हिन्दुत्व के मुद्दे पर समाजवादी पार्टी और भाजपा में टकराव बढ़ता जा रहा है। अभी योगी के 80 बनाम 20 की लड़ाई का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि सपा प्रमुख ने धर्म भी कभी-कभी अंधविश्वास होता है, वाला बयान देकर एक बार फिर भाजपा को हमलावर होने का मौका प्रदान कर दिया है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की ओर से एक इंटरव्यू में आए उक्त विचार को भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है। भाजपा ने कहा है कि अखिलेश यादव ने लोगों की भावनाएं आहत की हैं और उन्हें इसके लिए माफी मांगनी चाहिए। दरअसल, विवाद की शुरूआत तब हुई जब सपा अध्यक्ष से एक टीवी इंटरव्यू में एंकर ने पूछा कि अपने कार्यकाल में वह कभी नोएडा क्यों नहीं गए। अखिलेश ने पहले तो नोएडा में किए गए काम गिनाकर सीधा जवाब देने से बचने की कोशिश की, लेकिन जब दोबारा उनसे यही सवाल पूछा गया तो हंसते हुए उन्होंने नोएडा वाले डर का सच स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा कि नोएडा इसलिए नहीं गया क्योंकि माना जाता है कि जो चला जाता है वह मुख्यमंत्री नहीं आ पाता है। हमारे बाबा मुख्यमंत्री (योगी आदित्यनाथ) हो आए अब दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। एंकर ने जब इसे अंधविश्वास कहा तो अखिलेश बोले कि हां, तो धर्म भी कभी-कभी अंधविश्वास होता है।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव की हिंदू विरोधी छवि गढ़ने में जुटी भाजपा ने इसे लपकने में देर नहीं की। बीजेपी के ट्विटर हैंडल से इंटरव्यू के इस हिस्से को ट्वीट करते हुए लिखा, ‘चुनावी हिंदू को धर्म अंध विश्वास ही लगेगा’ वहीं, यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी अखिलेश यादव के इस बयान की आलोचना करते हुए कहा कि उन्हें लोगों से माफी मांगनी चाहिए। मौर्य ने कहा कि धर्म को अंधविश्वास बताने से लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं। मैं चाहता हूं कि वे माफी मांगें।
खैर, राजनीति में अक्सर यह देखा जाता है कि नेता ऐसा कुछ बोल जाता है जो उसके दिल में नहीं होता है, लेकिन विरोधी खेमा इसे उक्त नेता के दिल की बात से जोड़ देता है, ऐसा ही अखिलेश यादव के साथ हो रहा है। बीजेपी उनके खिलाफ हमलावर है। राजनीति के जानकारों को पता है कि नेता जो बोलता है, वह तो उसकी जुबान पर जरूर होता है, लेकिन वह जो नहीं बोलता है, वह उसके दिल में होता है। दिल की बात जुबां पर ऐसे घुमा-फिरा कर लाई जाती है कि ‘सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।’ जनता और विपक्ष समझ भी जाए और कहीं कोई कानूनी लफड़ा भी न हो। खासकर चुनावी मौसम में इस बात का ध्यान कुछ ज्यादा ही रखा जाता है, वर्ना चुनाव आयोग आचार संहिता का हंटर चला सकता है। कौन-सी बात कहां कहनी है और कहां चुप्पी साध लेना है, यह भी नेताओं से बेहतर कोई और नहीं जानता है। ऐसे ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक बयान (80 बनाम 20) ने इस समय सियासी बवंडर खड़ा कर रखा है। पूरी सियासत योगी के बयान के बीच उलझ कर रह गई है। योगी आदित्यनाथ का कहना था कि यूपी में इस बार की लड़ाई 80 बनाम 20 की है। सब जानते और समझते हैं कि योगी का इशारा 80 फीसदी हिन्दू और 20 फीसदी मुसलमानों की तरफ था, लेकिन जब उनसे 80 बनाम 20 का मतलब समझाने की कोशिश की जाती है तो वह कहते हैं कि 20 फीसदी में वह लोग शामिल हैं जो अयोध्या में भगवान राम के मंदिर निर्माण का और वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर में बने काशी कॉरिडोर का विरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि जिनको मथुरा से परेशानी है, जो आतंकवादियों को छोड़ते हैं और कारसेवकों पर गोली चलाते हैं, जिन्हें राष्ट्रवाद से नफरत है वह 20 प्रतिशत में आते हैं। योगी इशारों में समाजवादी पार्टी को घेरते हैं तो इसीलिये उनके (योगी के) बयान पर सबसे ज्यादा समाजवादी पार्टी के नेता भड़कते हैं।
लगातार समाजवादी पर हमलावर मुख्यमंत्री यहीं नहीं रुके, उन्होंने खुल कर कहा कि हिंदू विरोधी तत्व उन पर कभी भरोसा नहीं करते, भले ही वो कुछ भी कर दें। योगी आदित्यनाथ ने आगे कहा, 'हिंदू विरोधी तत्व पहले भी मुझ पर भरोसा नहीं करते थे, और आगे भी नहीं करेंगे।' इतना ही नहीं सीएम योगी ने कहा कि अगर मैं अपनी गर्दन काटकर ऐसे लोगों के सामने प्लेट में रख दूं तो भी इन्हें मुझ पर यकीन नहीं होगा। योगी एक न्यूज चैनल को इंटरव्यू दे रहे थे। एंकर ने जब उनसे सवाल किया कि अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के साथ थोड़ी दूरी पर मस्जिद भी बन रही है, वहां वह जाएंगे तो सीएम ने बेहद साफगोई से जवाब दिया कि मुख्यमंत्री की हैसियत से मुझे किसी धर्म से कोई परहेज नहीं है। योगी के बयान के बाद राजनीतिक दलों में जुबानी जंग तेज हो गई है। समाजवादी पार्टी ने समाजवादी और अंबेडकरवादी का योग 85 फीसदी बताते हुए बीजेपी पर पलटवार किया। सपा प्रवक्ता सुनील यादव ने कहा, ''योगी जी जो कह रहे हैं 20 और 80 की लड़ाई, उनका गणित अभी थोड़ी गड़बड़ है, लड़ाई 15 और 85 की है, जब समाजवादी और अंबेडकरवादी मिल गए तो हो गए 85 फीसदी। 15 में भी हम वोट लेंगे, तो अब समझ लें वो अपना गणित।''
उधर, कांग्रेस ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के बयान को साम्प्रदायिक करार दिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने एक पोस्ट टैग करते हुए ट्वीट किया। उन्होंने लिखा है कि माननीय केंद्रीय चुनाव आयोग, आपको और क्या प्रमाण चाहिए? जो भी धर्म के नाम पर वोट मांगता हो उसके खिलाफ साहस दिखा कर कार्रवाई करिए अन्यथा आपको इतिहास माफ नहीं करेगा। वहीं कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने इस मसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि यूपी के चुनाव सांप्रदायिक मुद्दों पर नहीं होंगे, 80-20 पर नहीं होंगे, 60-40 पर नहीं होंगे, यूपी के चुनाव बेरोजगारी पर होंगे, माताओं-बहनों के सम्मान पर होंगे, किसानों की फसल के उचित मूल्य पर होंगे।
खैर, बात आबादी के हिसाब से जनसंख्या के गणित की कि जाए तो उत्तर प्रदेश में हिंदू 79.73 फीसदी, मुस्लिम 19.26 फीसदी, ईसाई 0.18 फीसदी, सिख 0.32 प्रतिशत, बौद्ध 0.10 प्रतिशत, जैन 0.01 प्रतिशत और अन्य 0.40 प्रतिशत हैं। इसीलिए योगी के बयान को हिन्दू बनाम मुस्लिम करके देखा जा रहा है। दरअसल, भारतीय जनता पार्टी के लिए हिन्दुत्व की पिच पर बैटिंग करना काफी आसान है। बीजेपी लगातार कोशिश में रहती है कि हिन्दू वोटरों को जात-पात से बाहर निकाल कर हिन्दुत्व के बैनर तले एकजुट किया जा सके, ऐसा करने में बीजेपी पिछले तीन चुनावों में सफल भी हो चुकी है। 2014 और 2019 का लोकसभा और 2017 का विधानसभा चुनाव बीजेपी ने हिन्दुत्व के सहारे ही जीता था, इस बार भी उसका इसी पर दांव लगा है, जो सफल होते भी दिख रहा है।
-अजय कुमार