यूपी विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी से सीधी लड़ाई लड़ने से बचना चाहती है भाजपा

By अजय कुमार | Dec 30, 2020

उत्तर प्रदेश में होने वाले पंचायत चुनाव में शिवसेना की भी एंट्री हो सकती है। आम आदमी पार्टी के बाद शिवसेना की ओर से भी यूपी की सियासत में रूचि दिखाने के चलते इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश की चुनावी सियासत बहुकोणीय होती जा रही है। शिवसेना ने पंचायत चुनाव लड़ने की बात कही है। इन दो दलों के अलावा औवेसी भी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर ताल ठोंक रहे हैं। ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) नेता असदुद्दीन ओवैसी कुछ दिनों पूर्व लखनऊ आकर यूपी विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावनाएं तलाश गए थे। ओवैसी सपा-बसपा और कांग्रेस से अलग चुनाव मोर्चा बनाए के संकेत दे रहे हैं, जिसमें कई छोटे-छोटे दलों को शामिल किया जा सकता है।

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खास बात यह है कि सभी दलों के मुखिया सबसे अधिक निशाना भारतीय जनता पार्टी और योगी सरकार पर साध रहे हैं। यानी लड़ाई बीजेपी बनाम अन्य की होगी। देखना अच्छा लगेगा कि कौन-सा दल कितनी चुनौती योगी सरकार को दे पाएगा। वैसे आज की तारीख में 2017 के विधानसभा चुनाव में मिले वोट प्रतिशत के हिसाब भाजपा नंबर एक पर और समाजवादी पार्टी नंबर दो एवं बहुजन समाज पार्टी तीसरे नंबर पर है। कांग्रेस चौथे नंबर की पार्टी बनकर रह गई है। बात अगर वोट शेयर की करें तो 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को करीब 40 प्रतिशत वोट, समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन को 28 प्रतिशत और बसपा को 22 प्रतिशत वोट मिले थे। सपा-कांग्रेस गठबंधन में अलग-अलग वोटों की बात की जाए तो सपा को 22 प्रतिशत और कांग्रेस को करीब 6 प्रतिशत वोट मिले थे।


इस हिसाब से भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती सपा-बसपा हुईं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नेता सपा-बसपा से अधिक आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस पर आक्रामक हैं। आप और कांग्रेस के नेताओं के छोटे से छोटे बयान पर भी भाजपा नेता पूरी गंभीरता के साथ तीखी प्रतिक्रिया देने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं, जबकि सपा और बसपा को अनदेखा किया जाता है। भाजपा नेताओं के ‘आप’ को लेकर दिए जाने वाले बयानों से तो यही लगता है कि यूपी में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है, वहीं सपा-बसपा अपना जनाधार खोते जा रहे हैं, लेकिन यह सिक्के का एक पहलू है। भारतीय जनता पार्टी रणनीतिक तौर पर आप और कांग्रेस के खिलाफ ज्यादा आक्रमक रूख अपनाए हुए है ताकि मतदाता भ्रम में फंसा रहे कि भाजपा को हराने के लिए किसको वोट किया जाए। मतदाता भ्रमित रहेगा तो गैर भाजपाई वोटों में बंटवारा होगा और इस प्रकार भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश में ‘कमल’ खिलाना आसान हो जाएगा। वैसे भी भारतीय जनता पार्टी को बहुकोणीय मुकाबला काफी रास आता है।


बहरहाल, आज जिस स्थिति में भारतीय जनता पार्टी खड़ी है कभी वहां कांग्रेस खड़ी हुआ करती थी। कांग्रेस के खिलाफ तमाम सियासी दल अलग-अलग मोर्चाबंदी करते रह जाते थे और कांग्रेस जीत का सेहरा पहन लेती थी, लेकिन 1977 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्ष जनता पार्टी के बैनर तले एकजुट हो गया तो कांग्रेस को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ गया, यहां तक कि प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए भी इंदिरा चुनाव नहीं जीत पाईं थीं। उन्हें सोशलिस्ट नेता राजनारायण ने धूल चटा दी थी।


कालांतर में कांग्रेस कमजोर होती गई और भारतीय जनता पार्टी ने उसकी जगह ले ली, विपक्ष में बिखराव का जो फायदा पहले कांग्रेस उठाया करती थी, अब उसी तरह का फायदा भारतीय जनता पार्टी उठा रही है। इससे भी बड़ी बात यह है कि विपक्ष के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कद का कोई नेता भी मौजूद नहीं है, जबकि कांग्रेस को चुनौती देने के लिए दिग्गज अटल बिहारी वाजपेयी, चौधरी चरण सिंह, युवा तुर्क चन्द्रशेखर, विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसे तमाम नेता थे। उक्त सभी नेताओं ने जिसमें से कई कांग्रेस से ही बगावत करके आए थे, ने न केवल कांग्रेस बल्कि उससे भी अधिक नेहरू-गांधी परिवार को चुनौती देते हुए प्रधानमंत्री की कुर्सी तक हासिल करने में सफलता पाई थी।

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लब्बोलुआब यह है कि उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी 2022 के विधान सभा चुनाव में किसी भी दल से सीधी लड़ाई से बचना चाहती है। इसीलिए सपा-बसपा को अनदेखा करके अन्य दलों को इस हिसाब से हैंडिल कर रही है कि चुनाव में यह दल कुछ वोट हासिल करके सपा-बसपा के लिए ‘मुंह नोचवा’ साबित हों। यदि छोटे-छोटे दल या उनका गठबंधन सपा, बसपा और कांग्रेस के वोट बैंक में सेंधमारी करके 5-6 प्रतिशत वोट भी हासिल कर लेता है तो भाजपा को इसका सीधा फायदा मिलेगा। इतने वोटों के बंटवारे से भाजपा की सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने का अरमान भी पूरा हो जाएगा।


-अजय कुमार

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