कहाँ जा रहा है समाज, दलितों के साथ जारी है अमानुषिक अत्याचार

By तरूण विजय | Dec 05, 2019

हम यह उदाहरण देते थकते नहीं कि श्रीराम ने समाज में समता और समरसता स्थापित की, किसी से भेदभाव नहीं किया, शबरी के झूठे बेर खाए, जटायु राज से प्रेम किया, हनुमान को गले लगाया। लेकिन श्रीराम के उपासक यह भूल जाते हैं कि आज अगर हिंदुओं को सबसे बड़ा खतरा और श्रीराम नाम का सबसे बड़ा उल्लंघन यदि किसी रूप में हो रहा है तो वह है हिंदू समाज के ही अभिन्न अंग- रक्तबंधु जिन्हें दलित और अनुसूचित जाति का भी कहते हैं, के साथ भयानक अमानुषिक अन्याय और उन पर अत्याचार। एक समय था जब गुरु तेग बहादुर साहब ने कश्मीरी हिंदुओं के उत्पीड़न पर मुगल सल्तनत को चुनौती दे दी थी पर आज दुःखी, दलित, पीड़ित समाज सरकारी विभागों और नेताओं के बेरहम घड़ियाली आंसुओं के भरोसे तड़पता रहता है लेकिन उनके अथाह दुःख का कोई अंत निकट नहीं दिखता।

 

पंजाब के संगरूर जिले में चंगलीवाला गांव में अनुसूचित जाति के 37 वर्षीय युवा जगमेल सिंह के साथ जो भयानक हादसा हुआ वह आईएसआईएस के बर्बर इस्लामवादियों को भी शर्मिंदा कर सकता है। महज दो सौ रुपये के कुछ झगड़े के कारण जगमेल सिंह को उठा लिया गया, उसे खंभे से बांध कर लोहे के सरियों से पीटा गया, चिमटे से उसकी टांग और जंघा से मांस नोचा गया, उसके नाखून प्लास से निकाले गए और कितना दर्दनाक टार्चर किया गया कि न शब्द मिलते हैं और न वह सब सुनने की किसी संवेदनशील व्यक्ति में क्षमता ही होगी। उसकी सहायता के लिए कोई नहीं आया। उसे पुलिस और स्थानीय डॉक्टरों ने भी सहायता नहीं दी और आखिरकार जब उसे चंडीगढ़ के मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया तो उसकी दोनों टांगें काटनी पड़ीं फिर भी उसे बचाया नहीं जा सका।

इसे भी पढ़ें: अयोध्या के लिए योगी-मोदी का मास्टरप्लान तैयार

तो अब क्या होगा? कुछ जांच वगैरह हुई। उसके परिवार को चुप कराने के लिए कुछ पैसा भी दिया जाएगा, शायद बड़ी राशि भी दी गई। कुछ लोगों को फिलहाल कड़े कानून, कड़े नियमों के अंतर्गत पकड़ा भी जाएगा। और ऐसी अगली घटना होने तक सारा मामला खत्म हो जाएगा। दलितों को विश्वास नहीं है कि जो लोग खुद को ऊंची जाति का कहते हैं वे उसके साथ न्याय करेंगे। और ऐसे लोग सब जगह, पुलिस, न्यायपालिका, शासन, प्रशासन- वही लोग हैं जो अपने भाषणों में दलितों से सहानुभूति व्यक्त करते हैं, बहुत कुछ कहते हैं। अक्सर भाषण देते हुए भावुक भी हो जाते हैं। लेकिन मामला वहीं का वहीं रहता है क्योंकि बड़ी जाति वाले, बड़ी जाति वालों के सम्मेलनों में समता की बातें कहते हुए बड़ी जाति वालों की तालियां समेटते हैं और बड़ी जाति की मीडिया में फोटवें छपवा लेते हैं।

 

दलितों में भी एकता का अभाव है। अब कोई अंबेडकर नहीं जो निःस्वार्थ भाव से उनकी वेदना को लेकर चले और उसे राजनीतिक सौदेबाजी की दुकानदारी का हिस्सा न बनाए। जो अनुसूचित जाति के महापुरुष चुनाव जीतते हैं उन्हें अपने अगले टिकट के लिए उन लोगों पर निर्भर रहना पड़ता है जो बड़ी जाति के अहंकार वाले हिस्से से जुड़े होते हैं। अंबेडकर का नाम लेना फैशन है लेकिन अंबेडकर का नाम लेने वाले भी उस सावरकर और विवेकानंद को भूल जाते हैं जिन्होंने तथाकथित उच्च जाति के समाज को जाति भेद के लिए धिक्कारा था, लताड़ा था और अंधे कर्मकांड के खिलाफ निर्भीकतापूर्वक आवाज उठाई थी।

 

आज मीडिया में भी लगभग सर्वसमावेशी जातिवाद और उस पर भी बड़ी जाति के अहंकारवादियों का वर्चस्व है। जगमेल सिंह जैसे रोंगटे खड़े करने वाले भयानक घटनाक्रम अब उद्वेलित नहीं करते, रोजमर्रा की घटनाओं में बहा दिए जाते हैं।

 

इन पंक्तियों को लिखते समय मैं अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष श्री रामशंकर कठेरिया जी से मिला। सांसद हैं, संवेदनशील हैं। मैंने कहा, कहां जा रहे हैं, भाईजी? बोले तमिलनाडु जा रहा हूं, वहां एक दीवार ढहने से 17 दलित मारे गए हैं। 17 दलितों का मारा जाना इस देश के लिए सिर्फ एक रोजनामचे और एक जांच का रोजमर्रा होने वाला मामला है। एकाध कोई मीडिया चैनल इस खबर को कुछ और मसाला लगाकर प्रसारित कर देगा। लेकिन अन्य बहुत सारे राजनैतिक मुद्दे हैं जो इन 17 लोगों की जाति विद्वेष के कारण नियोजित की गई दीवार हत्या पर छा जाएंगे। चुनाव हैं, कुछ हो गए, कुछ होने वाले हैं। सुरक्षा, आतंकवाद, मंदिर, हिंदुओं पर हमले, आंतरिक सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, घटती-बढ़ती सकल घरेलू आय और आर्थिक विकास की दर, पर्यटन आदि इत्यादि।

इसे भी पढ़ें: बसपा के वोट बैंक पर सपा की नजर, बाबा साहेब के नाम का फायदा उठाने की होड़

अनुसूचित जाति के लोगों का किसी अत्याचार के कारण मरना या उसके साथ अन्याय होना, यह इतना आम, नियमित होने वाला और लगभग स्वीकार हो चुका विषय बन गया है कि अब इस पर किसी संत-महात्मा को 'हिंदू धर्म खतरे में है' ऐसा लगता नहीं। किसी को लगता नहीं कि जो हिंदू धर्म के भीतर ही जीने और मरने का साहस दिखाते हुए विषमता और विद्वेष का शिकार होते हैं, उसके साथ सहानुभूति, राहत और अपनेपन का कोई रिश्ता कायम करना चाहिए। कथाएं होती रहेंगी, एक-एक कथा पर करोड़ों रुपये न्यौछावर भी होते रहेंगे पर ये जाति की दीवारें हर एक भागवत कथा, हर एक मंदिर की नींव को दरकाती जाएंगी।

 

25-50 हजार करोड़ की लागत से अयोध्या में राम मंदिर भी बन जाएगा- करोड़ों श्रद्धालु वहां आएंगे भी लेकिन यह उस हिंदू समाज में होगा जिसकी नींव जातिगत विद्वेष, अपने ही बच्चों को जाति भेद के कारण शादी से मना करने पर उन्हें आत्महत्या पर मजबूर करने की वीभत्सता और जगमेल सिंह तथा मेट्टुपल्लयम (कोयंबटूर) में जाति की दीवार तले दब कर मरे 17 हिंदु अनुसूचित जाति वालों की चीख-पुकार से अशांत है। मंदिर से बड़ा काम उस मंदिर का संरक्षण करना है जिसमें श्रीराम और सीता मैया साक्षात् विराजमान होते हैं पर जिन्हें हर दिन जाति भेद का अपमान सहना पड़ता है।

 

-तरुण विजय

लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं

 

प्रमुख खबरें

AUS vs IND: बॉक्सिंग डे टेस्ट में रोमांचक मुकाबले की संभावना, क्या रोहित करेंगे ओपनिंग, जानें किसका पलड़ा भारी

Importance of Ramcharitmanas: जानिए रामचरितमानस को लाल कपड़े में रखने की परंपरा का क्या है कारण

Arjun Kapoor के मैं सिंगल हूं कमेंट पर Malaika Arora ने दिया रिएक्शन, जानें क्या कहा?

बढ़ेंगी Pulsar N160 और Apache RTR 160 की मुश्किलें, Honda ने लॉन्च कर दी अपनी शानदार बाइक