प्रधानमंत्री वही नरेन्द्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष भी वही अमित शाह, पार्टी भी वही भारतीय जनता पार्टी ! वक्त का फासला भी बहुत ज्यादा नहीं, महज 3 माह। विगत साल भर में एक के बाद एक 5 राज्यों की सत्ता खोने वाली भारतीय जनता पार्टी ने महज 3 महीनों में ऐसा कौन-सा चमत्कार कर दिया कि देश के सभी राजनीतिक विश्लेषकों की गणना तथा एक्जिट पोल के सारे आंकड़ों को धत्ता बताते हुए एक अविश्वसीय विजय हासिल कर केंद्र में सत्तारूढ़ हो गयी। आखिर कैसे हुआ यह चमत्कार ? किसने किया यह चमत्कार ? क्या नरेन्द्र मोदी ने ? क्या अमित शाह ने ? अथवा अन्य किसी ने ? जी हां, नरेन्द्र मोदी ने नहीं, अमित शाह ने भी नहीं, इस अकल्पनीय जीत का असली सूत्रधार है 'वास्तु'। जी हां वास्तु ! जिस जीत की खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अथवा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी कल्पना नहीं की होगी और मतगणना जारी रहने के दौरान भी किसी ने ऐसी जीत की कल्पना नहीं की होगी, वैसी ही 'चमत्कारी' जीत प्रदान कर 'वास्तु' ने भारतीय जनता पार्टी के सौभाग्य का द्वार खोल दिया। इसलिए भाजपा की 'चमत्कारी जीत' का असली हकदार मोदी अथवा शाह नहीं बल्कि 'वास्तु' है।
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यह सिर्फ 16 महीनों पहले की घटना है, जब 18 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली में भाजपा के नये कार्यालय का शुभ उद्घाटन (?) किया था। मजे की बात यह कि उसी दिन त्रिपुरा विधानसभा चुनाव का परिणाम भी घोषित किया गया था, जिसमें भाजपा ने सहयोगी पार्टी आईपीएफटी के साथ चुनाव लड़कर 60 सदस्यों वाली विधानसभा में 44 सीटें हासिल कर 25 सालों के वामपंथी शासन का अंत कर दिया था। पार्टी के नये कार्यालय के उद्घाटन के दिन ही यह खुशखबरी सुनकर भाजपा के नेता-कार्यकर्ता खुशी से झूम उठे थे। लेकिन उन्हें क्या पता था कि नया कार्यालय उनके लिए खुशियों के बजाय मुश्किलों का ठिकाना बनने जा रहा है।
पार्टी के नये कार्यालय के उद्घाटन के दूसरे ही दिन से भाजपा के सौभाग्य ने अंग्रेजी वर्णमाला के वर्ण की तरह मोड़ लेते हुए दुर्भाग्य की ओर रुख कर लिया। इसका पहला प्रमाण मिला मई महीने में आयोजित कर्नाटक विधानसभा के चुनावों में, जब सर्वाधिक सीटें हासिल करने के बावजूद भाजपा सरकार गठन करने में सफल नहीं हो पायी। उसके बाद संपन्न छत्तीसगढ़, राजस्थान व मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनावों में भी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। विगत साल भर में संपन्न 9 राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों में भाजपा सिर्फ एकमात्र त्रिपुरा सरीखे छोटे राज्य में ही सरकार गठन करने में सफल हो पाई। इसी प्रकार इस दौरान संपन्न हुए 13 संसदीय सीटों के चुनावों में भाजपा सिर्फ 2 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई थी। भाजपा के पितामह स्वरूप अटल बिहारी वाजपेयी का भी इसी अवधि में देहावसान हो गया। प्रधानमंत्री के रूप में अपने 4 साल के कार्यकाल में पहली बार प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ उनकी ही सहयोगी रही तेलुगुदेशम पार्टी ने 20 जून 2018 को लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव भी पेश कर दिया। इस प्रकार नये कार्यालय के उद्घाटन के बाद से ही पार्टी को एक के बाद एक मुश्किलों में घिरते देख भाजपा नेताओं के होश फाख्ता हो गये। आखिर वास्तु विशेषज्ञों की सलाह लेकर वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कार्यालय में वास्तु दोष की वजह से ही पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
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सनद रहे कि खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 18 अगस्त 2016 को दिल्ली के 6-ए, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर भाजपा के नये कार्यालय के भवन की आधारशिला रखी थी। मुंबई की एक स्थापत्य कंपनी ने 8,000 वर्गफीट क्षेत्र में 350 करोड़ रुपए की लागत से बने कार्यालय का डिजाईन तैयार किया था। महज 18 महीनों में 70 कमरों व 200 गाड़ियों की पार्किंग की सुविधायुक्त 7 मंजिला इमारत का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ही इसका उद्घाटन किया था। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने दावा किया था कि यह विश्व के किसी भी राजनीतिक दल का सबसे आधुनिक तथा विशाल कार्यालय है। लेकिन यही आधुनिक तथा सबसे विशाल कार्यालय भाजपा के लिए गले की घंटी बन गया। एक के बाद एक मुश्किलों से घिरने के बाद पार्टी के नेताओं ने वास्तु विशेषज्ञों से सलाह ली तथा पार्टी के नये कार्यालय में वास्तु दोष की बात सामने आयी। चंद महीनों बाद ही संपन्न होने वाले लोकसभा चुनावों में भी पार्टी की वैसी ही दुर्गति होने की आशंका कर पार्टी ने तत्काल दिल्ली के अशोक मार्ग स्थित अपने पुराने कार्यालय से ही सांगठनिक काम-काज चलाने का निश्चय किया क्योंकि इसी कार्यालय में रहते हुए चुनाव लड़कर 2 सांसदों वाली भाजपा ने 2014 के चुनावों में 283 सीटें जीत कर दिल्ली की राजगद्दी हासिल की थी। आखिर पार्टी के पुराने कार्यालय में नये सिरे से रंग-रौगन कर अध्यक्ष अमित शाह ने 3 माह पूर्व पुन: पार्टी के पुराने दफ्तर से ही काम-काज शुरू कर दिया। पुराने व सौभाग्यशाली कार्यालय से काम-काज पुन: शुरू होने के साथ ही मानो पार्टी की तकदीर खुल गई और पार्टी ने सारे समीकरणों को तहस-नहस करते हुए ऐतिहासिक जीत दर्ज की। इस प्रकार भाजपा ने महज चंद महीनों में ही अधोगति से उर्ध्वगति हासिल कर एक बार पुन: वास्तु को महिमामंडित कर मनुष्य के जीवन में उसकी महत्ता को प्रमाणित कर दिया।
यहां एक और सवाल जेहन में उभरता है कि हिंदु दर्शन में आस्था रखने वाली, हिंदु व हिंदुत्व के लिए काम करने वाली भाजपा को आखिर वास्तु की शरण क्यों लेनी पड़ी? क्यों हिंदुओं के 33 करोड़ देवी-देवता उसकी रक्षा करने में असमर्थ रहे ? यह इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि मनुष्यों द्वारा सृजित धर्मों का मनुष्य के जीवन में विशेष प्रभाव नहीं होता, बल्कि हम जिस धरती पर रहते हैं, जिसकी छाती से उत्पन्न हुआ अन्न और पानी सेवन करते हैं, जिसके वायुमंडल से ऑक्सीजन लेकर सांस लेते हैं, उसी का मनुष्य के जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव होता है। जीवन में सुख, शांति, समृद्धि हासिल करने व किसी भी प्रकार की आपदा-विपदा से बचने के लिए धरती का सिस्टम ही सबसे उपयुक्त व सार्थक है। धरती हमारी माता है तथा हर माँ की यही इच्छा होती है कि उसकी संतान हमेशा सुख, शांति से रहे, उसके जीवन में किसी भी प्रकार की कोई आपदा-विपदा न हो, इसी भांति हमारी मातृभूमि का भी सिस्टम इतना सुंदर है कि उसके सिस्टम (वास्तु) के अनुसार गृह निर्माण कर व मनुष्य के मन में प्रदत्त शक्ति का उपयोग करने से मनुष्य जीवन में हर सुख, शांति, संपदा हासिल कर सकता है। पूर्वोत्तर भारत के लोग युगों से पूरी तरह वास्तु के विपरीत गृह निर्माण करते आये हैं और इसी वजह से यह क्षेत्र प्रकृति द्वारा अकूत संपदा प्रदान करने के बावजूद सदियों से युद्ध, उग्रवाद, अशांति, पिछड़ेपन व अलगाववादी मानसिकता से ग्रस्त रहा है। हमारी धरती ही असली भगवान, अल्ला, गॉड है। आईये, हम सभी प्रकृति (वास्तु) के नियमानुसार गृह निर्माण करने के साथ ही प्रकृति द्वारा हमारे मन में प्रदत्त असीम शक्ति का सदुपयोग कर जीवन को सुंदर बनायें।
-राजकुमार झांझरी
(लेखक गुवाहाटी निवासी वास्तु विशेषज्ञ हैं तथा घर-घर जाकर लोगों को नि:शुल्क वास्तु सलाह देते हैं।)