लालजी टंडन: लखनऊ के लाडले और अटल बिहारी वाजपेयी के दुलारे जिन्हें मायावती बांधती थीं राखी

By अंकित सिंह | Apr 12, 2022

भारतीय राजनीति में जब भी अटल बिहारी बाजपेयी की बात होगी तो उसमें लालजी टंडन की भी बात अवश्य होगी। लालजी टंडन ने भले ही अपने राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे होंगे लेकिन व्यक्तिगत जीवन में अटल बिहारी वाजपेयी के साथ उनका संबंध राम-लक्ष्मण की तरह था। लालजी टंडन के शब्दों में कहें तो अटल बिहारी वाजपेयी उनके दोस्त, पिता और भाई सब थे। राष्ट्रीय राजनीति में भले ही लालजी टंडन की सक्रियता कम रही हो लेकिन लखनऊ की गली-गली उनसे वाकिफ थी। समर्थकों और शुभचिंतकों के बीच बाबूजी के नाम से लोकप्रिय लालजी टंडन का नाम उत्तर प्रदेश के बड़े नेताओं की सूची में हमेशा शुमार रहेगा। उनका राजनीतिक करियर कई दशकों तक लंबा रहा। इसके अलावा वह कई राज्यों के राज्यपाल भी रहे। लालजी टंडन का जन्म 12 अप्रैल 1935 को लखनऊ में ही हुआ था। उन्होंने लखनऊ के ही कालीचरण डिग्री कॉलेज से अपनी शिक्षा प्राप्त की थी।

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स्नातक करने के बाद उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। पहली बार वह 1978 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य बने। ऊपरी सदन में वह दो बार 1978 -1984 और उसके बाद 1990 -1996 के बीच चुने गए। वह 1996 से 2009 के बीच तीन बार विधायक चुने गये और 1991-92 में पहली बार उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार में मंत्री बने। उस समय उनके पास उर्जा विभाग था। उत्तर प्रदेश में भाजपा के दमदार नेता माने जाने वाले टंडन ने बसपा-भाजपा की गठबंधन सरकार में बतौर शहरी विकास मंत्री अपनी सेवाएं दी। उन्होंने कल्याण सिंह सरकार में भी बतौर मंत्री अपनी सेवाएं दी थीं। टंडन का विवाह 1958 में कृष्णा टंडन से हुआ था। उनके तीन बेटे हैं। उनमें से एक आशुतोष टंडन इस समय उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री हैं।


अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के दौर के नेता टंडन (85) लोकसभा सांसद भी रहे। बाबूजी के नाम से लोकप्रिय टंडन 2009-14 में लखनऊ लोकसभा सीट से निर्वाचित हुए। उस समय खराब स्वास्थ्य के चलते अटल बिहारी वाजपेयी ने इस सीट से चुनाव नहीं लड़ा था। लालजी टंडन 2003 से 2007 तक के उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे हैं। सभासद से संसद और फिर राजभवन तक सफर तय करने वाले लालजी टंडन राज्य में बसपा-भाजपा गठबंधन की सरकार में भी अहम भूमिका में थे। जानकार बताते हैं कि लालजी टंडन का संबंध अपने दल के नेता हो या फिर विरोधी दल के नेता, सभी से मधुर रहा है। लालजी टंडन ने तो मायावती को अपना बहन माना और यही कारण था कि मायावती ने खुद लालजी टंडन को राखी बांधी थी। अटल बिहारी वाजपेयी के साथ उनका सफर लगभग 5 दशकों का रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी जब तक लखनऊ के सांसद रहे, लालजी टंडन लखनऊ में उनके लिए काम करते रहे।

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कहते हैं कि 1952 1957 और 1962 में अटल बिहारी बाजपायी लखनऊ से चुनाव हार चुके थे। यही कारण था कि जब 1991 में उन्हें लखनऊ से चुनाव लड़ने के लिए कहा गया था, तब उन्होंने इनकार कर दिया था। हालांकि वह लालजी टंडन ही थे जिन्होंने लखनऊ से अटल बिहारी वाजपेयी को चुनाव लड़ने के लिए मनाया। लालजी टंडन ने तो अटल बिहारी वाजपेयी को यह तक कह दिया था कि आप सिर्फ लखनऊ में नामांकन भरने के लिए आए और बाकी चुनाव हम पर छोड़ दें। अटल जी इसके लिए तैयार हो गए और वह वहां से चुनाव जीतते भी रहे। 


2009 के चुनाव में जब अटल बिहारी वाजपेयी सक्रिय राजनीति से दूर हुए तब लालजी टंडन ने लखनऊ से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। हालांकि, 2014 के चुनाव में लखनऊ से राजनाथ सिंह को पार्टी ने टिकट दिया और लालजी टंडन राजनीति से दूर हुए। बाद में उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया। बिहार के बाद उन्हें मध्यप्रदेश का भी राज्यपाल बनाया गया। लालजी टंडन जब मध्य प्रदेश के राज्यपाल बने तब वहां कांग्रेस की सरकार थी। हालांकि 2020 के मार्च में शुरू हुई राजनीतिक उठापटक और कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने के दौरान पूरे घटनाक्रम में लालजी टंडन की भूमिका काफी चर्चा में रही। लालजी टंडन को करीब से जानने वाले लोग उन्हें विनम्र और सुलझे हुए राजनेता के तौर पर याद करते हैं। लखनऊ वासियों के लिए लालजी टंडन का दरवाजा हमेशा खुला ही रहता था।


- अंकित सिंह

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