BSP ने पश्चिमी यूपी के कद्दावर नेता धर्मवीर को दिखाया बाहर का रास्ता

By अजय कुमार | Sep 13, 2023

लखनऊ। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत तेजी से बदल रही है। अगले लोकसभा चुनाव में यहां किसका परचम लहरायेगा। इसके बारे में तो अभी से कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है, लेकिन यहां एनडीए और आईएनडीआईए दोनों ही गठबंधन अपनी जड़े मजबूत करने में जुटे हैं.वैसे तो दोनों ही गठबंधनों का अपना-अपना वोट बैंक है, लेकिन इसको और मजबूत करने की कवायद भी जारी है। सबसे अधिक हलचल दलित वोटों को लेकर है। 

 

वेस्ट यूपी में यह धारणा आम होती जा रही है कि फिलहाल 2024 के आम चुनाव में बसपा कहीं दिखाई नहीं दे रही है। ऐसे में दलित वोटर जिस पार्टी की तरफ चल देंगे उसकी ताकत बढ़ जायेगी। दलित किधर जायेगा ? इसको लेकर तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे हैं। परंतु पूर्वांचल में घोसी के उप विधान सभा चुनाव में जिस तरह से बसपा की गैर-मौजूदगी में दलित वोटरों ने आईएनडीआईए गठबंधन का दामन थामा है, वह काफी कुछ कहानी कह देता है। यहां से आईआईएनडीआईए गठबंधन ने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतार था और उसे शानदार जीत हासिल हुई थी। पूर्वांचल का ट्रेंड यदि पश्चिमी यूपी में भी चला तो आईएनडीआईए गठबंधन की बल्ले-बल्ले हो जायेगी।

 

एक तरफ बसपा अपना जनाधार खोती जा रही है तो दूसरी ओर पार्टी के बड़े नेताओं ने भी नये ठिकाने की शुरूआत कर दी है। पश्चिमी यूपी में इमरान मसूद के बसपा छोड़ने के बाद अब बसपा की अहम कड़ी रहे पुराने नेता धर्मवीर चौधरी को भी पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है। धर्मवीर के निष्कासन का कारण पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होना बताया गया है। सूत्रों का कहना है कि इमरान और धर्मवीर दोनों को ही बसपा से अलग नया ठिकाना तलाशने के कारण पार्टी से बाहर किया गया है। वैसे ऐसा पहली बार नहीं हुआ है.देखा जाए तो पिछले कुछ वर्षो में पार्टी छोड़ने वाले दिग्गज नेताओं की एक लंबी-चौड़ी लिस्ट है।

 

यह तब हो रहा है जबकि पश्चिमी यूपी बसपा के लिए शुरुआत से ही मजबूत गढ़ रहा है। बसपा प्रमुख मायावती भी पहली बार पश्चिमी यूपी की बिजनौर सीट से ही चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची थीं। जाट, मुस्लिम और दलित वोटर यहां चुनाव में अहम भूमिका निभाते हैं। यहां बसपा लम्बे समय तक जाट-मुस्लिम समीकरणों को साधकर अपने पारंपरिक दलितों  वोटरों के सहारे हमेशा काफी मजबूत रहती थी.यही वजह है कि इस दलित वोट बैंक के लिए यहां जाट और मुस्लिम नेताओं को बसपा का साथ भी रास आता रहा है।

 

गौरतलब हो, बसपा की जब अंतिम बार 2007 में पूर्ण बहुत की सरकार बनी थी तब, इस सरकार में पश्चिम यूपी के कई बड़े चेहरे शामिल थे। उसके बाद 2012 में बसपा की सरकार चली गई और समाजवादी सरकार बनी तभी से बसपा का जनाधार घटने लगा और बसपा छोड़ने वाले नेताओं की लाईन लग गई। बसपा सरकार में मंत्री रहे मथुरा के लक्ष्मी नारायण चौधरी आज भाजपा सरकार में मंत्री हैं। इसके अलावा ठाकुर जयवीर सिंह, धर्म सिंह सैनी भी बसपा सरकार में मंत्री रहे, लेकिन वे अब भाजपा में हैं। रामवीर उपाध्याय का परिवार भी भाजपा में है। बसपा सरकार में ही मंत्री रहे योगराज सिंह आरएलडी में हैं। बसपा से राज्य सभा सदस्य रहे वीर सिंह, पूर्व विधायक जाकिर अली अब सपा में हैं। बसपा विधान परिषद दल के नेता रहे सुनील चित्तौड़ अब भीम आर्मी में हैं। मास्टर राजपाल, गजेंद्र सिंह, सतपाल गुर्जर भी बसपा से विधायक हुआ करते थे लेकिन वे भी अब भाजपा में हैं।अब धर्मवीर किस पार्टी का रूख करेंगे यह देखने वाली बात होगी।

 

पश्चिमी यूपी में एक तरह से बीएसपी की पुरानी लीडरशिप पूरी तरह से खत्म हो चुकी हैं  सबसे बड़ी चिंता की बात यह  है कि यही बसपा का गढ़ हुआ करता था। यहां की लीडरशिप कमजोर होना बसपा सुप्रीमों मायावती के लिए बड़ी चिंता इसलिए भी है क्योंकि लोकसभा चुनाव नजदीक हैं। इस समय यदि पुराने या नए नेता टिकेंगे ही नहीं तो फिर बसपा के लिए जनाधार हासिल करना मुश्किल होगा। बसपा प्रमुख अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी हैं। ऐसे में बसपा सुप्रीमों को सब कुछ खुद के दम पर ही करना होगा, इसके लिए क्षेत्रीय स्तर पर भी चेहरों की जरूरत होगी। जबकि दूसरी पार्टियों के पास पहले से कई चेहरे हैं. इसके साथ ही भाजपा पश्चिमी का रण जीतने के लिए हर तरकीब अपना रही है तो सपा भी आरएलडी के साथ मिलकर अपने जनाधार को मजबूत कर रही है। 

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