By अंकित सिंह | Jul 17, 2023
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण पर केंद्र के अध्यादेश को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए एक नोटिस जारी किया, जहां उसने कहा कि वह इस मामले को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंपने के इच्छुक है। पिछले हफ्ते शीर्ष अदालत ने अध्यादेश पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था। वहीं, केंद्र ने दिल्ली अध्यादेश का बचाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपना हलफनामा दायर किया। गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अध्यादेश को तत्काल लाना पड़ा क्योंकि दिल्ली सरकार राजधानी को 'पंगु' बनाने और सतर्कता विभाग के अधिकारियों को परेशान करने का प्रयास कर रही थी।
दायर हलफनामें के मुताबिक सतर्कता विभाग की फाइलों में उत्पाद शुल्क नीति मामले की फाइलें, अरविंद केजरीवाल के नए बंगले से संबंधित फाइलें भी शामिल थीं। दिल्ली सरकार के विज्ञापनों की जांच और दिल्ली की बिजली सब्सिडी आदि सभी को दिल्ली सरकार के मंत्रियों ने सतर्कता विभाग से गैरकानूनी तरीके से हिरासत में ले लिया। अध्यादेश का बचाव करते हुए केंद्र ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 246(4) संसद को भारत के किसी भी हिस्से के लिए किसी भी मामले के संबंध में कानून बनाने का अधिकार देता है जो किसी राज्य में शामिल नहीं है, इसके बावजूद ऐसा मामला राज्य सूची में दर्ज मामला है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि संसद सक्षम है और उसके पास उन विषयों पर भी कानून बनाने की सर्वोपरि शक्तियां हैं, जिनके लिए दिल्ली की विधान सभा कानून बनाने के लिए सक्षम होगी।
भाजपा नीत केंद्र सरकार मई में दिल्ली में नौकरशाहों के तबादले और तैनाती पर अध्यादेश लेकर आयी थी, जिससे उच्चतम न्यायालय के उस फैसले का प्रभाव खत्म हो गया था, जिसमें सेवाओं पर नियंत्रण निर्वाचित सरकार को दिया गया था। अध्यादेश में दानिक्स कैडर के ग्रुप-ए अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही और तबादलों के लिए राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण स्थापित करने का प्रावधान है। उच्चतम न्यायालय के 11 मई के फैसले से पहले दिल्ली सरकार के सभी अधिकारियों के तबादले और तैनाती का शासकीय नियंत्रण उपराज्यपाल के पास था।