By अजय कुमार | Jul 12, 2023
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव की तैयारी में बीजेपी सबसे आगे चल रही है। वह सब कुछ ठोक-बजा कर प्रत्याशियों का फैसला करने के लिए जमीन से लेकर बंद कमरों तक में रणनीति बना रही है। टिकट बांटते समय तमाम बातों का ध्यान रखा जायेगा, लेकिन अबकी से प्रत्याशियों का चयन करते समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी अहम भूमिका रहेगी, जो 2019 के लोकसभा चुनाव में नहीं दिखाई दी थी। इसकी वजह यह है कि बीजेपी ने उत्तर प्रदेश के 2017 के विधान सभा चुनाव मोदी का चेहरा आगे करके जीता था और चुनाव नतीजे आने के बाद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया गया था, इसलिए 2019 के लोकसभा चुनाव के समय टिकट बंटवारे में न उनसे राय ली गई थी और न ही उन्होंने इसमें दखलंदाजी की थी, लेकिन 2022 का विधानसभा चुनाव बीजेपी ने योगी को आगे करके लड़ा था और उम्मीद से कहीं अधिक अच्छा प्रदर्शन पार्टी का रहा था, जिसके बाद पार्टी के भीतर योगी का कद काफी बढ़ गया था, इसी के चलते अबकी से टिकट बंटवारे के समय योगी को आलाकमान अनदेखा नहीं कर पाएगा। खासकर पूर्वांचल में योगी की पसंद नापसंद का ज्यादा ख्याल रखा जा सकता है। यानी उनका सिक्का भी चलेगा। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि आज की तारीख में पार्टी के भीतर योगी का कद प्रधानमंत्री मोदी के बाद नंबर दो का समझा जाने लगा है। वह न केवल दमदार तरीके से सरकार चला रहे हैं, बल्कि कई राज्यों के चुनाव प्रचार में वह पार्टी के लिए तुरूप का इक्का भी साबित हो चुके हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में लोकसभा प्रत्याशियों के लिए नामों पर चर्चा शुरू कर दी है। यह चर्चा सार्वजनिक रूप से तो नहीं हो रही है, लेकिन अंदर खाने से जो खबर छन कर आ रही है, उससे ऐसा लगता है कि बीजेपी आलाकमान ने यह तय कर लिया है कि इस बार किस निवर्तमान सांसद का टिकट नहीं देना है। कुछ प्रत्याशी तो उम्रदराज होने के कारण चुनावी रेस से बाहर होते दिख रहें हैं, वहीं कुछ आलाकमान की कसौटी पर खरे नहीं उतर रहे हैं। यह वह सांसद हैं जहां से 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा था या फिर पार्टी पर आई किसी मुसीबत की घड़ी के समय जनता के बीच इनका प्रभाव काफी कम या नहीं के बराबर देखने को मिला था।
इसे उदाहरण से समझा जाए तो जब किसानों ने नये कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली में आंदोलन किया तो भारतीय किसान यूनियन के नेता चौधरी राकेश टिकैत के आह्वान पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में किसान आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे थे, जबकि आलाकमान चाहता था कि पश्चिमी यूपी के बीजेपी नेता और सांसद-विधायक अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए यहां के आंदोलनकारी किसानों को दिल्ली कूच नहीं करने के लिए मनाएं। इसी प्रकार लखीमपुर-खीरी में भी जब केन्द्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे ने वहां कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों के ऊपर अपनी गाड़ी चढ़ा दी थी, तब भी वहां के स्थानीय सांसद और केन्द्रीय मंत्री टेनी का व्यवहार बहुत गैर-जिम्मेदाराना और बयानबाजी काफी घटिया स्तर की रही थी, जिससे मोदी सरकार की काफी फजीहत हुई थी, इसीलिए बीजेपी आलाकमान को रालोद मुखिया जयंत चौधरी रास आने लगे हैं। जयंत चौधरी यदि बीजेपी के साथ कंधे से कंधा मिलाते हैं तो पश्चिमी यूपी की करीब 20 सीटों का सियासी समीकरण बीजेपी के पक्ष में हो सकता है, इसके अलावा पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में भी इसका असर साफ दिखाई देगा। 2014 और उसके हुए चुनाव में भले ही रालोद कुछ खास कमाल ना दिखा पाई हो लेकिन किसान आंदोलन के बाद से जयंत चौधरी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोकदल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफी ताकत के साथ उभर कर सामने आयी है। आरएलडी अपनी ताकत का एहसास बीते 2018 कैराना लोकसभा उपचुनाव और 2023 खतौली विधानसभा उपचुनाव में भी दिखा चुकी है। सबसे बड़ी बात यह है कि जयंत चौधरी के बीजेपी के साथ आने से बीजेपी के सामने जाट वोट में बिखराव का खतरा भी कम हो जायेगा।
दरअसल, पश्चिमी यूपी की जाट बेल्ट में एक बड़ा हिस्सा तो जरूर बीजेपी के साथ है, लेकिन अभी तक पार्टी पश्चिमी यूपी पर पूरी तरह से कंट्रोल नहीं कर पाई है। बीजेपी के स्थानीय नेता उतनी चमक नहीं बिखेर पा रहे हैं, जितनी उनसे अपेक्षा थी। यह सच है कि पश्चिमी यूपी के गुर्जर, सैनी, कश्यप, ठाकुर, शर्मा, त्यागी जाति के वोट का ज्यादातर हिस्सा भी बीजेपी के साथ है। पूरे यूपी में भले ही जाट समुदाय 4 से 6 फीसदी के बीच हो, लेकिन पश्चिमी यूपी के कुल वोट में करीब 17 फीसदी हिस्सेदारी जाट समुदाय की है। इस इलाके की 120 विधानसभा सीटों और 18 लोकसभा सीटों पर जाट वोट बैंक असर रखता है। इन्हीं में 12 लोकसभा सीट पर जयंत ताकत लगा रहे हैं। मेरठ, मथुरा, अलीगढ़, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, आगरा, बिजनौर, मुरादाबाद, सहारनपुर, बरेली और बदायूं जैसे जिलों में जाटों का काफी प्रभाव है।
बात इससे आगे की कि जाए तो लगता है अबकी से बीजेपी पिछड़ों और दलितों को भी टिकट देने में ज्यादा दरियादिली दिखाएगी, जिस तरह से समाजवादी पार्टी पिछड़ों और दलितों को लेकर काफी आक्रामक दिखाई दे रही है, उसकी काट के लिए भी ऐसा करना जरूरी है। इसके अलावा मुसलमानों को रिझाने के लिए पसमांदा समाज के एक दो प्रत्याशियों को भी टिकट मिल सकता है। बीजेपी पसमांदा समाज के प्रत्याशियों को अपने सहयोगी दलों के चुनाव चिन्ह पर मैदान में उतार सकती है। यूपी की 80 लोकसभा सीटों के लिए अभी बीजेपी को अपने गठबंधन सहयोगियों से भी बात करनी है। यदि राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी और ओम प्रकाश राजभर की पार्टी से बीजेपी का गठबंधन हो जाता है तो बीजेपी को अपना दल एस, निषाद पार्टी के साथ-साथ इन दलों के नेताओं की दावेदारी पर भी गौर करना होगा। ऐसे में बीजेपी 65-70 सीटों पर ही चुनाव लड़ती नजर आए तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा, इसके चलते भी बीजेपी के कुछ सांसदों को टिकट से हाथ धोना पड़ सकता है। जयंत चौधरी और ओम प्रकाश राजभर से चुनावी तालमेल होता है तो पश्चिमी यूपी और पूर्वांचल के गाजीपुर के आसपास के जिलों की कुछ सीटें ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के हिस्से में जा सकती हैं।
उधर, बीजेपी आलाकमान द्वारा मोदी सरकार के नौ वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर चलाए जा रहे महाजनसंपर्क अभियान और पार्टी की ओर से कराए जा रहे सर्वे में सांसदों की जमीनी हकीकत सामने आने लगी है। पार्टी की ओर से लोकसभा चुनाव के लिए सर्वे कराया जा रहा है। सर्वे में मौजूदा सांसदों की जनता में पकड़ के साथ छवि का आकलन भी किया जा रहा है। साथ ही संभावित नए प्रत्याशियों की भी रिपोर्ट तैयार की जा रही है। पार्टी की ओर से चलाए जा रहे महाजनसंपर्क अभियान में भी पार्टी के सांसदों की जनता में पकड़ और क्षेत्र में सक्रियता सामने आ रही है। करीब एक दर्जन से अधिक लोकसभा क्षेत्रों में अभियान के तहत हुई रैलियों में दो-पांच हजार लोग भी नहीं जुटे हैं। लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों में जुटी पार्टी किसी भी स्थिति में वैसे उम्मीदवार को चुनावी मैदान में नहीं उतारना चाहती है, जिन पर लोगों का अविश्वास बढ़ा है। या फिर जो पार्टी कार्यकर्ताओं की नजर में चढ़ गए हैं। ऐसे सांसदों की उम्मीदवारी पर खतरा मंडराने लगा है।
बीजेपी ने अबकी से उन सीटों पर भी इस बार कमल खिलाने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जिन सीटों (मैनपुरी-रायबरेली) पर 2014-2019 के लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज नहीं कर पाई है। बीजेपी इन सभी सीटों को जीतने का रिकॉर्ड बनाने की तैयारी में है, इसीलिए बीजेपी प्रदेश की एक-एक सीट का बारीकी से निरीक्षण करके ही प्रत्याशियों को उतारना चाह रही है। पार्टी की ओर से लोकसभा चुनाव के लिए भी सर्वे करवाया जा रहा है।
-अजय कुमार