दिल्ली में हार से बिहार NDA में रार, कैसे होगी चुनावी नैया पार

By अंकित सिंह | Feb 13, 2020

दिल्ली में सियासी फतह के लिए भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी थी। यह पहला मौका था जब पार्टी ने बिहार के अपने सहयोगियों को भी दिल्ली में मौका दिया था। पर नतीजे भाजपा के पक्ष में नहीं रहे। यहां आम आदमी पार्टी ने शानदार जीत दर्ज करते हुए 70 में से 62 सीटों पर अपना कब्जा जमाया। वहीं भाजपा सिर्फ और सिर्फ 8 सीटों पर ही सिमट गई। भाजपा की स्थिति तब भी खराब रही जब पार्टी के लगभग 200 से ज्यादा सांसद दिल्ली में 5000 से ज्यादा सभाएं कर चुके थे। दिल्ली में केजरीवाल की इस जीत के बाद अब सभी की निगाहें बिहार में इस साल होने वाले चुनाव पर टिकी हैं। केजरीवाल की इस जीत का सबसे ज्यादा असर भाजपा पर हुआ है। यह हार भाजपा के लिए बिहार चुनाव से पहले कई मुश्किले ला सकता है। दिल्ली में भाजपा की हार ने बिहार की राह में कई रोड़े खड़ा कर दिए हैं। ऐसे में नवनिर्वाचित अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए भी अब सियासी दांव-पेच कठिन होने वाला है। 

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सबसे पहले बात करते हैं कि आखिर भाजपा पर क्या असर पड़ेगा? दिल्ली में इस हार के साथ ही भाजपा ने लोकसभा चुनाव के बाद से यह सातवां राज्य गंवाया है। पार्टी को दिल्ली में जीत की उम्मीद थी जो शायद कार्यकर्ताओं में नया उत्साह और जुनून पैदा करने में मदद करती। इस हार के साथ ही भाजपा को अब अपने गठबंधन के सहयोगियों से मोलभाव करने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। गठबंधन के सहयोगियों की मांगों को मांगने पर मजबूर होना पड़ेगा। भाजपा की इस दिक्कत का फायदा सबसे ज्यादा जनता दल यू और लोक जनशक्ति पार्टी को होगा। दोनों ही पार्टियां सीट बंटवारे को लेकर मोलभाव करने की अच्छी स्थिति में होगी।

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भाजपा की दूसरी दिक्कत यह भी है कि पार्टी पहले ही पड़ोसी राज्य झारखंड में हार का सामना कर चुकी है। दिल्ली में इस हार ने पार्टी को कई संदेश दिए हैं। सबसे बड़ा संदेश तो यह है कि अब हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का मुद्दा राज्य के चुनाव में पार्टी को कोई बड़ा फायदा नहीं दे रहा है। पार्टी को काम के ही आधार पर वोट मांगने होंगे। अच्छी बात यह है कि भाजपा के पास बिहार में नीतिश सरकार के काम को गिनाने का मौका होगा।  

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दिल्ली में इस हार से पार्टी को एक और सबक सीखने को मिला। सबक यह है कि अब वह अल्पसंख्यकों पर अब थोड़ी कम उग्र दिखाई देगी। इसका असर बिहार चुनाव में एनडीए गठबंधन के लिए फायदेमंद होगा। भाजपा की इस रणनीति से नीतीश कुमार के सहारे NDA को अल्पसंख्यकों का वोट हासिल हो सकता है। बिहार में मुस्लिमों का वोट 17 प्रतिशत के आस-पास है।

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भाजपा के लिए बिहार में परिस्थितियां कुछ अलग हैं। दिल्ली में भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण पार्टी के पास कोई चेहरा ना होना भी है। बिहार में भाजपा पहले ही कह चुकी है कि वह नीतीश कुमार के ही चेहरे पर चुनाव लड़ेगी। ऐसे में एनडीए गठबंधन के पास नीतीश कुमार जैसे बड़े कद वाले नेता का चेहरा है, जबकि लालू की अनुपस्थिति में महागठबंधन लड़खड़ा सकता है। उसके पास फिलहाल कोई बड़ा चेहरा नहीं है। फिलहाल लालू परिवार में भी एक टकराव की स्थिति देखी जा रही है।

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भाजपा के लिए सबसे बड़ी सियासी दिक्कत यह है कि AAP की इस जीत से विपक्ष को एक बार फिर से संजीवनी मिल चुकी है। जिस तरह केजरीवाल की दिल्ली में जीत से कांग्रेस उत्साहित है, उससे यही अनुमान लगता है कि पार्टी आगे चलकर आम आदमी पार्टी के साथ किसी गठबंधन की फिराक में है जो अन्य राज्यों में अपना कमाल दिखा सकता है। जिस तरीके से 2015 में महागठबंधन की शुरुआत बिहार में ही हुई थी उसी तरीके से एक बार फिर से इसे अस्तित्व में लाने के लिए एक नई शुरुआत देखी जा सकती है। बिहार चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी, हम, राजद और कांग्रेस एक साथ एक मंच पर दिखाई दे सकते हैं। इस कयास को बल इसलिए भी मिल रहा है क्योंकि केजरीवाल की जीत के बाद दिल्ली के आप संयोजक गोपाल राय ने साफ कहा था कि इसका असर देश पर भी पड़ेगा।

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PK फैक्टर भी दिल्ली चुनाव के बाद बिहार में NDA की मुश्किलें बढ़ा सकता है। जिस तरीके से प्रशांत किशोर को दिल्ली में आम आदमी पार्टी के लिए चुनावी रणनीति बनाते देखा गया, उसी तरीके से वह बिहार में भी विपक्ष के लिए रणनीति तैयार करते देखे जा सकते हैं। बिहार उनके लिए नया नहीं है। वह पहले जदयू और आरजेडी वाले गठबंधन के लिए भी रणनीति बना चुके हैं और उसका फायदा देखने को भी मिला है। प्रशांत किशोर JDU और भाजपा में रह चुके हैं और दोनों की कमजोरी भी जानते हैं। उन्हें CAA का विरोध करने के कारण JDU से निकाल दिया गया है। ऐसे में वह विपक्ष को मजबूत करने के लिए नया दांव पेच चल सकते हैं।

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