By डॉ. नीलम महेंद्र | Dec 23, 2019
नागरिकता संशोधन कानून बनने के बाद से ही देश के कुछ हिस्सों में इस कानून के विरोध के नाम पर जो हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं वो अब गंभीर चिंता ही नहीं चिंतन का भी विषय बन गए हैं। हर बीतते दिन के साथ उग्र होते जा रहे आन्दोलनों और आंदोलनकारियों के हौसलों के आगे घायल होती पुलिस और लाचार से प्रशासन तंत्र से ना सिर्फ विपक्ष की भूमिका पर सवाल उठे बल्कि सरकार की नाकामी भी सामने आई। विपक्ष इसलिए कठघरे में है क्योंकि बात-बात में गाँधी की विरासत पर अपना अधिकार जमाने वाला विपक्ष आज इन हिंसक आंदोलनकारियों के समर्थन में खड़ा है लेकिन उनसे अहिंसा और शांति के साथ अपनी बात रखने की समझाइश नहीं दे रहा। लोकतंत्र की दुहाई देने वाला विपक्ष जब लोकतंत्र के नाम पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाती अराजक होती भीड़ के समर्थन में उतरता है तो वो लोकतंत्र की किस परिभाषा को मानता है इसका उत्तर भी अपेक्षित है। संविधान की रक्षा की दुहाई देता विपक्ष नागरिकता कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाता तो है लेकिन कोर्ट के फैसले का इंतजार किए बिना सड़कों पर उतरता है और लोगों को भ्रमित करने का काम करता है तो संविधान और न्यायतंत्र के प्रति उसकी आस्था पर भी उत्तर अपेक्षित हो जाता है।
सरकार की नाकामी इसलिए कि इन आंदोलनों में अब तक लगभग बीस आंदोलनकारियों की जान जा चुकी है, तीन सौ से अधिक पुलिस कर्मी घायल हो चुके हैं, रेलवे की लगभग 90 करोड़ की संपत्ति को नुकसान पहुंचा है और विभिन्न राज्यों में रोज बीसियों सरकारी परिवहन की गाड़ियों से लेकर निजी वाहनों को आग के हवाले किया जा चुका है लेकिन विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा। यह विषय मौजूदा सरकार के लिए आत्ममंथन का विषय इसलिए भी है क्योंकि नागरिकता संशोधन कानून भारत में रहने वाले किसी भी भारतीय से सम्बन्ध ही नहीं रखता इसलिए इसमें विवाद का कोई विषय नहीं होने के बावजूद इसे विवादित करके देश को दंगों की आग में झोंक दिया गया जबकि कुछ समय पहले ही तीन तलाक, धारा 370 और राममंदिर जैसे सालों पुराने बेहद विवादास्पद मुद्दों पर भी देश में शांति और सद्भाव कायम रहा। स्पष्ट है कि सरकार की तैयारी अधूरी थी। वो भूल गई थी कि सदन का संचालन भले ही अंक गणित से चलता हो लेकिन देश के जनमानस का संचालन एक ऐसा रसायनशास्त्र है जहाँ कब कौन सी क्रिया किस प्रतिक्रिया को जन्म देगी यह गहन अध्ययन और अनुभव दोनों का विषय होता है। इसलिए वो राज्यसभा में अल्पमत में होने के बावजूद संसद के भीतर की फ्लोर मैनेजमेंट में भले ही सफल हो गई हो लेकिन संसद के बाहर के मैनेजमेंट में फेल हो गई।
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दरअसल अपने दूसरे कार्यकाल में अपने दम पर बहुमत हासिल करने वाली इस सरकार के हौसले बुलंद हैं। वैसे तो अपने पिछले कार्यकाल में भी इस सरकार ने काफी बोल्ड निर्णय लिए थे और मोदी सरकार अपने तेज़ फैसलों एवं कठोर निर्णयों के लिए जानी भी जाती रही है। लेकिन वो भूल गई कि सरकार को अपने फैसलों पर अकेले नहीं चलना होता, उसे उन फैसलों से देश चलाना होता है और देश फैसलों से नहीं मनोविज्ञान से चलता है। इसलिए जिन फैसलों पर सरकार को लोगों के साथ की अपेक्षा हो, उन विषयों पर उसे कोई भी कदम उठाने से पहले यह देख लेना चाहिए कि सरकार भले ही तेजी से काम कर रही है और देश बदल रही है लेकिन क्या देश का जनमानस भी उतनी तेजी से बदल रहा है ? क्या देश इन परिवर्तनों के लिए तैयार है ? असल में समझने वाली बात यह है कि अभी तक के सरकार के जो भी विवादित कहे जाने वाले कदम थे जैसे नोटबन्दी, तीन तलाक, धारा 370, राम मंदिर, इन सभी फैसलों पर विपक्ष ने सरकार को भले ही कितना घेरा लेकिन उसे लोगों का साथ नहीं मिला क्योंकि इन फैसलों के पीछे छुपे कारणों और उसके इतिहास से जनता वाकिफ़ थी इसलिए वो किसी के बरगलाने में नहीं आई। लेकिन नागरिकता कानून के बारे में लोग अनजान हैं। लोगों को ना तो इस कानून की जानकारी है और ना ही इसे लाने के पीछे का मकसद ज्ञात है। और जनमानस की इसी अज्ञानता का फायदा उठाया विपक्ष ने। इसे क्या कहा जाए कि कम पढ़े लिखे लोग या फिर आम आदमी तो छोड़िए पढ़े लिखे और सेलेब्रिटीज़ कहे जाने वाले लोग तक इस बिल का विरोध करने वाली भीड़ में शामिल थे लेकिन जब उनसे विरोध का कारण पूछा गया तो बगले झांकने लगे। देश के अधिकांश लोगों तक इस बिल की मूल जानकारी का अभाव और उनकी अज्ञानता ही विपक्ष का सबसे बड़ा हथियार बन गया। सुप्रीम कोर्ट को भी शायद इस बात का अंदेशा था इसीलिए उसने सरकार से इस विषय में लोगों को जागरूक करने के लिए कहा था। अब सरकार ने देर से ही सही पर इस दिशा में कदम उठा लिए हैं।
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दिल्ली में भाजपा की चुनावी रैली में प्रधानमंत्री ने नागरिकता कानून और एनआरसी पर विपक्ष को बेनकाब करते हुए देशवासियों की इन मुद्दों से सम्बंधित शंकाओं को स्वयं दूर करने की सराहनीय पहल की। इसके अलावा भाजपा एक अभियान भी चलाने जा रही है जिसमें अगले दस दिनों में तीन करोड़ परिवारों से मिलकर उन्हें नागरिकता कानून के बारे में बताया जाएगा। लेकिन अब जब सरकार कह रही है कि उसका अगला कदम देश भर में एनआरसी को लागू करना है और विपक्ष अभी से एनआरसी पर देश में भय का माहौल बनाने की कोशिश कर रहा है तो सरकार को चाहिए कि वो ना सिर्फ सीएए बल्कि एनआरसी पर भी अभी से लोगों को जागरूक करे ताकि उनकी अज्ञानता का लाभ भविष्य में विपक्ष ना उठा सके।
-डॉ. नीलम महेंद्र
(लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं)