अमरीका में रह रहे भारतीयों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि खुशियों का यह अमरीकी संसार एक दिन नरकनुमा होगा। यहां डर−डर कर जीना होगा। भविष्य के जिन सुरक्षा और सुखों की खातिर अपनी सरजमीं को छोड़ पराए वतन को अपना बनाया था, वही उनके लिए खतरा बन जाएगी। इस विदेशी धरती पर मेहनतकश लोगों की खुशियों को ग्रहण लगा है नई डोनाल्ड ट्रम्प सरकार की नीतियों से।
अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ट्रम्प ने अप्रवासियों के प्रति सख्ती के संकेत देने शुरू कर दिए थे। चुनावी भाषणों में उनकी तल्खियों से स्पष्ट हो गया था कि मेहनत से तरक्की पाकर बुलंदियों को छूने वाले अप्रवासियों के बुरे दिन आने वाले हैं। ट्रम्प ने चुनाव के प्रचार के दौरान अप्रवासियों के रोजगार, तरक्की, साधनों के प्रति जहर घोलना शुरू कर दिया। राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रम्प ने सात मुस्लिम देशों के नागरिकों पर अमरीका में प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि यह मामला अभी वहां की अदालत में विचाराधीन है। ट्रम्प के विदेशियों के खिलाफ अभियान ने मूल अमरीकियों के दिलो−दिमाग में जहर भरने का काम किया। राष्ट्रपति चुनाव के तत्काल बाद 10 से 15 नवंबर के बीच ही नस्ली हिंसा की 28 घटनाएं हो चुकी हैं। हालांकि कुल 867 ऐसी घटनाएं हुईं, किन्तु उनके पुख्ता प्रमाण नहीं हैं। लेकिन यह निश्चित है कि इन सभी घटनाओं में कहीं न कहीं नस्लवाद की भड़की चिंगारी मौजूद है। कंसास में दक्षिण भारतीय युवक श्रीनिवास नस्लीय नफरत की चिंगारी से उठी आग का शिकार हो गए। एक सनकी ने उनकी गोली मार कर हत्या कर दी। इसके करीब एक सप्ताह बाद ट्रम्प ने इस घटना की निंदा की। इससे ट्रम्प सरकार की मानसिकता का अंदाजा लगाया जा सकता है। हालात यह हैं कि अप्रवासी भारतीयों को सुनसान रास्तों पर अकेले में नहीं जाने, सार्वजनिक स्थानों पर किसी से उलझने और भारतीय भाषा में बातचीत नहीं करने की सलाह भी दी गई है। इन स्थितियों के बाद क्या यह माना जाए कि कभी अमरीका में जाने और बसने का स्वर्ग सरीखा ख्वाब अब टूटने लगा है।
अमरीका अब उतना सुरक्षित नहीं रह गया है। नस्लवादियों की आंखों में भारतीय या ऐसे ही दूसरे मुल्कों के लोग खटकने लगे हैं। उनके कथित राष्ट्रवाद को भड़काने में ट्रम्प ने आहूति देने में कसर बाकी नहीं रखी। वर्ण और रंगभेद सिर कर चढ़कर बोलने लगा है। ऐसी संकीर्ण सोच में विश्वास करने वाले लोगों को लगने लगा है कि खासकर भारतीय उनके हकों पर कुंडली मारे बैठे हैं। उनके रोजगार और संसाधनों पर लगातार गैरों का कब्जा बढ़ता जा रहा है। नियमों से बंधी योग्यता की प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने का दोष नस्लीय हिंसा के जरिए पूरा किया जा रहा है। अमरीका में सख्त होते जा रहे वीजा कानून से मुश्किलें और बढ़ रही हैं। वीजा नियमों में लगातार सख्ती बरती जा रही है। हालांकि अमरीका में दिनोदिन बढ़ रहे खौफ के वातावरण से यूरोपीय यूनियन के दूसरे देश आईटी और दूसरे क्षेत्रों की बौद्धिक सम्पदा के लिए लाल कालीन बिछाने की तैयारी कर रहे हैं।
यह भी निश्चित है कि तरक्की से उपजी ईर्ष्या−द्वेष की आग देर−सबेर दूसरे विकसित देशों तक फैले बिना नहीं रहेगी। दरअसल इन देशों के लोगों को लगने लगेगा कि भारतीय अब उनके हितों पर कुठराघात करने आ रहे हैं। आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में तो वैसे भी नस्लीय हिंसा की वारदातें होती रहती हैं। संभवतः इन देशों में भी ऐसे ही हालात उत्पन्न हो जाए। ऐसे में एक ही विकल्प बचता है, वह घर वापसी का। यह निश्चित है कि जो सार्वजनिक सुविधाएं और वातावरण पश्चिमी देशों में मौजूद हैं वैसी स्थितियां भारत में अभी नहीं हैं, किन्तु दूसरे के नकारे जाने की स्थिति में अपने देश से बेहतर दूसरा कोई विकल्प नहीं हो सकता। यहां सुविधाओं की कमी बेशक हो पर कम से कम नस्ली हिंसा का सामना नहीं करना पड़ेगा। डर−डर कर जीना नहीं पड़ेगा। अपनी मातृभाषा या दूसरी किसी भाषा में बोलने पर जान गंवाने का कोई खतरा नहीं होगा।
सवाल यह भी है कि स्वाभिमान गंवा कर पश्चिमी देशों में यदि साधन−सुविधाएं उपलब्ध भी हैं तो उसकी कीमत आत्मसम्मान से समझौता करके या हिंसा से नहीं चुकाई जा सकती। अमरीका हो या दूसरे विकसित देश, इनमें भारतीयों ने अपनी योग्यता का परचम हर क्षेत्र में फहाराया है। यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इन मुल्कों की तरक्की में भारतीयों का जबरदस्त योगदान रहा है, क्षेत्र चाहे राजनीति से तकनीक तक कोई भी रहा हो। ऐसे चुनिंदा भारतीय ही होंगे जिन्हें नस्ल या जाति के नाम पर अपमान का घूंट नहीं पीना पड़ा हो। यह भी निश्चित है कि दशकों से बसे−बसाए घर को उजाड़ कर अपना नया संसार बसाना आसान नहीं है। लंबे अर्से तक रहने से कहीं न कहीं भावनाएं और जीवनशैली भी क्षेत्र विशेष से जुड़ जाती हैं। लेकिन जब हालात प्रतिकूल हो तो इनसे समझौता करने में ही भलाई है। जीवनशैली में कुछ बदलाव किया जा सकता है, बिछुड़ने की भावनाओं के घाव भी अपनों की चाहत से वक्त मरहम लगा कर भर देगा।
सुविधा−साधनों की कमी अब भारत में भी उतनी नहीं रह गई है। केंद्र और राज्य सरकारें विदेशी निवेश को आमंत्रित करने में पूरा दमखम लगा रही हैं। औद्योगिक निवेश का वातावरण भी बेहतर होता जा रहा है। अप्रवासियों की सुविधाओं के लिए केंद्र सरकार लगातार नियमों को लचीला बना रही है। देश में अब हालात तेजी से बदल रहे हैं। देश लगातार हर क्षेत्र मे वैश्विक चुनौतियों से निपटने के खुद को तैयार कर रहा है। इसका उदाहरण हाल ही में इसरो द्वारा 103 सैटेलाइट एक साथ प्रक्षेपित करने का नया रिकार्ड है।
अप्रवासी जिस सपने की खोज में विदेशों में बसे थे, यदि सब मिल कर प्रयास करें तो उसे अपने घर में भी पूरा किया जा सकता है। भारत को भी सुविधा−साधनों की दृष्टि से अमरीका या यूरोप के किसी विकसित देश की तरह बनाया जा सकता है। जरूरत देश के लोगों के साथ सहयोग करने की है। देश में कुछ कमियों के बावजूद एक कहावत है कि दूसरे का फेंका हुआ फूल और अपनों के फेंके हुए पत्थर से ज्यादा भारी होता है। अपने देश में यदि कोई कमी या कसर है भी तो उसे हल्के−फुल्के तरीके से लेकर सामंजस्य बिठाया जा सकता है। बजाए दूसरों के यहां अपमानित वातावरण में जीने से।
- योगेन्द्र योगी