह्लाद सबनानी | Jun 01, 2021
कोरोना महामारी ने पूरे विश्व के लगभग सभी देशों को प्रभावित किया है। कहीं कहीं तो इस महामारी का प्रभाव इतना बलशाली रहा है कि उस देश की जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग इस बीमारी की चपेट में आकर संक्रमित हो गया है। लगभग सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएं तो चौपट हो ही गई हैं। भारत भी इस संदर्भ में कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। हमारे देश में समाज के कई वर्गों पर कोरोना महामारी का व्यापक असर देखने में आया है। जैसे कोरोना से संक्रमित परिवारों पर, स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले लोगों पर, मध्यमवर्गीय एवं गरीब परिवारों पर, छोटे कारोबारियों पर एवं आर्थिक गतिविधियों पर अलग-अलग प्रकार का दबाव देखने में आया है। हालांकि उक्त वर्णित वर्गों पर आई इन चुनौतियों का समाधान निकालने के प्रयास केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा किए जा रहे हैं। साथ ही, कोरोना महामारी के इस दूसरे दौर में देश की कई धार्मिक संस्थाओं, सामाजिक संस्थाओं एवं सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा भी आगे आकर समाज में प्रभावित परिवारों की भरपूर मदद की जा रही है। पूरा देश ही जैसे एक परिवार की तरह एक दूसरे की सहायता में तत्पर हो गया है। कोरोना महामारी के कारण समाज के विभिन्न वर्गों पर आया दबाव निम्न प्रकार रहा है।
कोरोना से संक्रमित परिवारों पर दबाव
कोरोना महामारी के दूसरे दौर के वक्त में भारी संख्या में देश के नागरिक इस महामारी से ग्रसित हो रहे हैं एवं उनकी देखभाल के लिए उनके अपने परिवार के लोग चाहकर भी उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं क्योंकि संक्रमित मरीज़ों को अलग रखना जरूरी है। ऐसे माहौल में देश के नागरिकों में डर एवं अवसाद की भावना पैदा हो रही है। कई परिवारों में तो माता-पिता दोनों का देहांत हो जाने के बाद अब बच्चे अनाथ हो गए हैं एवं इनके देखभाल की समस्या पैदा हो गई है। कई मध्यमवर्गीय परिवारों ने अपनी बीमारी का इलाज कर्जा लेकर कराया है, वे परिवार अब ऋण के बोझ के तले दब गए हैं।
कोरोना महामारी के चलते संक्रमित परिवारों पर आए दबाव को कम करने के लिए मन में सकारात्मक विचारों का संचार करना आवश्यक है। किसी के भी मन में निराशा का भाव पैदा नहीं होने देना चाहिए और इसके लिए संकट की इस घड़ी में समाज के सभी सदस्यों को मिलकर काम करना चाहिए एवं प्रभावित परिवारों के साथ एकजुट होकर खड़े रहना जरूरी है।
योग, ध्यान, शारीरिक व्यायाम, शुद्ध सात्विक आहार एवं उचित उपचार के साथ इस बीमारी से बचा जा सकता है। साथ ही रचनात्मक कार्यों को करते हुए अपने आप को व्यस्त रखने का प्रयास कर सकते हैं। कोई भी भूखा ना रहे कोई भी बगैर इलाज के ना रहे, इसके लिए प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से अपने आप को सेवा से जोड़ सकते हैं। अगर प्रत्यक्ष आकर खुद नहीं कर सकते तो जो संस्थाएं इन कार्यों में लगी हुई है उन संस्थानों से जुड़ सकते हैं। नियम व्यवस्था और कानूनों का पालन करते हुए कोशिश कर सकते हैं कि जहां भी संभव हो सके, ऐसे लोगों को रोजगार दें या ऐसे कार्य करें, जिससे जो लोग अपना रोजगार खो बैठे हैं, वह रोजगारोन्मुखी कार्य कर सकें।
साफ-सफाई और हाइजीन का पूरा ध्यान रखना एवं मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करना भी जरूरी है और इसके बावजूद भी यदि कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाएं तो धैर्य नहीं खोना चाहिए। इस बात को छुपाना बिल्कुल भी नहीं चाहिए बल्कि अपने आसपास के लोगों को बता कर, जल्द से जल्द उचित उपचार करा कर, अपने स्वास्थ्य को ठीक कर, इससे बाहर आना चाहिए।
डॉक्टर, नर्से एवं अस्पतालों पर दबाव
कोरोना महामारी के दूसरे दौर में संक्रमित लोगों की अत्यधिक बढ़ी हुई संख्या के कारण देश के डॉक्टर एवं नर्सों पर अतिरिक्त बोझ उत्पन्न हो गया है। इस महामारी के पहले दौर में एक दिन में सबसे अधिक मरीजों की संख्या लगभग 96,000 तक पहुंची थी परंतु इस बार दूसरे दौर में यह संख्या 4 लाख का आंकड़ा भी पार कर गई थी। इस कारण से कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान देश के अस्पतालों पर स्पष्ट रूप से अधिक दबाव देखा गया था। कई शहरों के अस्पतालों में कोरोना से संक्रमित मरीजों के लिए बिस्तरों का अभाव होने लगा था तो कई शहरों में ऑक्सिजन उपलब्धता में कमी हो गई थी, रेमिडिसिवेर नामक दवाई का भी अभाव हुआ था तथा प्लाज़्मा की मांग एकाएक बढ़ने से इसकी उपलब्धता में भी कमी हो गई थी। कुल मिलाकर ऐसा महसूस होने लगा था कि देश में उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाएं शायद पर्याप्त नहीं हैं। ऐसी स्थिति में स्वास्थ्य क्षेत्र में और अधिक सुविधाएं उपलब्ध कराना अब आवश्यक हो गया है। केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक ने इस दिशा में तुरंत ही कदम उठाते हुए हाल ही में बैंकों के लिए रेपो रेट (4%) पर 50,000 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराई है ताकि इन बैंकों की ऋण प्रदान करने की क्षमता बढ़ाई जा सके एवं ये बैंक विशेष रूप से देश में स्वास्थ्य क्षेत्र को अतिरिक्त ऋण प्रदान कर सकें।
नौकरी छूटने पर गरीब परिवारों पर दबाव
समाज के कई परिवारों में कमाने वाले सदस्यों की नौकरी छूट जाने के कारण इन परिवारों के सदस्यों के लिए लालन-पालन की समस्या पैदा हो गई है। इन परिवारों को राशन सामग्री पहुंचाए जाने की आज महती आवश्यकता है। कई धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संस्थाओं ने इस प्रकार के कार्य इस दूसरे दौर के दौरान बहुत ही सफलतापूर्वक सम्पन्न किए हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा भी गरीब परिवारों को मुफ्त अनाज उपलब्ध कराया जा रहा है।
छोटे कारोबारियों पर दबाव
लॉकडाउन के चलते दुकानें बंद रहने के कारण छोटे कारोबारियों को भी नुकसान होने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। चूंकि, छोटे कारोबारी अभी तक महामारी की पहली लहर से ही उबर नहीं पाये हैं, ऐसे में दूसरी लहर उन्हें ज्यादा तकलीफ दे सकती है। इस समस्या के समाधान के लिए देश के प्रत्येक नागरिक को अपनी दैनिक उपयोग की सामग्री को छोटे-छोटे दुकानदारों से खरीदने की आदत विकसित करनी चाहिए ताकि इन कारोबारियों के व्यवसाय में वृद्धि हो सके। गरीब सब्जी वाले एवं ठेले पर सामान बेचने वालों से अधिक भाव-ताव न करते हुए उनसे सामान खरीदने की आदत अपने आप में विकसित करनी चाहिए ताकि समाज का यह वर्ग भी कुछ आय का अर्जन कर सके।
आर्थिक गतिविधियों पर दबाव
जब देश के कई राज्यों में लॉकडाउन लगाया गया हो, ऐसी स्थिति में आर्थिक गतिविधियों पर भी दबाव बढ़ने की सम्भावनाएं बन गई हैं। क्रेडिट रेटिंग संस्था क्रिसिल के अनुसार, खुदरा व्यापार, आतिथ्य (होटल उद्योग), वाहन डीलरशिप, पर्यटन, रियल एस्टेट क्षेत्र की कंपनियों आदि पर महामारी का सबसे अधिक असर पड़ेगा। उक्त क्षेत्र की सभी कम्पनियों के लिए केंद्र सरकार द्वारा शीघ्र ही एक विशेष आर्थिक पेकेज लाये जाने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।
अब ऐसा लगाने लगा है कि हमें अपनी भारतीय परम्पराओं की जड़ों की ओर लौटने का समय आ गया है। जैसे संयुक्त परिवारों की वापस व्यवस्था हो। संयुक्त परिवारों में पड़ोसियों को भी महत्व देना प्रारम्भ करना चाहिए ताकि किसी भी प्रकार की समस्या आने पर पूरे मोहल्ले में रहने वाले परिवार मिलकर उस समस्या का समाधान निकाल सकें। मानसिक स्वास्थ्य भी इससे ठीक रहेगा। आज यदि हम ध्यान से देखें तो समझ में आता है कि वैश्विक स्तर पर कोरोना महामारी के प्रभाव को कम करने के लिए किए जा रहे प्रयासों में हमारी भारतीय परम्पराओं की झलक स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है। जैसे मास्क पहनना (अहिंसा), अपने आस-पास स्वच्छता का वातावरण बनाए रखना (पवित्रता), शारीरिक दूरी बनाए रखना (भारत में व्याप्त हाथ जोड़कर अभिवादन करने की पद्धति को तो आज पूरा विश्व ही अपना रहा है), निजी तथा सार्वजनिक कार्यक्रमों में संख्या की सीमा का पालन करना (मर्यादित उपभोग), कर्फ़्यू पालन जैसे नियम- अनुशासन एवं आयुर्वेदिक काढ़ा सेवन, भाप लेना (भारतीय चिकित्सा पद्धति की ओर भी आज पूरा विश्व आशा भारी नजरों से देख रहा है), योग क्रिया करना (भारतीय योग को भी आज पूरा विश्व अपनाता दिख रहा है), टीकाकरण जैसे स्वास्थ्य के विषयों के बारे में व्यापक जनजागरण करना आदि का वर्णन तो सनातनी परम्परा में भी दृष्टिगोचर होता है।
-प्रह्लाद सबनानी
सेवानिवृत्त उप-महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक