By अभिनय आकाश | Jan 02, 2021
ये कहानी है एक ऐसे नेता की जो देश का राष्ट्रपति हो सकता था। ये कहानी है देश के ताकतवर कमीशन के मुखिया की। ये कहानी है देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य के राज्यपाल की जिसने ऐसा फैसला लिया, जिसके बाद उस सूबे की तारीख इतिहास में दर्ज हो गई। ये कहानी है राजीव गांधी सरकार के नंबर दो कि जिसने पहली बार नीतीश कुमार की सरकार नहीं बनने दी और दूसरी बार खुद ही सुशासन बाबू को शपथ दिलाई। ये कहानी है कांग्रेस को हाथ का सिंबल दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले बूटा सिंह की। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री बूटा सिंह का लंबी बीमारी के बाद शनिवार सुबह निधन हो गया। वह 86 साल के थे। पिछले साल मष्तिकाघात के बाद उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था और वह गत वर्ष अक्टूबर महीने से कोमा में थे। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और कई अन्य नेताओं ने बूटा सिंह के निधन पर दुख जताया और उनके परिवार के प्रति संवेदना प्रकट की।
कौन थे बूटा सिंह
बूटा सिंह का जन्म 21 मार्च 1934 को मुस्ताफापुर जिला जालंधर में हुआ था। इन्होंने बीए,एमए औऱ पीएचडी की डिग्री हासिल की। राजनीति में आने से पहले बूटा सिंह पत्रकार भी थे। बूटा सिंह ने पहला चुनाव 1960 में अकाली दल से लड़ा। शाहदरा लोकसभा क्षेत्र से पहली बार बूटा सिंह जीत कर संसद पहुंचे। बूटा सिंह 8 बार सांसद रहे। बूटा सिंह ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में केंद्रीय गृह मंत्री समेत, टेलीकाम मिनिस्टर समेत कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाईं। इसके साथ ही वह बिहार के राज्यपाल और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष भी रहे। आपरेशन ब्लूस्टार का करीब से माॅनिटरिग की। बाद में स्वर्ण मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य भी बूटा सिंह के दिशा-निर्देश पर हुआ।
बूटा सिंह की कृपाण
बूटा सिंह राजीव गांधी सरकार में नंवर दो यानी गृह मंत्री की भूमिका में थे। सियासी गलियारों में चर्चा खूब चला करती थी कि राजीव गांधी कहा करते थे बूटा सिंह जी, अब अपनी कृपाण अंदर रखिए। उस वक्त मुख्यमंत्री हटाने हों या सरकारे गिरानी हो या फिर बिठाना हो कोई सियासी तिकड़म, ऑल प्रॉब्लम वन सॉल्यूशन- बूटा सिंह।
इंदिरा से फोन पर बोले बूटा, कांग्रेस को मिला हाथ का निशान
आजादी के बाद से ही कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी था। लेकिन कांग्रेस के विभाजन के दौर में इंदिरा आई को गाय और बछड़ा की जोड़ी चुनाव चिन्ह के रुप में मिला। उस वक्त गाय बछड़े की जोड़ी को इंदिरा गांधी और संजय गांधी के साथ जोड़कर सियासी गलियारों में मजाक भी उड़ाया जाता था। बाद में कांग्रेस पार्टी ने अपना चुनाव चिन्ह बदलने का निर्णय लिया। जिस दौर में कांग्रेस अपने चुनाव चिन्ह को बदलने पर मंथन कर रही थे उस वक्त कांग्रेस के इंचार्ज बूटा सिंह थे। उस वक्त हाथ, हाथी और साइकिल चुनाव चिन्ह में से बूटा सिंह ने हाथ के निशान को चुना। इससे जुड़ा एक दिलचस्प वाक्या है जबव फोन पर बूटा सिंह इंदिरा गांधी को हाथ के निशान के चयन की बात बताई तो इंदिरा ने हाथी समझा, गाय-बछड़े के निशान के बाद इंदिरा किसी पशु को पार्टी के चुनाव चिन्ह बनाने के मूड में नहीं थी। इंदिरा गांधी ने कहा कि हाथी नहीं हाथ। बूटा सिंह ने तपाक से बोला मैं भी तो यही बोल रहा हूं पंजा। कुछ इस तरह कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बना पंजा।
नीतीश कुमार नहीं बन सके मुख्यमंत्री
बिहार के पू्र्व राज्यपाल बूटा सिंह बिहार की सियासत में खूब सुर्खियों में रहे थे। साल 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में यूपीए की सरकार नहीं बनने पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दिया था। बूटा सिंह के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक कहा था। साल 2005 को बिहार की राजनीति का बेस ईयर या फिर सरल भाषा में कहे कि आधार वर्ष कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। ये वही साल था जब बिहार की राजनीति एक धारा से दूसरी धारा की ओर शिफ्ट हो गई थी। बिहार की राजनीति में लालू यादव राज के बाद नीतीश कुमार की दम, खम से ऐसी एंट्री हुई कि बाकी तो इतिहास है। इस साल दो चुनाव हुए थे। पहला चुनाव फरवरी 2005 में और दूसरा अक्टूबर के महीने में।
फरवरी के महीने में हुए चुनाव में लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने 75 सीटें हासिल की। नीतीश कुमार की पार्टी 55 सीटों पर विजयी हुई जबकि बीजेपी 37 सीट जीतकर तीसरे नंबर की पार्टी बनी। लेकिन राजद गठबंधन हो या एनडीए दोनों ही बहुमत के आंकड़े से काफी पीछे रह गए। लिहाजा बूटा सिंह की सिफ़ारिश पर मई 2005 में विधानसभा भंग कर दी गई थी। उस समय केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार थी। जब राज्यपाल बूटासिंह ने अपनी रिपोर्ट भेजी तब जनता दल यूनाइटेड के नेता नीतीश कुमार सरकार बनाने का दावा करने वाले थे। लेकिन राज्यपाल ने उन्हें मौक़ा देने से इंकार कर दिया। राज्यपाल की रिपोर्ट पर फ़ैसला लेने के बाद प्रधानमंत्री ने कहा था कि विधायकों की ख़रीद फ़रोख़्त रोकने के लिए यह निर्णय लिया गया। कहा जाता है कि यूपीए के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आधी रात को बैठक की और राज्यपाल की रिपोर्ट राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को सौंपी जो मॉस्को में थे। कलाम ने दो घंटे में सिफारिश को मंजूरी दे दी और 23 मई 2005 को विधानसभा भंग कर दी गई थी। जिसके बाद राज्य में मध्यविधि चुनाव हुए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को माना असंवैधानिक
राज्यपाल बूटा सिंह के फैसले के को लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद हुई। बाद में इस मामले में एक जनहित याचिका दायर की गई थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ को भेजने का निर्णय लिया था। सात अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिहार विधानसभा को भंग करना असंवैधानिक था। लेकिन तब तक शुरु हो चुकी चुनाव प्रक्रिया को रोका नहीं गया। सुप्रीम कोर्ट ने उस वक्त अपने अंतरिम आदेश में यह माना गया कि राज्यपाल ने केंद्र को गुमराह किया है और केंद्रीय मंत्रिपरिषद को उनकी सिफारिश को स्वीकार करने से पहले क्रॉस-चेक करना चाहिए। पांच जजों की संविधान पीठ ने बहुमत से दिए निर्णय में कहा था कि राज्यपाल का उद्देश्य एक दल (जदयू) को सरकार बनाने का दावा करने से रोकना था।
बूटा सिंह ने इस्तीफा देने से किया इनकार
बिहार के निर्णय और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद तमाम तरह की प्रतिक्रियाओं का दौर शुरु हो गया और अटकलें लगाई जाने लगी कि राज्यपाल बूटा सिंह इस्तीफा दे सकते हैं। लेकिन इन सब से इतर बूटा सिंह ने इस्तीफा देने के सारे कयासों पर लगाम लगाते हुए कहा कि 26 जनवरी को पटना में गणतंत्र दिवस परेड की सलामी लेंगे। पटना से दिल्ली आए बूटा सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पत्रकारों से दो टूक कहा कि वह इस्तीफा नहीं देंगे और इस फैसले पर उन्हें कुछ नहीं कहना। बूटा सिंग ने कहा कि बिहार में जैसे चुनाव हुए हैं वैसे पहले कभी नहीं हुए थे और इन चुनावों के लिए चुनाव आयोग ने भी बधाई दी। -अभिनय आकाश