By अभिनय आकाश | Jul 17, 2021
उत्तर प्रदेश के चुनाव में अभी एक साल से कम का वक्त शेष है। तमाम पार्टियां वोट जुटाने की कोशिश में जुटी है। कुछ नेता दल बदलने की फिराक में हैं तो कुछ नए गठबंधन की तलाश में हैं।यूपी चुनाव का सेमीफाइनल माने जाने वाले पंचायत चुनाव में मिली अप्रत्याशित जीत के बाद 2022 में एक बार फिर से कमल खिलाने के लिए सरकार और संगठन दोनों ने कमर कस ली है। 2014 का लोकसभा हो या 2017 का विधानसभा गैर यादव ओबीसी का जातीय आधार रखने वाले दलों ने बीजेपी की राह आसान की थी। योगी का संयासी चेहरा, राम मंदिर निर्माण और सवर्ण जातीयों के समर्थन के साथ ओबीसी का फॉर्मूला जैसे 1990 के मंडल कमीशन के नाम पर मंडल फॉर्मूला कहा गया। उत्तर प्रदेश में ओबीसी वोट बैंक की संख्या 42-45 फीसदी के बीच में है। इनमें सबसे ज्यादा यादव हैं जिनकी संख्या 9-10 फीसदी है। इसके अलावा सैन्य, कुर्मी, शवाहा की संख्या अधिक है।
अमित शाह का हिट ओबीसी फॉर्मूला ही अपनाया जाएगा
इस बात की पूरी संभावना नजर आ रही है कि उत्तर प्रदेश में अमित शाह का पुराना फॉर्मूला ही आजमाया जाएगा। अमित शाह 2013 में यूपी के बीजेपी प्रभारी थे। इसी के बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी की झोली में बंपर सीटें चुनाव दर चुनाव आई हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ से गैर यादव ओबीसी जातियों के 148 उम्मीदवारों को टिकट दिया गया था। आगामी चुनाव में डेढ़ सौ से अधिक ओबीसी उम्मीदवारों पर पार्टी द्वारा दांव लगाने की योजना है। नई दिल्ली में 23 जुलाई को भाजपा ओबीसी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक है, जिसके बाद मंथन के बाद इस पर औपचारिक मुहर भी लग सकती है।
यूपी में 8 फॉर्मूले पर काम कर रही बीजेपी
ज्यादा से ज्यादा टीकाकरण
गरीब कल्याण की योजनाओं में तेजी
नए-नए दलों से गठबंधन
केंद्र में यूपी के सांसदों को मंत्रालय
अन्य पिछड़ी जातियों को जोड़ना
विकास योजनाओं को पूरा करना
संगठन में मजबूती लाना
यूपी कैबिनेट में फेरबदल
गैर यादव ओबीसी को साधने में जुटी बीजेपी
यूपी के सवर्णों को ज्यादातर देखें तो बीजेपी के साथ मजबूती से खड़ा है। सूबे का मुस्लिम समाज मोटे तौर पर वे बीजेपी की तरफ नहीं जाते। ऐसे में बीजेपी ओबीसी और दलित समाज को सहेजने की कवायद शुरू कर दी है। बीजेपी ने ओबीसी आयोग की कमान सैनी समाज को कमान सौंपकर पश्चिम यूपी में एक बड़े ओबीसी वोटबैंक को मजबूती से जोड़े रखने की कवायद की और कुर्मी समुदाय को भी पिछड़ा आयोग में अहमियत मिली।
यूपी के एक मंत्री पर 5 जिले का जिम्मा?
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने यूपी में 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव पांच-पांच जिलों में बैठकें करके बीजेपी के कमल खिलाने में कामयाबी हासिल की थी। माना जा रहा है कि अब मंत्रियों के कंधों पर भी ऐसी ही जिम्मा दिया जा सकता है। पीएम मोदी सहित यूपी से 9 मंत्री पहले से हैं और अब विस्तार के बाद यह आंकड़ा बढ़कर 16 पर पहुंच गया है। इस तरह पीएम मोदी को छोड़कर अब छह सवर्ण, छह पिछड़ा वर्ग और तीन अनुसूचित जाति से मंत्री हो गए हैं। सूबे में 80 लोकसभा और 75 जिले हैं। ऐसे में एक मंत्री के जिम्मे पर पांच जिले की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।
काशी से पूर्वांचल साधने की कोशिश
पूर्वांचल को साधने के लिए पीएम मोदी सौगातों का पिटारा लेकर काशी पहुंचते हैं। 200 से ज्यादा शिलांन्यास करते हैं और 78 से ज्यादा योजनाओं का उद्धाटन करते हैं। यूपी की 33 फीसदी विधानसभा की सीटें पूर्वांचल से आती हैं। 28 जिलों की कुल 164 सीटें हैं। 2017 में इन 164 सीटों में से 115 सीटें बीजेपी ने जीती थीं। बीजेपी बखूबी इस बात को जानती है कि यहां पर अपनी पकड़ को मजबूत रखने से आगे कामयाबी की राह आसान हो जाएगी।
जाटों को मनाना एक चुनौती
वैसे तो उत्तर प्रदेश की सियासत में जाट वोटरों की संख्या 2 फीसदी बताई जाती है। किसान आंदोलन और कृषि कानूनों को लेकर माना जा रहा है कि ये वोट बैंक पार्टी से छिटक गया है। यूपी की 55 सीटों पर जाटों का दबदबा बताया जाता है।