आजमगढ़ और रामपुर उप चुनाव की तैयारी में जुटी भाजपा, आलाकमान ने बनाया यह प्लान

By अंकित सिंह | May 29, 2022

उत्तर प्रदेश में 2 लोकसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं। यह दोनों लोकसभा क्षेत्र हैं आजमगढ़ और रामपुर। दरअसल, हाल में ही संपन्न विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव और आजम खान दोनों विधायक बने। इसके बाद से उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया। लोकसभा से इस्तीफा देने के बाद आजमगढ़ और रामपुर की सीट खाली हो गई। इन दोनों सीटों पर 23 जून को उपचुनाव होंगे। दोनों ही सीटों पर उपचुनाव के लिए सत्तारूढ़ भाजपा ने अभी से अपनी तैयारियां शुरू कर दी है। इसके लिए राज्य के मंत्रियों को कई बड़े टास्क सौंपे गए हैं। इन दोनों ही उपचुनाव को भाजपा काफी गंभीरता से ले रही है। यही कारण है कि आलाकमान फिलहाल स्थिति की पूरी तरह से मॉनिटरिंग कर रहा है। दरअसल, आजमगढ़ और रामपुर समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है। दोनों ही सीटों पर एमवाई समीकरण पूरी तरह से मजबूत है जो कि समाजवादी पार्टी के पक्ष में जाता है। 

 

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हाल के भी विधानसभा चुनाव में रामपुर और आजमगढ़ की ज्यादातर सीटों पर समाजवादी पार्टी गठबंधन की जीत हुई है। ऐसे में अब भाजपा दोनों ही सीटों पर खुद को मजबूत करने की तैयारी में जुट चुकी है। उप चुनाव में समाजवादी पार्टी को किस तरीके से घेरा जाए, इसके लिए भी प्लान तैयार किया जा रहा है। भाजपा के पास दोनों ही सीटों पर खोने के लिए कुछ नहीं है। लेकिन अगर दोनों में से किसी एक सीट पर भगवा पार्टी जीतती है तो उसके लिए यह बड़ी बात होगी। साथ ही साथ भाजपा अखिलेश यादव पर दबाव बनाने की शुरुआत भी कर देगी। प्रचंड मोदी लहर के बावजूद भी 2014 और 2019 में रामपुर और आजमगढ़ की सीट पर भाजपा ने चुनाव नहीं जीता। 2014 में आजमगढ़ से मुलायम सिंह यादव जीते थे जबकि 2019 में अखिलेश यादव आजमगढ़ से जीतने में कामयाब रहे। 

 

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अब सवाल यह है कि क्या आजमगढ़ से अखिलेश यादव अपनी पत्नी डिंपल यादव को चुनावी मैदान में उतारेंगे या किसी अन्य को। भाजपा फिलहाल अखिलेश यादव की रणनीति का इंतजार कर रही है। वहीं दूसरी ओर माना जा रहा है कि अखिलेश यादव आजम खान के ही किसी करीबी को रामपुर से टिकट दे सकते हैं। दरअसल, अखिलेश यादव फिलहाल आजम खान से रिश्तो को सामान्य करने में जुटे हुए हैं। यही कारण था कि अखिलेश यादव ने कपिल सिब्बल को राज्यसभा चुनाव में समर्थन का ऐलान किया है। अगर आजमगढ़ सीट भाजपा जीतती है तो कहीं ना कहीं उसे एक मनोवैज्ञानिक लाभ मिलेगा। वहीं दूसरी ओर अखिलेश यादव का कॉन्फिडेंस टूटेगा जैसा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से हारने के बाद राहुल गांधी के साथ हुआ। 

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