महाराज और मामा आए साथ, मध्य प्रदेश से जाएंगे कमलनाथ

By अनुराग गुप्ता | Mar 11, 2020

बुरा न मानो होली है... मगर बुरा तो लगा मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार को... क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जैसे ही पार्टी से इस्तीफा दिया तो उसके पाले वाले 22 समर्थकों ने भी अपना इस्तीफा दे दिया। इस तमाम विधायकों द्वारा इस्तीफा दिए जाने के बाद होली के रंग में कांग्रेस की सत्ता भंग होने का डर सताने लगा मगर खुद का मजबूत दिखाने वाले कमलनाथ भूल गए कि मध्य प्रदेश के मौजूदा आंकड़े अब भाजपा के पक्ष में दिखाई दे रहे हैं। आज इसी मामले पर चर्चा करेंगे।

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कहां से शुरू हुआ मामला ?

मध्य प्रदेश की 3 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में कांग्रेस का भाजपा का एक-एक सीट जीतना तय माना जा रहा है। ऐसे में कांग्रेस दिग्विजय सिंह को मध्य प्रदेश से राज्यसभा भेज सकती है और पार्टी नेता दूसरी सीट से प्रियंका गांधी को राज्यसभा भेजने पर विचार कर रहे हैं। जबकि दूसरा नाम ज्योतिरादित्य सिंधिया का होना था। लेकिन कमलनाथ ज्योतिरादित्य को राज्यसभा भेजने के मन में नहीं थे, यहीं से मामला बिगड़ना शुरू हुआ।

एक तरह देश होली मना रहा था लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया सुबह-सुबह खुद गाड़ी चलाकर अमित शाह के आवास पहुंचे। लेकिन उन्हें गुजरात हाऊस पहुंचने के लिए कहा गया। जहां पर शाह और सिंधिया की मुलाकात हुई। जिसके बाद शाह की गाड़ी में बैठकर सिंधिया 7 लोक कल्याण मार्ग पहुंचे, यानी कि प्रधानमंत्री आवास... जहां पर लगभग एक घंटे तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सिंधिया की बातचीत हुई।

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इस मुलाकात के लगभग 40 मिनट बाद सिंधिया ने ट्वीट कर पार्टी से इस्तीफा दे दिया। लेकिन दिलचस्प बात तो यह थी कि उन्होंने जो पत्र ट्वीट किया वो 9 मार्च को लिखा गया था। इससे यह तो समझा जा सकता था कि सिंधिया कांग्रेस छोड़ने से पहले एक बार प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात करना चाहते थे, जो हुई भी। 

क्योकि मध्य प्रदेश में सियासी उठापटक के बीच जब सिंधिया ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात करना चाहा तो उन्हें समय नहीं दिया गया। ऐसी खबरें हैं। जबकि कांग्रेस नेता ने कहा कि गांधी ने सिंधिया से मुलाकात की थी। हालांकि सत्य क्या है वह तो खुद सिंधिया ही बता सकते हैं लेकिन उन्होंने तो मीडियाकर्मियों के सवालों पर हैप्पी होली कह दिया।

क्या है मध्य प्रदेश का मौजूदा हाल ?

कांग्रेस के 22 विधायकों द्वारा इस्तीफा दिए जाने के बाद कमलनाथ सरकार पर संकट के काले बादल छा गए हैं। हालांकि कमलनाथ आत्मविश्वास से भरे हुए हैं और उनका कहना है कि चिंता की कोई बात नहीं है हमारे पास बहुमत है। साथ ही कमलनाथ ने अपने कुछ नेताओं को कर्नाटक भेजा है। जहां पर इस्तीफा दे चुके विधायकों को पार्टी नेता मनाकर घर वापसी कराएंगे। 

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लेकिन जो स्थिति उत्पन्न हुई है उसके मुताबिक अगर 22 विधायकों के इस्तीफे मंजूर हो गए तो विधानसभा में सदस्यों की संख्या 206 हो जाएगी। जिसका मतलब है बहुमत के लिए 104 के आंकड़े की जरूरत है। ऐसे में भाजपा आसानी से बहुमत हासिल कर सकती है। लेकिन अभी सरकार बनाने से कहीं ज्यादा जरूरी भाजपा के लिए राज्यसभा की एक और सीट जीतना है और अब परिस्थिति भाजपा के पक्ष में भी है।

26 मार्च को राज्यसभा का चुनाव है और सीट जीतने के लिए एक उम्मीदवार को 52 वोट की जरूरत है। ऐसे में भाजपा के पास 107 और कांग्रेस के पास 99 वोट हैं। और यह आंकड़े तब भाजपा की मदद कर सकते हैं जब 22 विधायकों के इस्तीफे मंजूर हो जाएं। और यह तो आप सब जानते ही हैं कि भाजपा ने अपने सभी 104 विधायकों को भोपाल से हरियाणा के आईटीसी रिजॉर्ट में शिफ्ट कर दिया है और इन सब विधायकों का जिम्मा खुद कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय ने लिया है।

सिंधिया के इस्तीफे से हिल गई कांग्रेस की नींव

युवा चेहरे को तवज्जो देने की बात करने वाली कांग्रेस एक बार फिर से फेल हो गई। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सिंधिया ने जब इस्तीफा दिया तो उनके मित्र राहुल ने भी उन्हें ऐसा करने से रोका नहीं। न ही उनसे बातचीत की। जबकि कहा ये जा रहा है कि कांग्रेस ने राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को सिंधिया की नाराजगी दूर करने का जिम्मा सौंपा था लेकिन सिंधिया के इस्तीफा देने के बाद तो पत्रकारों ने अशंका जताते हुए ट्वीट किया कि अब सिंधिया के बाद पायलट और मिलिंद देवड़ा की बारी है।

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एक तरफ ऑपरेशन लोटस के फेल होने की बात करते रहे कांग्रेस नेता तो दूसरी तरफ भाजपा ने उनकी जड़े ही कमजोर कर दीं। मिली जानकारी के मुताबिक भाजपा ने सिंधिया को राज्यसभा भेजने का मन बनाया हुआ है। साथ ही सिंधिया को केंद्रीय मंत्री भी बनाया जा सकता है। 

मुमकिन है कि 26 मार्च को होने वाले राज्यसभा चुनाव के पहले-पहले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का नाम बदल जाए और कांग्रेस से भाजपा सत्ता छीनकर यह दिखा दे कि अबकी बार फिर मामा की सरकार...

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सिंधिया के चुनाव हारने के बाद किया गया था साइड लाइन

गुना सीट से लगातार 4 बार सांसद बने ज्योतिरादित्य सिंधिया 2019 का लोकसभा चुनाव हार गए। जिसके बाद पार्टी ने उन्हें साइड करना शुरू कर दिया। इसके अलावा प्रदेश चुनाव के वक्त कांग्रेस ने सिंधिया के चेहरे का खूब इस्तेमाल किया लेकिन कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया। यहां तक कि सिंधिया को उपमुख्यमंत्री का पद भी नहीं दिया गया। तीसरी वजह युवाओं को एकजुट करने वाले सिंधिया को पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष तक की जिम्मेदारी नहीं सौंपी और अंतत: उन्हें राज्यसभा भेजने के मन में भी नहीं थे मध्य प्रदेश के कांग्रेस नेता... पार्टी से मिल रही उपेक्षा के बाद सिंधिया ने 18 साल पुराना सियासी साथ छोड़ दिया और अब वह नए सिरे से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले हैं। हालांकि सिर्फ सिंधिया ही नहीं हैं जो साइड लाइन किए गए थे। उनके आलावा पूरा युवा ब्रिगेड है जिन्हें पार्टी तवज्जो नहीं देती है और बुजुर्गो की राजनीति करती है।

2019 में कांग्रेस की हार के बाद सचिन पायलट, मिलिंद देवड़ा, दीपेन्द्र हुड्डा, कुलदीप विश्नोई, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, गौरव गोगोई, सुष्मिता देव, ज्योति मिर्धा और अदिति सिंह को पार्टी ने किनारे कर दिया। भविष्य में क्या हो सकता है यह कह पाना तो मुमकिन नहीं लेकिन पत्रकार संभावनाएं जरूर जता रहे हैं। फिलहाल सिंधिया साहब को साधूवाद कि प्रदेश की तरक्की में वह अपना योगदान देते रहेंगे।

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