क्या इस बार की दीवाली दीयों की रोशनी में ही मनानी पड़ सकती है? कोयले की कमी और बिजली संकट का 'Power'फुल विश्लेषण

By अभिनय आकाश | Oct 14, 2021

ये कुछ वर्षों पहले की बात है जब हमें 24 घंटे बिजली की आदत नहीं लगी थी। लाइट जैसे आती थी, चली जाती थी। जब ऐसा होता था तो हम घर के बाहर निकलते थे और चेक करते थे कि पूरे मुहल्ले की गई है या नहीं। लाईट जितनी देर के लिए जाती थी इससे हम इसके जाने के कारणों का अंदाजा लगाते थे। एक-दो घंटे का मतलब आम कटौती, दो तीन घंटे का मतलब मेंटेनेंस चल रहा है। इससे जब ज्यादा होता था तो पता किया जाता था कि ट्रांसफर्मर जलने जैसा कुछ बड़ा हुआ है क्या? क्या हो अगर बिजली घर में बिजली ही न बने क्योंकि कोयला घर में कोयला ही खत्म हो। इन दिनों क्या आपके घर की बिजली भी एक दिन में ही कई बार जा रही है, अगर जवाब हां है तो ये सिर्फ आपके साथ नहीं हो रहा। बल्कि भारत के 135 करोड़ लोग आने वाले दिनों में इसी तरह की समस्या से रूबरू हो सकते हैं और उनके घर की बिजली भी बार-बार जा सकती है। देश में कोयले का संकट है और कई राज्य बिजली की समस्या से जूझ रहे हैं। देखते ही देखते खेल अब पूरा सियासी हो गया है। केंद्र और राज्य सरकारें एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ रही हैं। इस बीच सरकार की ओर से लगातार भरोसा दिया जा रहा है कि हालात पर काबू पा लिया जाएगा। सरकार एक ओर जहां कोयले का संकट खत्म करने का भरोसा दे रही है वहीं विपक्ष लगातार हमलावर है। 

वर्तमान का कोयला संकट?

गुजरात, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली और तमिलनाडु सहित कई राज्यों ने बिजली संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति को लेकर ब्लैकआउट (पावर कट) पर चिंता जताई है। राजस्थान, पंजाब और बिहार ने पहले ही कम क्षमता पर काम कर रहे ताप विद्युत संयंत्रों के परिणामस्वरूप रोटेशनल लोड शेडिंग लगा दी है। चीन में कमी के कारण कोयले की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तेज वृद्धि और अप्रैल-जून की अवधि में थर्मल पावर प्लांटों द्वारा स्टॉक के कम संचय ने भी कोयले की कमी में योगदान दिया है। सितंबर में कोयला असर वाले क्षेत्रों में भारी बारिश के कारण थर्मल प्लांटों को कोयले की आपूर्ति में भी कमी आई थी। कोयले और लिग्नाइट से चलने वाले ताप विद्युत संयंत्रों की भारत की स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का लगभग 54 प्रतिशत हिस्सा है, लेकिन वर्तमान में देश में उत्पन्न होने वाली बिजली का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा है। देश में कोयला आधारित बिजली उत्पादन इस साल सितंबर तक 24 प्रतिशत बढ़ा है। प्लांट्स को औसतन रोज 18.5 लाख टन कोयले की जरूरत होती है। जबकि सामान्य स्थिति में करीब 17.5 लाख टन सप्लाई होती है। 

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राज्यों के हालात

  • महाराष्ट्र में कोयले के संकट की वजह से सात थर्मल पावर प्लाट की 13 यूनिट ठप पड़ गई है। राज्य सरकार ने नैशनल एक्सचेंज से पावर खरीदने की तैयारी कर ली है। 15 दिन तक राज्य में संकट नहीं। 
  • उत्तर प्रदेश में कोयले की कमी से पावर प्लांटों में 5250 मेगावाट बिजली का कम उत्पादन हुआ। वहीं निजी पावर प्लाटों से (2550 मेगावाट और एनटीपीसी के पावर प्लांटो से 1600 मेगावाट कम बिजली उत्पादन हुआ ग्रामीण इलाकों में 9 घंटे बिजली कटौती हुई। 
  • मध्य प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रधुम्न सिंह तोमर ने दावा किया राज्य सरकार ने अपने बिजली स्टेशनों के लिए आठ मीट्रिक टन कोयले की खरीद के लिए निविदाएं जारी की है। 
  • पंजाब में बिजली सप्लाई की स्थिति गंभीर बनी हुई है उपभोक्ताओं के लिए तीन घंटे की दैनिक बिजली कटौती की जा रही रही है।
  • कर्नाटक ने मुख्यमंत्री नसवराज बोम्मई ने कहा कि हमने केंद्र से कोयले की आपूरी वार रेक बढ़ाने का अनुरोध किया है। 
  • केरल में 15% बिजली की कमी पर केरल के मंत्री के कृष्णन ने कहा कि बिजली की कभी तने समय तक जारी रहने की स्थिति में लोड शेडिंग का सहारा लेना पड़ सकता है।

भारत में बिजली का उत्पादन कैसे होता है

हर देश में सात तरीकों से बिजली का उत्पादन होता है। सबसे ज्यादा थर्मल यानी कोयले से बिजली बनाई जाती है। भारत में 70 प्रतिशत बिजली का उत्पादन कोयले से होता है। नेशनल पॉवर पोर्टल (एनपीपी) के मुताबिक देश में तीन लाख 88 हजार मेगावाट की बिजली बनाने की क्षमता है। देश में हर रोज 2 लाख 204 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है। 

 तरीका उत्पादन (मेगावाट)
 थर्मल (कोयला) 2.24 लाख
 सोलर पॉवर 46.228 हजार
 विंड पॉवर 39.870 हजार
 बायो पॉवर 10.577 हजार
 न्यूक्लियर 6.780 हजार

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कितना कम कोयला

देश में कोयले की कमी के कई कारण हैं। कोरोना महामारी के बाद से तेज  होती अर्थव्यवस्था कोयले के कम होने और बिजली की मांग में तेज वृद्धि का बड़ा कारक है। बीते दो महीनों में ही बिजली की ख़पत 2019 के मुकाबले में 17 प्रतिशत बढ़ गई है। इस बीच दुनियाभर में कोयले के दाम 40 फ़ीसदी तक बढ़े हैं जबकि भारत का कोयला आयात दो साल में सबसे निचले स्तर पर है। बिजली घरों में कोयले के न्यूनतम स्टॉक को लेकर कोई कानून या नियम नहीं है। लेकिन सरकार सुझाव की भाषा में ज़रूर कहती है कि हर बिजली घर को 14 दिन का कोयला भंडार अपने पास रखना चाहिए। अब ये स्वाभाविक ही है कि हर पावर प्लांट अपने यहां 14 दिन का भंडार लगातार बनाए रखे। ये कभी-कभी 14 दिन से नीचे भी हो सकता है। सभी पावर प्लांट्स 14 दिन का स्टॉक रखें, ये ज़रूरी नहीं है। फिर मॉनसून के वक्त चूंकि बारिश होती है, उससे कोयले के उत्पादन पर असर पड़ता है। क्योंकि बारिश का पानी खदानों में भरने लगता है। खदानें बारिश में भी काम करती हैं, लेकिन वो गर्मी या बारिश जितना उत्पादन नहीं कर पातीं। इसीलिए मॉनसून और मॉनसून के तुरंत बाद अक्सर बिजली घरों के पास कोयले का स्टॉक कुछ कम होता है। लेकिन ये बहुत कम न होने पाए, इसके लिए आम तौर पर सरकारें अप्रैल और मई में कोयले का उत्पादन बढ़ाने लगती है। 

मार्च में ही लिखा था पत्र

केंद्र सरकार का कहना है कि पहले ही राज्यों को कोयले का स्टॉक बढ़ाने के लिए कहा गया था लेकिन राज्य सरकारों ने इस पर अमल नहीं किया। कोयला मंत्रालय की ओर से जानकारी सामने आई है कि कोल इंडिया लिमिटेड ने पावर प्लांट्स को मार्च में ही स्टॉक बढ़ाने के लिए पत्र लिखा था। इस साल मार्च में लिखे गए पत्र के जरिये बिजली संकट की आशंका जताई गई थी। कोल इंडिया लिमिटेड चाहती थी कि बिजली संयंत्र मांग में बढोतरी के ऑफ टेक को बढ़ाए लेकिन बिजली संयंत्रों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। 

देश में बिजली की मांग

  • अगस्त 2019- 10660 करोड़ यूनिट प्रति महीना
  • अगस्त 2021- 12420 करोड़ यूनिट प्रति महीना

(खपत बढ़ी तो कोयले की मांग भी बढ़ी) 

कोयला उत्पादन की बाधाएं

  • भूमि अधिग्रहण- राज्य सरकार का विषय
  • वन और पर्यावरण से जुड़ी कई तरह की मंजूरी
  • रेलवे रैक्स की कमी  

(300 अरब टन भंडारण के बावजूद उत्पादन में कमी)  

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क्या हैं विकल्प

कोयले की निर्भरता कम करने के लिए पांच विकल्प कारगार माने जाते हैं। सोलर एनर्जी, हाइड्रो पॉवर, न्यूक्लिर, बॉयो एनर्जी, फ्यूल एनर्जी। 

फ्यूल एनर्जी: ये विकल्प काफी मंहगा है। दुनिया में फ्यूल एनर्जी खुद संकट में है। इसके दाम भी लगातार बढ़ रहे हैं। 

हाइड्रो पॉवर: इसके लिए कई डैम बनाने पड़ेंगे। ज्यादा आबादी वाले भारत में यह संभव नहीं है। जहां डैम बनते हैं वहां बाढ़ का खतरा भी मंडराने लगता है। इसलिए इस विकल्प पर भी ज्यादा काम नहीं किया जा सकता है।   

सोलर एनर्जी और बायो एनर्जी: सरकार लगातार सोलर एनर्जी और बायो एनर्जी को प्रमोट कर रही है। हालांकि इसका परिणाम ज्यादा अच्छा नहीं मिल रहा है। 

न्यूक्लियर एनर्जी: विशेषज्ञ इसे सबसे अच्छा विकल्प मानते हैं। भारत में दुनिया का 70% थोरियम पाया जाता है। थोरियम एटॉमिक मटेरियल होता है और इससे बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। जहां अभी एक किलो कोयले से तीन यूनिट बिजली का उत्पादन हो रहा है, वहीं एक किलो थोरियम से तीन करोड़ यूनिट से ज्यादा बिजली का उत्पादन संभव है। 

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सरकार क्या कर रही है?

बिजली, कोयला और रेल मंत्रालयों के अधिकारी थर्मल प्लांटों को कोयले की आपूर्ति की निगरानी कर रहे हैं और बिजली उत्पादकों को कोयले की दैनिक शिपमेंट बढ़ाने के लिए कदम उठाए हैं। केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी कोयला खदानों के निरीक्षण के लिए कोरबा पहुंचे थे।  उन्होंने ट्विट करते हुए कहा कि हमने कल 1.94 मिलियन टन कोयला सप्लाई किया है, इतिहास में ये घरेलू कोयले की सबसे ज्यादा सप्लाई है। पहले जो 15 से 20 दिन का कोयले का स्टाक था वो कम हुआ है लेकिन कल कोयले का स्टाक बढ़ा है। मुझे विश्वास है कि कोयले का स्टाक आने वाले दिनों में और बढ़ेगा, घबराने की जरूरत नहीं है। बिजली मंत्रालय ने कोयले के भंडार को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय कोयले का उपयोग करने वाले बिजली उत्पादकों को आयातित कोयले के 10 प्रतिशत तक मिश्रण का उपयोग करने की अनुमति दी है। अंतरराष्ट्रीय कोयले की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई के करीब होने के बावजूद, सरकार का अनुमान है कि आयातित कोयले के 10 प्रतिशत मिश्रण से बिजली उत्पादन की प्रति यूनिट (किलोवाट-घंटा) लागत में 20-22 पैसे की वृद्धि होने की संभावना है। अधिकारियों ने उल्लेख किया कि जनरेटर बिजली वितरण कंपनियों के साथ बिजली खरीद समझौतों के तहत डिस्कॉम से वसूले जाने वाले मूल्य को बढ़ाने की मांग कर सकते हैं क्योंकि ये कंपनियां वर्तमान में बिजली एक्सचेंजों पर बिजली की उच्च दरों पर बिजली खरीदकर बिजली आपूर्ति में कमी को पूरा कर रही हैं। सरकार के गणित के हिसाब से 18.5 लाख टन की ज़रूरत है और वो इस महीने के अंत तक 19 लाख टन सप्लाई करने की स्थिति में होगी। गृह मंत्री अमित शाह की ने ऊर्जा मंत्री आरके सिंह, कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी, कोयला मंत्रालय के सचिव, ऊर्जा मंत्रालय के सचिव और एनटीपीसी के आला अधिकारियों के साथ एक बैठक की।

पावर खर्च का डेटा अपडेट करे कंपनियां

ऊर्जा मंत्रालय ने पावर लॉस पर लगाम लगाने के लिए बिजली वितरण कंपनियों से समय-समय पर एनर्जी अकाउंटिंग कराने को कहा है। उसका कहना है कि ऐसा करने से वितरण कंपनियों को पावर लॉस की जानकारी के साथ ही इसकी वजहो की पड़ताल करने में भी आसानी होगी। वितरण कंपनियों से कहा गया है कि वह हर तीन महीने में इस तरह की अकाउंटिंग कराएं और यह काम 60 दिन के भीतर शुरू हो जाना चाहिए। इसके लिए प्रमाणित एनर्जी मैनेजर नियुक्त करने का निर्देश दिया गया है। इसके साथ ही इन कंपनियों से मान्यता प्राप्त एनर्जी ऑडिटर नियुक्त करने के लिए भी कहा गया है, जिससे साल में एक बार एनर्जी ऑडिट भी किया जा सके। इसकी रिपोर्ट को कंपनियों को सार्वजनिक करना होगा।

बहरहाल, देश में बिजली उत्पादन ठप तो नहीं हुई लेकिन प्रभावित ज़रूर हुई है। सरकार के सामने चुनौती आई है। मॉनसून, लॉकडाउन खत्म होने पर औद्योगिक गतिविधि में तेज़ी और अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर काबू नहीं किया जा सकता। लेकिन ऐसी स्थितियों का अंदाज़ा लगाने और उनसे निपटने के लिए योजना जरूरी बनाई जा सकती है और सरकार उसी दिशा में काम भी कर रही है। 

-अभिनय आकाश 

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