अपने दौर की बेहतरीन अभिनेत्री थीं नूतन, हीरो के समकक्ष मिली थीं भूमिकाएं

By अमृता गोस्वामी | Jun 04, 2021

नूतन का नाम बॉलीवुड की उन बेहतरीन अभिनेत्रियों में शुमार है जिन्होंने अपने उत्कृष्ट अभिनय से हिन्दी फिल्मों में वह मुकाम हासिल किया जिसे आज भी याद किया जाता है। यह वह समय था जब फिल्में पुरूष प्रधान होती थीं, अपने सशक्त अभिनय के चलते नूतन को उस समय भी भूमिकाएं हीरो के समकक्ष मिलीं।


अपने चार दशकों के फिल्मी सफर में नूतन ने 70 से अधिक फिल्मों में काम किया । भारतीय नारी  के आदर्श, उसकी व्यथा और संघर्ष को नूतन ने बड़ी ही संजीदगी से चित्रपट पर लाया जिसके बाद नूतन की छवि भी एक आदर्श भारतीय नारी की बन गई।

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नूतन का जन्म 4 जून 1936 को मुंबई में हुआ था। वह एक फिल्मी पृष्ठभूमि वाले परिवार से थीं, उनके पिता कुमार सेन समर्थ फिल्मों के निर्देशक और मां शोभना समर्थ प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। शोभना समर्थ को वर्ष 1997 में फिल्मफेयर के स्पेशल अवार्ड से नवाजा गया था। नूतन की नानी रतन बाई भी अभिनेत्री और भजन गायिका थीं जिन्होंने 1936 में बनी फिल्म ‘भारत की बेटी’ में अभिनय के साथ-साथ एक भजन  ‘तेरे पूजन को भगवान, बना मन मंदर आलीशान’ भी गाया, यह भजन उन्होंने खुद ही लिखा भी था जिसे उस समय में खूब पसंद किया गया। नूतन की बहिन तनूजा हिन्दी सिनेमा की फेमस अभिनेत्री रही हैं और तनुजा की बेटी काजोल आज की सफल अभिनेत्री हैं वहीं नूतन के बेटे मोहनीश बहल भी बॉलीवुड के एक जाने-माने अभिनेता हैं और अब मोहनीश बहल की बेटी प्रनूतन भी अभिनय की ओर बढ़ रही हैं। प्रनूतन ने सलमान खान की फिल्म नोटबुक से बॉलीवुड से डेब्यू किया है। प्रनूतन इस परिवार की पांचवी पीढ़ी हैं जिन्होंने अभिनय को अपना कॅरियर चुना। 


नूतन ने काफी छोटी उम्र से फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था। 1945 में जब वह महज आठ साल की थीं अपने पिता के निर्देशन में बनी फिल्म ‘नल-दमयंती’ में वह बतौर बाल कलाकार फिल्मों में आईं, इसके बाद 1950 में उन्होने फिल्म ‘हमारी बेटी’ और 1951 में फिल्म ‘नगीना’ में काम किया। फिल्म नगीना के साथ नूतन का एक रोचक किस्सा है। इस फिल्म में डरावने सीन होने की वजह से इसे ए सर्टिफिकेट दिया गया था। नूतन जब अपनी इस फिल्म को सिनेमा हॉल में देखने गईं तो वॉचमैन ने उन्हें यह कहकर बाहर ही रोक दिया कि यह एडल्ट फिल्म है, उम्र छोटी होने के कारण आप यह फिल्म नहीं देख सकतीं। 


1952 में नूतन ने फेमिना मिस इंडिया प्रतियोगिता में भाग लिया और उसे जीता भी, इस खिताब को पाने वाली वह पहली अभिनेत्री थीं। उस समय वह सोलह वर्ष की थीं। मिस इंडिया के समारोह में नूतन को मिस मसूरी का ताज भी पहनाया गया था। 


अभिनय की विधिवत शिक्षा के लिए नूतन 1953 में स्विटजरलैंड गईं जहां से उन्होंने एक्टिंग के साथ-साथ कथक डांस और संगीत की शिक्षा भी प्राप्त की। नूतन की आवाज बहुत सुरीली थी, अपनी कुछ फिल्मों ‘हमारी बेटी’ ‘छबीली’ और ‘पेइंग गेस्ट’ में उन्होंने खुद की आवाज में गीत भी गाए।

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स्विटजरलैंड से वापस आकर नूतन ने 1955 में प्रदर्शित सुपर क्लॉसिक फिल्म ‘सीमा’ में अपने बेस्ट अभिनय से कामयाबी के झंडे गाड़ दिए। इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। फिल्म 'सीमा' के बाद नूतन की कामयाबी का सिलसिला कभी रुका नहीं। 1957 में ‘पेइंगगेस्ट’ ‘बारिश’ और 1958 में ‘दिल्ली का ठग’ ने नूतन का नाम टॉप अभिनेत्रियों में ला दिया। फिल्म ‘दिल्ली का ठग’ में नूतन ने स्विमिंग कॉस्ट्यूम पहना था, 50 के दशक में अभिनेत्रियां जहां साड़ी में ही नजर आया करती थीं नूतन पहली एक्ट्रेस थीं जिन्होंने उस समय में स्विमिंग सूट पहनकर दर्शकों को चौंका दिया, वहीं फिल्म बारिश में भी नूतन के कई बोल्ड सीन किए। इन फिल्मों में हालांकि नूतन को काफी दर्शकों ने पसंद भी किया किन्तु बहुतों ने आलोचनाएं भी कीं जिसके चलते नूतन ने 1958 में फिल्म ‘सोने की चिड़िया’ और 1959 में फिल्म ‘सुजाता’ में अपने मर्मस्पर्शी अभिनय से उस बोल्ड अभिनेत्री की छवि को बदल लिया।


वर्ष 1959 में ज़ब  नूतन का फिल्मी कॅरियर बुलंदियों पर था उन्होंने नेवी के लेफ्टिनेंट कमांडर रजनीश बहल से शादी की और शादी के बाद भी वह फिल्मों में पहले की तरह ही सक्रिय रहीं।


नूतन की सुपर हिट फिल्मों में सुजाता, पेइंग गेस्ट, सीमा, बंदिनी, सरस्वती चंद्र, मिलन और मैं तुलसी तेरे आंगन की जैसी बेहतरीन फिल्में शामिल है। सुजाता और सीमा नूतन के जीवन की लेजेंड फिल्में थीं तो बंदिनी उनके कॅरियर में मील का पत्थर साबित हुई। इनके अलावा नूतन ने ‘छलिया’ ‘भाई-बहिन’ ‘गौरी’ ‘खानदान’ ‘देवी’ ‘बसंत’ और ‘सौदागर’ सहित लगभग 70 फिल्मों में सराहनीय अभिनय से हिन्दी सिनेमा में अपनी गहरी छाप छोड़ी। फिल्म सुजाता में नूतन ने एक अछूत लड़की की भूमिका निभाई थी, इस फिल्म में उनके संवाद भले ही कम थे लेकिन चेहरे और आंखों से उन्होंने जो भाव व्यक्त किए कि संवादों की जरूरत नहीं पड़ी।


हिन्दी सिनेमा में बेहतरीन भूमिकाओं के लिए नूतन को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। फिल्मों में उनके बेस्ट अभिनय के चलते उन्हें पांच बार फिल्म फेयर अवार्ड प्राप्त हुएा। ‘सीमा’ ‘सुजाता’ ‘बंदनी’ ‘मिलन’ और ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ नूतन की फिल्म फेयर अवार्ड विनिंग फिल्में थीं जिनका गीत संगीत भी मन को छूने वाला था। नूतन को हिन्दी सिनेमा में शानदार अदाकारी के लिए 1974 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया। 


अस्सी के दशक में नूतन ने ‘साजन की सहेली’, ‘मेरी जंग’, कर्मा और ‘नाम’ फिल्मों में चरित्र भूमिकाएं कीं। ‘मेरी जंग’ और ‘कर्मा’ में उन्होंने मां का रोल जिस सजीवता से किया कि लोग उनमें मां की छवि को देखने लगे। ‘मेरी जंग’ में नूतन को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।


21 फरवरी 1991 में हिंदी सिनेमा जगत को एक बड़ा धक्का लगा जब महज 54 साल की उम्र में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के चलते नूतन का निधन हो गया। इस दुःस्साध्य बीमारी का पता हालांकि नूतन को पहले ही चल गया था और उन्होंने यह बात अपने फिल्म मेकर्स से छुपाई नहीं बल्कि उनसे कहा कि अपनी शूटिंग जल्दी खत्म कर लीजिए क्योंकि मेरे पास वक्त कम है। 


गौरतलब है कि नूतन की कुछ फिल्में उनके निधन के बाद रिलीज हुईं। हिन्दी सिनेमा में उनके योगदान के लिए भारतीय डाक विभाग ने वर्ष 2011 में नूतन पर एक डाक टिकट जारी किया। 


अमृता गोस्वामी

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