By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Apr 19, 2017
वाशिंगटन। सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने भारत में स्मार्ट सिटी बनाने के चलते लोगों को उनके स्थानों से हटाए जाने को ‘क्रूरता’ कहा है और आरोप लगाया कि विकास के नाम पर आवासों को तोड़ना वहां रहने वाले लोगों के अस्तित्व को खत्म करना है। विश्व बैंक की ‘स्प्रिंग मीटिंग’ के इतर ‘‘इमर्जिंग लेसन्स ऑन एनवायरमेंटल असेसमेंट’ पर पैनल चर्चा के दौरान मेधा ने कहा कि भारत में सैंकड़ों स्मार्ट सिटी विकसित की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि स्मार्ट सिटी के चलते लोगों को हटाना बहुत क्रूर है क्योंकि उन्हें एक रूपया भी नहीं दिया जा रहा है और शुरू में इसे सिर्फ सड़क चौड़ा करने के लिए लोगों को हटाए जाने के तौर पर देखा गया था।
मेधा ने कहा कि यह सिर्फ सड़क चौड़ा करने की बात नहीं है बल्कि संस्कृतियों, आवासों को तोड़ना और 100 साल पुराने समुदाय के अस्तित्व, अधिकार और भूमिका को खत्म करना है। विश्व बैंक भारत की महत्वकांक्षी स्मार्ट सिटी परियोजना में कई तरह से शामिल है जिसमें कोष देने और तकनीकी दक्षता को साझा करना शामिल है। अपनी टिप्पणी में भारत की जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता ने भारत में स्मार्ट सिटी के नाम पर किए जा रहे ‘‘विकास के खतरों’’ पर अफसोस जताया।
62 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि समय समय पर ऐसी तोड़फोड़ या उजाड़े जाने को मुखर्ता कहकर खारिज किया जाता रहा है। मेधा ने कहा कि पांच साल या 10 बाद यह हो सकता है जहां आप सवाल करेंगे तो आपको मूर्ख समझा जाएगा या एक विरोधी या माओवादी जैसा कि वेदांता का विरोध करने वाले आदिवासी समुदायों को भारत के गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट में बोला गया है। यह एक बड़ा मुद्दा बन गया है क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने समुदायों से फैसला करने को कहा है। समुदायों ने कॉरपोरेटों को अपनी जमीन पर खनन नहीं करने देने का निर्णय किया है।