उद्धव के मुकाबिल बीजेपी का शिवसैनिकों वाले तेवर वाला नेता, जिसकी गिरफ्त से कभी विधायकों को छुड़ाने के सरकार को भेजने पड़े थे एनकाउंटर स्पेशलिस्ट

By अभिनय आकाश | Aug 25, 2021

दिल्ली में तो मौसम बरसात का था लेकिन देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाली मुंबई में राजनीतिक बैरोमीटर पर सियासी पारा चढ़ता हुआ नजर आ रहा था। किसने सोचा था कि 1999 के उत्तरार्द्ध में जिन बाला साहेब ठाकरे ने जिस नेता को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया। उसी को 22 साल बाल उनके बेटे उद्धव ठाकरे गिरफ्तार करने के लिए कट्टिबद्ध नजर आएं। जिस मंत्री की गिरफ्तारी हुई उसकी पहचान कोंकण के इलाके से जरूर है लेकिन उसकी छवि उद्धव ठाकरे के खिलाफ की है। उसने राजनीति का कहकहा बाला साहब के साथ पढ़ा जरूर है लेकिन वर्तमान दौर में मोदी सरकार के मंत्री के तौर पर पहचाना जाता है। जिसके कई किस्से मशहूर हैं। कभी अपनी खामोशी तोड़ी तो राज्य के सीएम की विदाई हो गई। कभी जिनकी गिरफ्त से विधायकों को छुड़ाने के सरकार को एनकाउंटर स्पेशलिस्ट भेजने पड़े थे लेकिन फिर भी सभी के हिस्से नाकामी ही आई। 

चिकन की दुकान चलाने वाले राणे की शिवसेना में एंट्री

ये 1960 के दशक की बात है चेंबूर में एक 'हरया नरया' गैंग काम किया करता था। अंग्रेजी अखबार 'डीएनए' के मुताबिक, 60 के दशक में नारायण राणे इससे जुड़े थे। उस दौर में शिवसेना को जरूरत थी ऐसे लोगों की जो सड़क पर  लड़ाई लड़ सके। हर सवाल कानून के ऊपर रख सके। चाहे मराठी मानुष के कानून का जिक्र हो चाहे बाहर से आए लुंगी को पुंगी बनाने का जिक्र बाला साहब किया करते थे। उस वक्त बाला साहब के कहने पर एक चिकन की दुकान चलाने वाले नारायण राणे शिवसेना में शामिल हुए। उनको वहां का शाखा प्रमुख बनाया गया। उसके बाद राणे को कोपड़गांव में काउंसलर बनाया गया। वहां से राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते 1990 के बीच राणे  विधायक और विधान परिषद के सदस्य भी बने। फिर शिवसेना-बीजेपी की सत्ता में राजस्व मंत्री बने। 

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राणे के सवाल पूछने की हिम्मत ने मनोहर जोशी की सीएम पद से विदाई तय कर दी

महाराष्ट्र में पहली बार बीजेपी और शिवसेना को सत्ता में आने का मौका साल 1995 में मिला। गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री के लिए बाला साहब ने मनोहर जोशी का नाम तय किया। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मनोहर जोशी ने कहा था कि वह अपने को बहुत भाग्यशाली समझते हैं साहेब ने उन्हें इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी उठाने के योग्य समझा। साहेब के आशीर्वाद से वह सरकार चलाते गए। करीब चार साल गुजर गए लेकिन उन्हें ये भनक नहीं लग पाई कि बाला साहब के दिमाग में कुछ और ही चलने लगा है। मनोहर जोशी के बदलते मिजाज के मद्देनजर बाला साहब अब अपने कुछ विश्वासपात्र सहयोगियों से सरकार के नेतृत्व परिवर्तन पर विचार करने लगे थे। कई मौकों पर वो नारायण राणे से पूछ चुके थए कि अगर जोशी को हटा दिया जाए तो क्या वो राज्य चलाने की जिम्मेदारी संभाल सकते हैं? और फिर बात टल जाती थी। लेकिन एक रोज उन्होंने राणे को मातोश्री बुलाकर वही सवाल किया। कहा जाता है कि राणे उस रोज अगर बाला साहब ठाकरे के सामने चुप्पी साधे रह जाते तो शायद मनोहर जोशी को मुख्यमंत्री पद से हटाने का फैसला टल सकता था। लेकिन राणे ने उस रोज हिम्मत दिखाते हुए कहा कि आप ये बात कई बार कह चुके हैं लेकिन जोशी को हटाएंगे कब? बाला साहब ने उसी वक्त अपने सहायक को बुलाया और जोशी के लिए एक पत्र डिक्टेट किया कि आप राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दें। इसके अगले रोज विधायकों की बैठक बुलाकर नारायण राणे के नाम का ऐलान यह कह कर किया कि ये मुख्यमंत्री पद के दावेदार नहीं बल्कि मुख्यमंत्री पद संभालने के असल शिवसैनिक हैं। बाला साहब के निर्देश पर राणे  1 फरवरी 1999 से करीब 7 महीने तक मुख्यमंत्री रहे।

एनकांउटर स्पेशलिस्ट पुलिस अफसरों की टीम भी राणे से विधायकों को रेस्क्यू नहीं कर पाई

ये जून 2002 की बात है। महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी की गठबंधन सरकार थी। विलासराव देशमुख निर्दलीय विधायकों और छोटे दलों के समर्थन से बनी खिचड़ी सरकार के मुखिया थे। इसी बीच खबर आई कि पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी के 5 विधायकों ने राज्यपाल को पत्र लिखकर देशमुख सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। पीडब्ल्यूपी ने सुनील तटकरे नाम के नेता को कैबिनेट में शामिल करने का विरोध किया था क्योंकि पीडब्ल्यूपी का मानना ​​था कि राकांपा के तटकरे ने रायगढ़ के जिला परिषद चुनाव में उनकी उम्मीदवार सुप्रिया पाटिल को हराने का काम किया था। इसके बाद देशमुख सरकार अल्पमत में आ गई और यही से नारायण राणे को अवसर दिखने लगा। सूबे के राज्यपाल पीसी एजेक्सेंडर ने कांग्रेस-एनसीपी सरकार को दस दिनों के भीतर बहुमत साबित करने का अवसर दिया। राणे को लगा कि एनसीपी के विधायकों के समर्थन वापस लेने की स्थिति में वो अपनी सरकार बना लेंगे और यही से महाराष्ट्र की सियासत में नूरा-कुश्ती और जोर-आजमाइश का खेल शुरू हुआ। अपनी योजना के तहत राणे ने 5 जून 2002 को एनसीपी और कांग्रेस के कुछ विधायकों को अपने साथ लाकर उन्हें मुंबई के जोगेश्वरी में मातोश्री स्पोर्ट्स क्लब में छुपा कर रखा। इधर कांग्रेस एनसीपी की ओर से आरोप लगाया गया राणे ने इन विधायकों को राणे ने अगवा कर लिया है और उन्हें धमकाया जा रहा है। इस बीच एक रात कांग्रेस विधायक पद्माकर वलवी के भागने की खबर आई जिसे बाद में शिवसैनिकों ने पकड़ लिया। ये खबर सामने आने के बाद सरकार की ओर से अपने विधायकों को छुड़ाने के लिए पुलिस का इस्तेमाल करने का फैसला लिया गया। गृह मंत्री छगन भुजबल के निर्देश पर रात के वक्त क्राइम ब्रांच के डीसीपी रहे प्रदीप सावंत तो इस ऑपरेशन का जिम्मा सौंपा गया। प्रदीप सावंत मुंबई के तमाम एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस अफसरों के बॉस हुआ करते थे। अपने साथ बड़े पैमाने पर पुलिस फोर्स लाने के बावजूद उन अधिकारियों को बैरंग वापस लौटना पड़ा। क्योंकि उनके सामने राणे का वो रौद्र रूप दिखा जिससे उलझने की कोशिश किसी पुलिसकर्मी ने नहीं दिखाई। 

उद्धव से टकराव की वजह? 

उद्धव ठाकरे और नारायण राणे के बीच ये कोई पहला टकराव नहीं है। 2003 में महाबलेश्वर में जब बाल ठाकरे ने कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर उद्धव ठाकरे का नाम लिया गया तो इसका विरोध नारायण राणे ने किया। यहीं से नारायण राणे और उद्धव ठाकरे के बीच राजनीतिक दुश्मनी शुरू हो गई। फिर 2005 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए बाल ठाकरे ने नारायण राणे को शिवसेना से निकाल दिया। कहा जाता है कि राणे के भीतर यह बैठ गया कि उन्हें बाहर निकालने के पीछे उद्धव का हाथ है। मराठी और अंग्रेजी में प्रकाशित अपनी आत्मकथा झंझावत में राणे ने जिक्र किया था कि वो उद्धव ठाकरे की वजह से ही 2005 में शिवसेना छोड़ने पर मजबूर हुए थे। शिवसेना में राणे का कद दूसरे नंबर का था। वह राज ठाकरे के बेहद करीब थे। माना जाता है कि इसलिए उद्धव को हमेशा इस बात का डर रहता था कि बाला साहब के बाद नारायण राणे शिवसेना को तोड़कर नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए धीरे-धीरे राणे को किनारे करना शुरू करदिया था। इसके बाद राज ठाकरे को भी धीरे-धीरे पार्टी से दरकिनार किया गया। नारायण राणे फिर कांग्रेस में शामिल हो गए। वो सीएम बनना चाहते थे लेकिन 2008 में अशोक चव्हाण को सीएम बनाया गयाा तो राणे ने इसका विरोध किया। जिसके बाद कांग्रेस से भी दरकिनार किए जाने के बाद वो दिल्ली में सोनिया गांधी से मिले और दोबारा कांग्रेस में शामिल हुए। लेकिन राणे को धीरे-धीरे इस बात का अंदाजा हो गया कि सियासत साधनी है तो शिवसैनिक के तेवर को दिखाना होगा। और यही तेवर दिखाने के लिए बीजेपी के भीतर होकर शिवसेना को धराशायी करना इनकी सियासत का हिस्सा बन गया। उद्धव ठाकरे के साथ उनका ये टकराव आज तक जारी है। 

क्या कहा था राणे ने?

23 अगस्त को रायगढ़ की प्रेस कॉनफ्रेंस के दौरान नारायण राणे ने कहा कि महाराष्ट्र में कोरोना से 1 लाख 57 हजार लोग मर गए इसकी (उद्धव ठाकरे) की वजह से, वैक्सीन नहीं है, डॉक्टर नहीं है, स्टॉफ नहीं है। राज्य की हालात खराब है। महाराष्ट्र से स्वाथ्य विभाग की स्थिति गंभीर है। इसे (उद्धव ठाकरे) बोलने का अधिकार है, बगल में एक सेक्रेटरी रखो और उससे पूछो। उस दिन नहीं पूछ रहा था कि कितने साल हो गए देश को आजाद हुए। अरे हीरक महोत्सव है क्या? मैं होता तो कान के नीचे बजाता। ये क्या देश का स्वतंत्रता दिवस है और इसे मालूम नहीं। नारायण राणे के इसी बयान को लेकर महाराष्ट्र में चार जगहों पर उनके खिलाफ अलग अलग एफआईआर दर्ज हुई। फिर उन्हें जब रत्नागिरी जिले से गिरफ्तार किया गया तो उस वक्त वो खाना खा रहे थे। लेकिन पुलिस ने जरा भी देरी नहीं की गिरफ्तारी में और नारायण राणे भारत सरकार में केंद्रीय मंत्री होने के साथ साथ महाराष्ट्र के बड़े नेता भी है। 1999 में बनी शिवसेना-बीजेपी की गठबंधन सरकार में वो खुद मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 

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स्विस बैंक की लीक हुई लिस्ट में आया था नाम

साल 2015 में स्विस बैंक एचएसबीसी में कालाधन रखने वाले 1195 भारतीयों के नाम लीक हो गए थे। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक 'स्विस लीक्स' नाम के इस खुलासे में एचएसबीसी स्विस प्राइवेट बैंकिंग आर्म्स से वे सारे दस्तावेज लीक हो गए हैं जो वर्षों से एक रहस्य बने हुए थे। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे और उनकी पत्नी नीलम राणे और बेटा नीलेश राणे का नाम इस लिस्ट में आया था और बाल ठाकरे की बहू स्मिता ठाकरे का नाम भी इस लिस्ट में था। हालांकि इसका खंडन करते हुए नारायण राणे ने कहा था कि न तो उनका और न ही उनके परिवार के किसी सदस्य का विदेशी बैंक में खाता है।

शिवसेना के लिए बीजेपी ने राणे को किया आगे

सुशांत केस की जांच, टीआरपी स्कैम के बाद आत्महत्या के एक मामले में अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी, पालघर में साधुओं की हत्या और कंगना रनौत के दफ्तर पर बीएमसी का तोड़फोड़ वाला एक्शन। ये सारे मामले ऐसे रहे जब बीजेपी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और शिवसेना के खिलाफ हमलावर रही है। लेकिन ज्यादातर मामलों में खुलकर विधायक राम कदम या फिर किरीट सौमया ही सामने आते नजर आए। हां, ये बात औऱ है कि सचिन वाजे और एंटीलिया केस को लेकर फडणवीस ने फ्रंट फुट पर मोर्चा खोलते हुए उद्धव सरकार को परेशानी में डालने का काम किया। लेकिन फौरी तौर पर देखें तो देवेंद्र फडणवीस के लिए दिल्ली से मजबूत बैक अप फायर मिलने के बावजूद उद्धव ठाकरे से लोहा लेना मुश्किल होता नजर आया। देवेंद्र फ़डणवीस की पहचान नरम और उदारवादी नेता के तौर पर होती है। वो शिवसेना से टकराएंगे जरूर लेकिन शिवसेना से टकराते दिखेंगे नहीं। उनकी सियासत जिस दिशा को साधती है उनके सामने कांग्रेस और एनसीपी दिखती है। सुशांत सिंह राजपूत केस में जिस तरीके से सीबीआई जांच में जुगाड़ और उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे के खिलाफ बीजेपी नेताओें नारायण राणे और उनके बेटे नितेश राणे की तरफ से 'पेंग्विन अटैक' हुआ। उससे ही ये साफ नजर आने लगा था कि शिवसेना की राजनीति को साधने के लिए बीजेपी या फिर कहे मोदी सरकार द्वारा नारायण राणे को खड़ा किया गया है। देवेंद्र फडणवीस सरकार के दौरान भाजपा राणे को प्रदेश मंत्रिमंडल में शामिल करना चाहती थी। किंतु शिवसेना के साथ सरकार चला रही भाजपा उसके विरोध के कारण ऐसा नहीं कर सकी। लेकिन भाजपा ने उसी दौरान नारायण राणे को अपने कोटे से राज्यसभा में भेजकर संकेत दे दिए थे कि वह राणे को अपने खेमे में लेने जा रही है। केंद्रीय मंत्री बनाए जाने के बाद राणे की नजर अगले साल होने वाले बीएमसी चुनाव पर है। बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती मुंबई पर कब्जे की है और शिवसेना को उसी के स्टाइल में जवाब देने के लिए राणे को आगे किया गया है। जिसकी बानगी बीजेपी के जनआशीर्वाद यात्रा के दौरान ही देखने को मिली जब नारायण राणे ने शिवाजी पार्क में बाला साहब को नमन करते हुए शिवसेना से बीएमसी की मुक्ति की बात करते हैं। राणे कोंकण का बड़ा चेहरा हैं और मंबई और ठाणे के बाद कोंकण ही शिवसेना का बड़ा गढ़ माना जाता है। बीजेपी शिवसेना को उसके ही गढ़ में कमजोर करना चाहती है। 

बीएमसी चुनाव की जंग

पिछले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने खुलकर राणे के कनिष्ठ पुत्र नितेश राणे का साथ दिया। नितेश अक्सर ठाकरे परिवार पर खुलकर प्रहार करते रहते हैं। चूंकि राणे मराठा हैं, इसलिए वह और उनके दोनों पुत्र महाराष्ट्र की राजनीति में अच्छा दबदबा रखने वाले मराठा समाज में भाजपा की आवाज बन सकते हैं। लेकिन इन सबसे अलग कोकण व मुंबई में यह परिवार शिवसेना का सिरदर्द बढ़ा सकता है। क्योंकि कोकण व मुंबई ही शिवसेना की असली ताकत का केंद्र माने जाते हैं। यदि ऐसा हो सका तो मुंबई महानगरपालिका का अगला चुनाव शिवसेना के लिए मुश्किल हो सकता है। महाराष्ट्र की राजनीति में ये पहला मौका है जब मोदी सरकार के मंत्री को गिरफ्तार करके शिवसेना ने अपनी ताकत का एहसास कराया है। इसका सीधा सा मतलब है कि मोदी सरकार भी अब खामोश नहीं बैठेगी। महाराष्ट्र की राजीनित को केंद्र या बीजेपी अपने तौर पर उस दिशा में ढकेलना चाहती है जहां शिवसैनिक अपनी पुरानी छवि में लौटती नजर आए। जिसकी बानगी बीते दिनों बीजेपी ऑफिस में पथराव और जगह-जगह सड़कों पर प्रदर्शन के तौर पर देखने को भी मिली। जहां शिवसेना अपनी पहचान को कानून के राज तले दबा देती या फिर कानून से आगे बढ़कर शिवेसान को ही कानून बना देती है। यही कांग्रेस और एनसीपी के लिए परेशानी का सबब बन जाए। -अभिनय आकाश


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