By योगेन्द्र योगी | Jun 05, 2019
नवगठित भाजपा गठबंधन सरकार ने देश के समग्र विकास की दिशा में कदम बढ़ाते हुए पहली कैबिनेट की बैठक के बाद घोषणाओं का पिटारा खोल दिया। इसक तहत किसान और व्यवसायियों को साधने का प्रयास किया गया है। ये दोनों ही तबका बड़ा वोट बैंक भी है। इनके जरिए भाजपा की निगाहें कई राज्यों में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों को साधने की है। यक्ष प्रश्न यही है कि केन्द्र सरकार की घोषणाओं को अमलीजामा कैसे पहनाया जाएगा।
कैबिनेट की बैठक में ये घोषणाएं की गई हैं, इससे पहले केन्द्र सरकार के बजटों में भी ऐसी घोषणाएं होती रही हैं। हर साल संसद में बजट लाया जाता रहा है। उसमें ऐसी ही लोकलुभावन घोषणाओं का अंबार लगा होता है। इसके बावजूद देश आज तक विकास के विभिन्न पैमानों पर पिछड़ा हुआ है। देश की आधी से ज्यादा आबादी गरीबी की जीवन रेखा से जीवनयापन करने को विवश है। बड़ी आबादी के पास दो वक्त का खाना, बिजली, पानी, सड़क, स्कूल, अस्पताल और परिवहन जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। जबकि पूर्व में ऐसी सुविधाओं के नाम पर बजटों में अरबों−खरबों के प्रावधान होते आए हैं। यदि घोषणाओं से ही विकास की गंगा बही होती तो देश आज विश्व के विकसित देशों की कतार में खड़ा होता। निश्चित तौर पर ऐसा नहीं हो सका तो ऐसी घोषणाओं पर सवाल उठने लाजिमी है।
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केन्द्र सरकार के पास घोषणाओं पर अमल कराने की कोई सीधी मशीनरी नहीं है। केन्द्र की घोषणाओं की क्रियान्वति का सारा दारोमदार राज्यों पर होता है। केन्द्र सरकार योजनाओं के लिए किए गए प्रावधानों की राशि राज्यों को देती है। राज्यों के जरिए योजनाएं धरातल तक पहुँचती हैं। राज्यों के प्रशासनिक तंत्र पर केन्द्र सरकार का नियंत्रण नहीं है। राज्यों में राज्य सरकार ही केन्द्र और राज्य की योजनाओं को सतह तक पहुंचाती हैं।
राज्यों का सरकारी तंत्र राज्य सरकार के प्रति उत्तरदायी होता है। राज्यों के स्तर पर भ्रटाचार का आलम है यह है कि योजनाएं आम लोगों तक पहुंचती ही नहीं हैं। केन्द्र सरकार भी राज्यों में दशकों से जारी भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में पूरी तरह नाकाम रही है। ये मामले राज्य सूची में होने के कारण केन्द्र सरकार योजनाओं की प्रगति के बारे में सिर्फ कागजी पूछताछ कर सकती है। हालांकि केन्द्र की योजनाओं की धनराशि के इस्तेमाल पर राज्यों को इस बात का प्रमाण पत्र देना होता है कि उसका उपयोग किया गया है। किन्तु केन्द्र सरकार के पास ऐसा कोई वैधानिक अधिकार नहीं है कि योजनाओं में भ्रष्टाचार पर लगाम लगा सके।
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राज्य के मामले होने के कारण केन्द्र सरकार सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकती। राज्यों को इस बात की चिंता नहीं रहती कि राज्य या केन्द्र की योजनाओं की राशि का पूरा फायदा निर्धारित वर्ग तक पहुंच रहा है या नहीं। विकास की इतनी योजनाएं केंद्र और राज्य बना चुके हैं कि यदि व्यवहारिक तौर पर इन पर अमल हो गया होता तो अब तक देश में एक भी राज्य पिछड़ा नहीं रहता। ऐसे राज्य जहां क्षेत्रीय दलों की सरकार हैं, उन्हें योजनाओं की सौ प्रतिशत क्रियान्वति की परवाह नहीं होती। उनका एकमात्र लक्ष्य जोड़तोड़ बिठा कर सत्ता में वापसी करना होता है। यही वजह भी है राज्यों के सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार अजगर की तरह पसरा हुआ है। ऐसा नहीं है कि इसकी जानकारी क्षेत्रीय दलों की सरकारों को नहीं है, हकीकत यह है कि जानकारी होने के बावजूद भ्रष्टाचार का खात्मा राजनीतिक दलों की प्राथमिकता सूची में दिखावटी तौर पर शामिल रहता है। ज्यादातर क्षेत्रीय दल चुनाव जीतने के लिए दूसरे कारकों का सहारा लेते हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो परोक्ष रूप से क्षेत्रीय दल ही भ्रष्टाचार को संरक्षण देते हैं। यही वजह है कि क्षेत्रीय दलों के नेताओं−मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद कार्रवाई नहीं होती। कांग्रेस इसी का खामियाजा भुगत रही है। एक तरफ कांग्रेस छद्म राष्ट्रवाद का चोला ओढ़े रही, वहीं दूसरी तरफ भ्रष्टाचार के दागों को धोने में नाकाम रही। यह निश्चित है कि केन्द्र हो या राज्यों की सरकारें जब तक भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए संयुक्त तौर पर काम नहीं करेंगी तब तक ऐसी योजनाएं धरातल पर पहुंचने से पहले ही दम तोड़ती रहेंगी।
-योगेन्द्र योगी