जीत के नये मानक गढ़ती भाजपा और निस्तेज होता विपक्ष

By ललित गर्ग | Jun 03, 2024

लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण का मतदान संपन्न होने के बाद आए कई एग्जिट पोल (चुनाव बाद सर्वेक्षण) में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एडीए) को प्रचंड बहुमत मिलने का अनुमान लगाया गया है। इन सर्वेक्षणों के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता संभालते हुए पूर्व के सारे रिकार्ड को ध्वस्त कर देंगे। मोदी ने लोकसभा चुनाव में अपने प्रभावी एवं चमत्कारी प्रदर्शन से जनता का दिल जीता है और उनके देश-विकास के कार्यक्रमों पर जनता ने मोहर लगाई है। विपक्ष के लिये जनता ने स्पष्ट संदेश दिया है कि मुस्लिम तुष्टीकरण, मुफ्त की रेवडियां बांटने, संविधान बचाने के भ्रामक ड्रामा एवं देश तोड़ने की सोच से ऊपर उठकर विपक्ष की भूमिका का सार्थक करें। कोई भी एग्जिट पोल चुनाव परिणाम तो नहीं होता, लेकिन बातों ही बातों में चुनाव परिणामों की ओर इशारे कर जाता है, जो अक्सर समय की कसौटी पर सही साबित होते आये हैं, वास्तविक नतीजे मंगलवार 4 जून को देर शाम तक प्राप्त हो पाएंगे। जिसमें भाजपा एक बार फिर सारे मिथक तोड़ते हुए दिखाई दे रही है। भाजपा की सफलता को इसलिए भी बड़ा माना जा रहा है क्योंकि उसने सारे विपक्षी दलों के गठबंधन एवं शक्ति को मात दी। भाजपा न केवल अपनी सरकार बचाते हुए दिख रही है बल्कि भारत को एक नये युग में ले जाने के लिये प्रतिबद्ध दिख रही है। निश्चित ही सशक्त एवं विकसित भारत निर्मित करने के लिये भाजपा एक लहर बन चुकी है और इस लहर ने पूरे मुल्क के स्वाभिमान को एक नई ऊंचाई दी है। 


अब भारत का मतदाता परिपक्व हो चुका है, उसे जाति, धर्म, सम्प्रदाय के नाम पर गुमराह नहीं किया जा सकता। लोकतंत्र जिस रूप में सशक्त हो रहा है, उसी के अनुरूप राजनीतिक चरित्र को गढ़ना होगा, उसके प्रति भी राजनीतिक दलों को एहसास कराना होगा, जहां से राष्ट्रहित, ईमानदारी और नए मनुष्य की रचना, सशक्त अर्थव्यवस्था एवं विकास की तीव्र रफ्तार, खबरदार भरी गुहार सुनाई दे। कोई भी दल हो, अगर ये एहसास नहीं जागता है तो मतदाता दिखा देता है उनको शीशा, वही छीन लेता है उनके हाथ से दियासलाई और वही उतार देता है सत्ता का मद। कहने का मतलब सिर्फ इतना सा है कि देश की सियासी फिजां को बदलने में विपक्षी दलों को अधिक ईमानदार, जिम्मेदार एवं पारदर्शी होना होगा। विपक्ष दल अपनी जिम्मेदारियां से भागते हुए देश से ज्यादा दल को महत्व देने का परिणाम इन चुनाव में देख लिया है। भाजपा की तुलना में अन्य दलों पर दाग ज्यादा और लम्बे समय तक रहे हैं। इन दलों को न केवल अपने बेदाग होने के पुख्ता प्रमाण देना होगा, बल्कि जनता के दर्द-परेशानियों को कम करने का रोड मेप तैयार करते हुए अपना विपक्षी होने के धर्म को निभाना होगा, तभी वे आदर्श विपक्ष के हकदार बन सकेगे।

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हमने इन चुनावों में देखा है कि केवल झूठे आश्वासनों से मतदाता को गुमराह करने के दिन अब लद गये है। सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि विभिन्न विपक्षी दल अपने को, समय को, अपने भारत को, अपने पैरों के नीचे की जमीन को पहचानने वाला साबित नहीं कर पाये हैं। जिन्दा कौमें पांच वर्ष तक इन्तजार नहीं करतीं, उसनेे चौदह गुना इंतजार कर लिया है। यह विरोधाभास नहीं, दुर्भाग्य है, या सहिष्णुता कहें? जिसकी भी एक सीमा होती है, जो पानी की तरह गर्म होती-होती 50 डिग्री सेल्सियस पर भाप की शक्ति बन जाती है। देश को बांटने एवं तोड़ने वाले मुद्दे कब तक भाप बनते रहेेगे? भाजपा को चुनौती देनी है तो विपक्षी दलों को अपना चरित्र एवं साख दोनों को नये रूप में एवं सशक्त रूप में प्रस्तुति देनी होगी। अन्यथा इन लोकसभा चुनावों की तरह आगे के जितने भी चुनाव होंगे उनके चुनाव परिणाम इसी तरह निराश करते रहेंगे। 


इससे विचित्र और हास्यास्पद और कुछ नहीं कि कांग्रेस समेत अन्य इंडिया गठबंधन से जुड़े दल एक ओर जोर-शोर से यह दावा करने में लगे हैं कि उनके गठबंधन को लोकसभा चुनाव में 295 सीटें मिल रही हैं, सपा नेता अखिलेश उत्तरप्रदेश में 80 में 79 सीटों पर जीत का दावा किया, जब एग्जिट पोल ने उनके इन दावों की पोल खोल दी, आज घोषित हो रहे चुनाव परिणामों में भाजपा जब ऐतिहासिक जीत की ओर बढ़ रही है तो विपक्षी दलों के नेता मतगणना में गड़बड़ी की निराधार आशंकाएं जताकर भ्रम फैलाने में लगे हैं। भ्रम फैलाने की इसी कोशिश के तहत कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने यह अनर्गल दावा किया कि मतगणना को प्रभावित करने के लिए गृह मंत्री अमित शाह ने देश के 150 जिलों के जिलाधिकारियों को फोन किया है। उन्होंने यह बेतुका आरोप लगाते हुए यह समझा होगा कि इससे उन्हें एक फर्जी नैरेटिव खड़ा करने में मदद मिलेगी और उनकी हार पर पर्दा पड़ जायेगा। यह विडम्बना एवं विसंगति विपक्षी दलों को मजबूत करने की बजाय लगातार कमजोर ही कर रही है। वैसे भी भारत मंे जितने भी राजनैतिक दल हैं, सभी ऊंचे मूल्यों को स्थापित करने की, आदर्श की बातों के साथ आते हैं पर सत्ता प्राप्ति की होड़ में सभी एक ही संस्कृति को अपना लेते हैं। मूल्यों की जगह कीमत की और मुद्दों की जगह मतों की राजनीति करने लगते हैं। चुनावों की प्रक्रिया को ही नहीं, चुनाव मतगणना की प्रक्रिया को भी विपक्षी राजनैतिक दलों ने अपने स्तर पर भी कीचड़ भरा कर दिया है। ऐसा स्वकल्याण की सोचने वाला विपक्ष किस तरह लोक कल्याण के मुद्दों को बल देगा? बिना विचारों के दर्शन और शब्दों का जाल बुने यही कहना है कि लोकतंत्र के इस सुन्दर नाजुक वृक्ष को नैतिकता के पानी और अनुशासन की ऑक्सीजन चाहिए। जीत किसी भी दल को मिले, लेकिन लोकतंत्र को शुद्ध सांसें मिलनी ही चाहिए।


कुल मिलाकर लोकसभा चुनावों में भाजपा की जीत से तो पार्टी के हौसले स्वाभाविक रूप से बढ़े। इसके अलावा मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस कमजोर होती दिखी, कमजोर ही क्या उसका तो लगभग सफाया ही होता जा रहा है। कांग्रेस के निष्प्रभावी केन्द्रीय नेतृत्व के कारण कांग्रेस के कई कद्दावर नेता अलग हो गए। उससे भी भाजपा की स्थिति मजबूत हुई है। इस बार कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी कमजोर पार्टी बनकर उभरी है। उसकी कमजोरी न केवल राजनीतिक स्तर पर बल्कि मानसिक स्तर पर स्पष्ट दिख रही है। कांग्रेसी एवं विपक्षी नेताओं की हरकतों से यदि कुछ स्पष्ट है तो यही कि वे अपनी संभावित हार का ठीकरा चुनाव आयोग, मीडिया आदि पर फोड़ने की पूरी तैयारी कर चुके हैं। यही कारण है कि उन्होंने एक्जिट पोल के नतीजों को न केवल अस्वीकार कर दिया, बल्कि उन्हें भाजपा प्रायोजित भी करार दिया। एक्जिट पोल को लेकर कांग्रेस इतनी दुविधाग्रस्त थी कि पहले उसने टीवी चैनलों पर होने वाली चर्चा का बहिष्कार करने का फैसला किया और फिर फजीहत होती देखकर उसमें शामिल होने का निर्णय लिया।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक ही कहा है कि वह विश्वास के साथ कह सकते हैं कि लोगों ने राजग सरकार को फिर से चुनने के लिए रिकॉर्ड संख्या में मतदान किया है। क्योंकि लोगों ने हमारी सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड देखा है। हमारी सरकार के कार्यकाल में गरीबों, हाशिए पर पड़े लोगों और दलितों के जीवन में गुणात्मक सुधार आया है। लोगों ने यह भी देखा है कि किस प्रकार भारत में सुधारों ने देश को पांचवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बना दिया है। उन्होंने तंज कसते हुए यहां तक कह दिया कि अवसरवादी इंडिया गठबंधन मतदाताओं के दिलों को छूने के बजाय घायल ही किया। मोदी सरकार के तौर-तरीकों पर आम जनता का विश्वास ही इस ऐतिहासिक जीत का कारण बना है। विपक्ष की नकारात्मक राजनीति, महंगाई, बेरोजगारी, आरक्षण, अर्थव्यवस्था, संविधान जैसे तमाम मुद्दे थे जिस पर जनता ने मोदी सरकार की नीतियों एवं साफ-सुथरी छवि पर मुहर लगायी है। कानून व्यवस्था, राजनीतिक अपराधियों पर अंकुश और केंद्र की योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन से जनता को साफ संदेश मिला कि भारत में विकास, सुशासन, सुरक्षा एवं शांतिपूर्ण जीवन के लिये मोदी ही सबसे उपयुक्त है। ऐसे में ताजा नतीजे भाजपा की रणनीति एवं सिद्धान्तों पर खरे उतरें। चुनाव परिणामों का संबंध चुनावों के पीछे अदृश्य ”लोकजीवन“ से, उनकी समस्याओं से होता है। संस्कृति, परम्पराएं, विरासत, विकास, व्यक्ति, विचार, लोकाचरण से लोक जीवन बनता है और लोकजीवन अपनी स्वतंत्र अभिव्यक्ति से ही लोकतंत्र स्थापित करता है, जहां लोक का शासन, लोक द्वारा, लोक के लिए शुद्ध तंत्र का स्वरूप बनता है। जब-जब चुनावों में लोक को नजरअंदाज किया गया, चुनाव परिणाम उलट होते देखे गये हैं। लोकसभा के इन चुनाव परिणामों से विभिन्न विपक्षी राजनीतिक दलों को सबक लेने की अपेक्षा है। 


- ललित गर्ग

लेखक, पत्रकार, स्तंभकार

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