नीतीश कुमार के नेतृत्व पर सवाल करते हुए लोजपा बिहार चुनाव में एनडीए से अलग होकर अकेले अपने दम पर लड़ने का फैसला लिया है। लेकिन इस फैसले के बाद सबसे ज्यादा मंथन इस बात को लेकर है कि क्या लोजपा के इस फैसले के पीछे बीजेपी का हाथ है? क्या लोजपा बीजेपी के किसी रणनीति के तहत एनडीए से अलग हुई है? यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि बिहार में एलजेपी बार-बार यह दावा कर रही है कि उसका मकसद बिहार को नरेंद्र मोदी के रास्ते पर चलकर सक्षम बनाना है। लोजपा बीजेपी पर लगातार मेहरबान है जबकि अन्य दलों पर आक्रमक है।
इस बात को बल इसलिए भी मिल रहा है क्योंकि बीजेपी के कई नेताओं का ठिकाना वर्तमान में लोजपा है। दरअसल, बीजेपी के कई नेताओं को टिकट नहीं मिली। ऐसे में वे लोजपा में शामिल होकर चुनावी मैदान में उतर रहे हैं। पर यह बीजेपी के कोई छोटे-मोटे कार्यकर्ता नहीं बल्कि कद्दावर नेता रहे हैं। इन नेताओं में रविंद्र सिंह, रामेश्वर चौरसिया और उषा विद्यार्थी भी शामिल हैं। यह सभी राष्ट्रीय स्तर पर भी बीजेपी में संगठन का काम देख रहे है। हालांकि, आधिकारिक रूप से देखे तो बीजेपी ने चिराग की राजनीति से खुद को बहुत पहले ही अलग बताया है। बीजेपी लगातार यह कहती रही है कि वह बिहार में नीतीश कुमार के ही नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी लेकिन पर्दे के पीछे क्या हो रहा है इसके बारे में फिलहाल तो कोई भी नेता बात करने को तैयार नहीं है।
अपने बागी नेताओं पर सख्ती दिखाते हुए बीजेपी ने यह भी ऐलान कर दिया है कि अगर वे 12 अक्टूबर तक अपना नामांकन वापस नहीं लेते हैं तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा। बीजेपी ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अगर लोजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या किसी अन्य बीजेपी नेताओं के फोटो का इस्तेमाल चुनावी लाभ के लिए करती है तो वह इसका शिकायत चुनाव आयोग से करेगी। लेकिन इससे अफवाहों का बाजार कम नहीं हुआ है। जेडीयू के नेता भी सार्वजनिक तौर पर तो बीजेपी पर यह आरोप नहीं लगाते लेकिन अंदर खाने में वह इस बात का जिक्र करने से भी नहीं चूकते। यह भी माना जा रहा है कि एलजेपी के अलग होने से बीजेपी को बिहार में पहली बार यह लाभ हुआ है कि वह जदयू के साथ 115 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
सबसे ज्यादा दिलचस्पी इस बात को लेकर है कि तब क्या होगा जब चुनाव के बाद बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी? हालांकि, बीजेपी ने इस बात को भी स्पष्ट कर दिया है कि जदयू की सीट बीजेपी से कम होती भी है फिर भी नीतीश कुमार ही हमारे मुख्यमंत्री होंगे। लेकिन सूत्र यह बता रहे हैं कि भाजपा का यह बयान नीतीश कुमार के दबाव में आया है। बिहार के राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि लोजपा के अलग होने से सबसे ज्यादा लाभ अगर भाजपा को हुआ है तो उसका नुकसान जदयू को हुआ है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि अगर बीजेपी की रणनीति के तहत लोजपा एनडीए से अलग हुई है तो आखिर इसके पीछे का कारण क्या है?
दरअसल इसके पीछे दो कारण सामने आए हैं। पहले तर्क के अनुसार बीजेपी के इस कदम से वह बिहार में स्वतंत्र वजूद बनाने की तैयारी में है। इसके अलावा महाराष्ट्र में शिवसेना से धोखे खाने के बाद वह अपने प्लान बी को बिहार में ध्यान में रखना चाहती हैं। इसके अलावा यह भी खबर है कि इस बार नीतीश कुमार के खिलाफ anti-incumbency है। ऐसे में बीजेपी नीतीश कुमार के विरोध वाला वोट महागठबंधन को ना जाए इसके लिए लोगों के सामने तीसरा विकल्प भी पेश कर रही है। अब देखना होगा कि बिहार की जनता किसे यहां का ताज सौंपती है और किसे विपक्ष में बैठना पड़ेगा? सभी को 10 नवंबर का इंतजार है। उससे पहले तीन चरणों में बिहार में विधानसभा के लिए वोट डाले जाएंगे।