By अभिनय आकाश | Aug 22, 2022
जैसे-जैसे मानव सभ्यता फली-फुली। वैसे-वैसे संक्रामक वायरस भी हुए। ब्लैक डेथ प्लेग से लेकर स्पैनिश फ्लू तक। कॉलेरा से लेकर सार्स तक। दुनिया में नियमित अंतराल पर महामारियों ने दस्तक दी। जिसमें शहर के शहर देश के देश खाली हो गए। चारों तरफ बस सिर्फ चीख, पुकार, भय और मौतें ही नजर आईं। हालिया कोरोना महामारी से तो हम सभी भलि-भांति परिचित हैं। जिसने सड़कें सुनसान, पार्क वीरान, स्कूलों और दुकानों पर ताला लगा दिया। इंसान को एक-एक सांस का मोहताज तक बना दिया। ब्लैक डेथ नाम की महामारी का भी अपना इतिहास है जिसे अब तक की सबसे खतरनाक महामारी माना जाता है। इसने यूरोप की आधी आबादी को अपनी चपेट में ले लिया था। बीमारी फैलने को लेकर कई थियोरी दी जाती है। एक में तो यह माना जाता है कि जानवरों से बीमारी फैली। वहीं दूसरी थिअरी में यह माना जाता है कि बीमारी इंसान से ही इंसान के बीच फैली। आइए जानते हैं करोड़ों लोगों की जान लेने वाली त्रासदी की पूरी कहानी।
व्यापारिक जहाज का आगमन और मौत का तांडव #BlackDeath
साल 1347, महीना अक्टूबर यूरोप का मौसम खुशगंवार था। काले समुंदर से लंबी दूरी तय कर एक दर्जन व्यापारिक जहाज सिसली बंदरगाह पहुंचे थे। काफी संख्या में लोग जहाज के स्वागत के लिए समुंदर के किनारे एकट्टा हुए। जहाज किनारे तो लगे लेकिन कोई व्यक्ति बाहर नहीं निकला। लोगों को कुछ समझ नहीं आ रहा था। लेकिन कुछ देर बाद वो खुद जहाज पर चढ़ें तो उनके होश फाख्ता हो गए। जहाजों में मिलीं लाशें और उन लाशों के बीच जिंदा लोग मानो ऐसे नजर आ रहे हो कि बस किसी तरह उनके जीवन की डोर शेष रह गई हो। प्रत्यक्ष दर्शियों ने इस दृश्य को "डांस मैकाब्रे" के रूप में वर्णित किया, जिसका अनुवाद करें तो अर्थ होता है "मौत का तांडव"। दरअसल, इन मौतों की वजह प्लेग थी। जहाज पर सवार होकर आई महामारी धीरे-धीरे यूरोप के कई हिस्सों में फैल गई और वहां की आधी आबादी को खत्म कर दिया। तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी के इतिहास पर नजर डालें तो यूरोप की हालत भी अन्य देशों से बेहतर स्थिति में नहीं थी। प्राकृतिक आपदा और बीमारियों का जैसा असर दूसरे देशों में था। स्थिति यूरोप की भी कमोबेश वैसी ही कुछ थी। साल 1347 में इतिहास में सबसे भयानक महामारी यूरोप में फैल गई। कल्पना कीजिए कि एक महामारी यूरोप की 60 प्रतिशत आबादी को ही समाप्त कर देता है। बुबोनिक प्लेग, जिसे ब्लैक डेथ के नाम से भी जाना जाता है। इसने अनुमानित 155 से 200 मिलियन लोगों की जान ले ली।
एक तिहाई आबादी समाप्त
जब नगर प्रशासन को ये बात पता चली। जहाजों को तट से तुरंत ही दूर ले जाने का आदेश दिया गया। जिससे की बीमारी का प्रकोप क्षेत्र तक ना पहुंचे। लेकिन तब तक को काफी देर हो चुकी चुकी थी। बीमारी का अंश मक्खियों और चूहों के जरिये शहर में एंट्री लेली। जैसे ही एक गांव में बीमारी ने पांव पसारा वहां के शेष बचे लोग पड़ोस के इलाके में भागते। लेकिन जब आस पास के इलाकों में भी इसका प्रभाव फैलने लगा तो सभी गांवों ने अपने-अपने इलाके बंद करने शुरू कर दिए। ब्लैक डेथ ने पहले तो पूरे इटली और फिर समूचे यूरोप को अपनी चपेट में ले लिया। पांच साल के अंदर ब्लैक डेथ की वजह से करोड़ों लोगों की जान चली गई। ये यूरोप की आबादी का एक तिहाई हिस्सा बताया जाता है।
बीमारी कैसे फैली?
बीमारी फैलने को लेकर कई थियोरी दी जाती है। किसी में इसके जानवरों से फैलने की बात कही जाती है। किसी में इंसान से ही इंसानों में इसके ट्रांसफर होने के दावे किए जाते हैं। बीमारी को लेकर एक दावा ये भी है कि ये सर्वप्रथम चीन से मिस्त्र और ईरान से होते हुए पश्चिमी देशों में फैला। बीमारी हवा से फैलती थी और खांसने या छींकने सहित साधारण स्पर्श से फैलती थी। उस दौर में चिकित्सा क्षेत्र में महामारी से निपटने के लिए कोई वैज्ञानिक विशेषज्ञता भी नहीं थी। पिस्सू गिलहरी, खरगोश, चिपमंक्स, चूहों और मुर्गियां बुबोनिक प्लेग बैक्टीरिया "यर्सिनिया पेस्टिस" के वाहक माने जाते थे। एक विचार के अनुसार शहरी चूहे ब्लैक डेथ के वाहक और उत्पत्ति दोनों हैं। प्लेग का बैक्टीरिया संक्रमित इंसान के अहम अंगों को भारी नुकसान पहुंचा देता था। संक्रमित लोगों को फोड़े पड़ जाते थे जिससे खून और मवाद निकलता रहता था। इसके अलावा बुखार, उल्टी, दस्त और भयानक दर्द इसके लक्षण थे। लोगों को खून की खांसी भी होती थी। बीमार आदमी की 5 से 7 दिनों में मौत हो जाती थी।
ब्लैक डेथ नाम क्यों पड़ा?
यूरोप इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित था, फिर भी वह ब्लैक डेथ का पहला शिकार नहीं था। पहले यूरोप में यह अफवाह थी कि एशिया में भयानक बीमारी फैल रही है, जो अब शहर में है। यूरोप पहुंचने से पहले, यह बीमारी चीन, भारत, फारस और सीरिया से होकर गुज़री। पूरे यूरोप, एशिया, मध्य पूर्व और दक्षिण अफ्रीका में, कई लोग ब्लैक डेथ के कारण मारे गए। हालाँकि, जब यह शुरू में फैलना शुरू हुआ तो महामारी अजेय थी। जो लोग ब्लैक डेथ से संक्रमित हो गए थे, उनके ग्रोइन क्षेत्र, गर्दन, अंगों और बाहों के नीचे उनके लिम्फ नोड्स में सूजन थी। सूजन एक अखरोट के आकार से एक अंडे के आकार तक बढ़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप काले नीले फोड़े होते हैं। सबसे खराब स्थिति में, सूजन काले-बैंगनी रंग के सेब के आकार तक फैल सकती है। ब्यूबॉनिक प्लेग से पीड़ित मरीज़ के शरीर में इंटरनल ब्लीडिंग होती रहती थी। ये ख़ून बाहर नहीं निकलता था। कुछ समय के बाद ख़ून जमकर काला पड़ जाता। जिसकी वजह से चमड़ी और फोड़े का रंग भी काला हो जाता थाय़ इसी वजह से इस आपदा को ब्लैक डेथ का नाम दे दिया गया।
शोधकर्ताओं ने 684 साल पुराने रहस्य का किया खुलासा
इस रहस्यमयी महामारी का उद्गम कहां से हुआ, इसको लेकर अभी तक कयास ही लगाए जा रहे थे। शोधकर्ताओं ने 1248 और 1345 के बीच मरने वाले लोगों के 460 कब्रों की जांच की जो बुबोनिक प्लेग के प्रकोप के शिकार हुए थे। लगभग 140 साल पहले की खुदाई में मकबरे मिले थे जो इस बात का संकेत देते थे कि उस समय के दौरान एक अज्ञात महामारी से लोगों की मौत हुई थी। रिसर्च कर रही टीम को तीन कंकालों के दांत में येरसिनिया पेस्टिस नामक बैक्टीरिया मिले। यही बैक्टीरिया ब्यूबॉनिक प्लेग का कारण है।
- अभिनय आकाश